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अंधेरे में तालिबान का राज

१० दिसम्बर २०१३

जहांजेब कहता है कि वो पू्र्वी अफगानिस्तान के अपने गांव में और नहीं रह सकता. उसके मुताबिक रात होते ही ''तालिबान के शासन'' में खौफ का राज होता है. 30 साल के इस शख्स के चेहरे से ही पता चलता है कि वो कितना भयभीत है.

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Afghanistan Taliban Pakistan Symbolbild Freilassung Abdul Ghani Baradar
तस्वीर: Aref Karimi/AFP/Getty Images

परिवार से अलग जहांजेब पास के शहर जलालाबाद भाग आया और मामूली पैसों के लिए दिन भर बोरियों में आटा भरने का काम करने लगा. वह कहता है, "मैं अपने घरेलू जिले में रहना पसंद करूंगा.'' काम में ध्यान लगाने वाले जहांजेब को इस दुकान में ज्यादा पैसे नहीं मिलते, "लेकिन मैं यहां इसलिए हूं क्योंकि गांव में हमेशा लड़ाई होती रहती है. खेतों, घरों और हर जगह..''

गांवों में अब भी तालिबान

जहांजेब का गांव पाचेर जलालाबाद से एक घंटे की दूरी पर है जो कि नंगरहार प्रांत के दक्षिण में पड़ता है. गांव की याद आने पर उदास जहांजेब कहता है, "मुझे उसकी याद आती है.'' समाचार एजेंसी एएफपी ने स्थानीय सूत्रों से बात की तो पता चला कि नंगरहार प्रांत के 22 जिलों में सिर्फ 4-5 जिले ही सुरक्षित माने जाते हैं. जबकि बाकी के जिलों पर तालिबान का नियंत्रण या प्रभाव है.

जहांजेब का गांव पाचेर वा आगम जिले में पड़ता है, जिस पर तालिबान का प्रभाव है. इस प्रांत में अस्थिरता बड़ी चिंता है क्योंकि अगले साल के अंत तक नाटो के 75,000 जवानों की वापसी होनी है. जहांजेब कहता है, "रात के समय में तालिबान का राज होता है. वह सरकारी चेक पोस्ट पर हमले करते हैं. अधिकारी अपने दफ्तर के बाहर नहीं आते. स्थानीय प्रशासन सिर्फ दिखावे के लिए है. कोई सुरक्षा नहीं."

Afghanistan Taliban Angriff in Herat
तस्वीर: DW/H. Hashimi

कहीं खुशी कहीं गम

जहांजेब के भय की स्थिति तब और खराब हो जाएगी जब अंतरराष्ट्रीय सेना अफगानिस्तान से निकल जाएगी. 2001 में अमेरिकी हमले के बाद से तालिबान को किनारे कर दिया गया. लेकिन वह एक बार फिर सत्ता हथियाने की कोशिश करेगा. जहांजेब जोर देकर कहता है, "हालात और खराब होंगे.'' पिछले दिनों अफगानिस्तान में कबायली सरदारों की लोया जिरगा की बैठक ने अमेरिका और अफगानिस्तान के बीच सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मंजूरी दी थी. समझौते के मुताबिक 2014 में अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य अभियान के खत्म होने के बाद भी कई हजार अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान में रहने का प्रावधान है. हालांकि राष्ट्रपति हामिद करजई ने समझौते पर दस्तखत के लिए कुछ शर्तें रखी हैं.

कुछ तबके सवाल उठा रहे हैं कि क्या इतने सैनिक चरमपंथियों को दूर रखने के लिए काफी होंगे. छह सालों तक तालिबान के लिए लड़ाई लड़ने वाले मुल्लाह बतुरई कहते हैं कि चरमपंथियों की बढ़ती संख्या और विदेशी लड़ाकों की घुसपैठ ने सुरक्षा के हालात और खराब कर दिए हैं. हाल तक तालिबान के लिए लड़ने वाले बतुरई के मुताबिक, "इस प्रांत में पिछले डेढ़ साल में चरमपंथी बनने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है. हमारी टीम में पाकिस्तानी आतंकियों का हस्तेक्षेप था. मुझे तालिबान से जुड़ने का बहुत पछतावा होता है. मुझे लगा कि वह साफ सुथरे लोग हैं और सिर्फ जिहाद के लिए ऐसा कर रहे हैं. लेकिन मुझे नहीं पता था कि कुछ भाड़े के लोग हैं जो सिर्फ पैसे के लिए लड़ना चाहते हैं."

जलालाबाद में अपने दफ्तर में डिप्टी गवर्नर मुहम्मद हनीफ गर्दीवाल कहते हैं कि उनके प्रांत में स्थिरता है लेकिन मानते हैं कि "दूरदराज के क्षेत्रों" में समस्या है. गर्दीवाल कहते हैं, "हमारी सीमा पाकिस्तान से सटी हुई है. विरोधियों को सीमा पार करते देखा गया है. यह हमारी सुरक्षा को खतरा है."

Afghanistan Übersetzer Bundeswehr
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मासूम लोगों की मौत

लेकिन कुछ लोगों को डर है कि अंतरराष्ट्रीय सेना की वापसी के बाद देश में खालीपन होगा, खास कर हवाई मदद में. सभी एकमत से नाटो के समर्थक नहीं कुछ नाटो की वापसी के दिन गिन रहे हैं. जलालाबाद के बाहरी इलाके में स्थित सिरजा अली खान गांव के किसान मुहम्मद कासिम अपने खेतों में फुटबॉल जितने बड़े गड्ढे दिखाते हैं. ये गड्ढे उस दर्दनाक याद की निशानी हैं जिसमें कासिम के दो बेटे और एक भतीजा नाटो के हवाई हमले में मारे गए थे. गांव में दाखिल होने के रास्ते पर ही इन बच्चों को दफन कर दिया गया. एक बड़े से बैनर को लगाकर इन बच्चों को शहीद का दर्जा दिया गया.

कासिम का कहना है, "मुझे लगता है कि विदेशी फौज हमें मारने के लिए आई है. वह हमारी दुश्मन है. क्या आप बता सकते हैं कि दर्द देने के अलावा उन्होंने हमारी और क्या मदद की है.'' हमले के एक दिन बाद नाटो ने कहा था कि उसने विद्रोहियों के हमले के बाद सटीक निशाना लगाते हुए चरमपंथियों पर हवाई हमले किए थे. डिप्टी गवर्नर के मुताबिक नाटो ने अपनी गलती मान ली और माफी मांगी. लेकिन कासिम के लिए यह सब कुछ काफी नहीं है. कासिम कहते हैं, "मेरे बच्चे हेलिकॉप्टर देख सहम जाते हैं और अपने कमरों की तरफ दौड़ जाते हैं. मैं माफी नहीं चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि उन पर मुकदमा चले.''

एए/एजेए (एएफपी)

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