अफगान फंड का आधा पैसा अफगानिस्तान को मिलेगा
१२ फ़रवरी २०२२बाइडेन प्रशासन ने 'न्यू यॉर्क फेडरल रिजर्व' में जब्त रखे गए लगभग 7 अरब डॉलर के अफगान फंड को दो हिस्सों में बांटने का फैसला किया है. फंड का आधा हिस्सा अफगानिस्तान में मानवीय सहायता के लिए दिया जाएगा. बाकी का फंड 9/11 हमलों के पीड़ितों को मुआवजे देने में इस्तेमाल होगा. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस संबंध में 11 फरवरी को एक कार्यकारी आदेश पर दस्तखत किया.
इस आदेश के तहत अमेरिकी वित्तीय संस्थाओं को अफगानिस्तान में सहायता और बाकी बुनियादी जरूरतों के लिए 3.5 अरब डॉलर का फंड उपलब्ध करवाना होगा. बाकी की साढ़े तीन अरब डॉलर की राशि अमेरिका में ही रहेगी और इसे 9/11 पीड़ितों को मुआवजा देने में खर्च किया जाएगा. व्हाइट हाउस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह फैसला अफगानिस्तान की जनता तक फंड पहुंचाने के मद्देनजर लिया गया है. प्रशासन का कहना है कि अफगान लोगों तक मदद पहुंचाने के साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि यह फंड तालिबान के हाथ ना लगे.
जस्टिस डिपार्टमेंट ने कई महीने पहले संकेत दिया था कि न्यू यॉर्क सिटी में 9/11 हमले के पीड़ितों और परिवारों ने जो केस दाखिल किया है, बाइडेन प्रशासन उसमें दखल देने का विचार कर रहा है. बताया जा रहा है कि इसके लिए प्रशासन 'स्टेटमेंट ऑफ इंट्रेस्ट' दाखिल करेगा. जस्टिस डिपार्टमेंट का कहना था कि इस फाइलिंग को दाखिल करने से पहले प्रशासन को कई जटिल और अहम पक्षों पर फैसला लेना है. इसके लिए कई वरिष्ठ अधिकारियों और एजेंसियों से मशविरा किए जाने की जरूरत है. इसीलिए फाइलिंग की समय सीमा बढ़ाकर 11 फरवरी कर दी गई थी.
क्यों जब्त कर लिया गया अफगानिस्तान का पैसा?
2021 में जैसे-जैसे अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से पूरी तरह वापसी का समय पास आता गया, तालिबान की ताकत बढ़ती गई. अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी हुई. इसकी प्रतिक्रिया में अफगानिस्तान को दी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहायता रोक दी गई. विदेशों, खासतौर पर अमेरिका में जमा अफगानिस्तान के अरबों डॉलर की धनराशि फ्रीज कर दी गई.
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से बदहाल है. अफगान सरकारों का लगभग 80 प्रतिशत बजट अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर था. उससे अस्पताल चलते थे. स्कूलों को फंड मिलता था. सरकारी कर्मचारी और मंत्रालय पैसा पाते थे. तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से यह फंडिंग रुक गई.
कोरोना, स्वास्थ्य सेवाओं की किल्लत, सूखा और कुपोषण जैसी समस्याओं के कारण हालात और बदतर हो गए हैं. अंतरराष्ट्रीय मदद के अभाव में वहां गरीबी और बढ़ गई है. डॉक्टरों और शिक्षकों से लेकर सरकारी कर्मचारियों और प्राशासनिक अधिकारियों को महीनों से वेतन नहीं मिला है. खाताधारक अपने बैंक खाते से कितनी रकम निकाल सकते हैं, यह सीमा भी तय कर दी गई है. जानकारों के मुताबिक, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था दम तोड़ने की कगार पर है.
कितना है ये अफगान फंड?
अफगानिस्तान के नाम पर विदेशों में 9 अरब डॉलर से अधिक की धनराशि जमा है. इसमें से सात अरब डॉलर से ज्यादा अमेरिका में है. बाकी रकम जर्मनी, संयुक्त अरब अमीरात और स्विट्जरलैंड में है. तालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से फंड जारी करने की अपील कर रहा है, ताकि अफगानिस्तान पर मंडरा रहे मानवीय संकट को रोका जा सके. वह अफगान फंड का बंटवारा किए जाने के फैसले का विरोध करेगा.
जनवरी 2022 में तालिबान ने अपने मंत्रालयों के लोगों का वेतन दे दिया था. मगर कर्मचारियों को रोके रखने में उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है. तालिबान ने वादा किया है कि मार्च के आखिर तक लड़कियों के स्कूल खोलदिए जाएंगे, लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इसके लिए जरूरी होगा कि शिक्षकों को वेतन दिया जाए. कई प्रांतों में महिलाओं के विश्वविद्यालय फिर से खुल गए हैं. तालिबान ने कहा है कि फरवरी के अंत तक महिलाओं और पुरुषों के सभी विश्वविद्यालय खोल दिए जाएंगे. अंतरराष्ट्रीय समुदाय तालिबान से लड़कियों की पढ़ाई बहाल करवाने की मांग कर रहा था. माना जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय मदद की उम्मीद में तालिबान लड़कियों को स्कूलों और विश्वविद्यालयों में लौटने दे रहा है.
90 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे
मानवाधिकार संगठनों ने आने वाले दिनों में यहां गंभीर मानवीय संकट पैदा होने की आशंका जताई है. संयुक्त राष्ट्र ने जनवरी 2022 में अफगानिस्तान के लिए लगभग 5 अरब डॉलर की सहायता मांगी थी. यूएन ने इससे पहले किसी भी देश के लिए इतनी बड़ी सहायता राशि की अपील नहीं की थी. उसका अनुमान है कि अफगानिस्तान की लगभग 90 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजारा कर रही है. यूएन ने यह चेतावनी भी दी कि वहां लगभग 10 लाख बच्चों पर भुखमरी का खतरा मंडरा रहा है.इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी के प्रमुख डेविड मिलिबांड ने भी 9 फरवरी को सीनेट की एक न्यायिक उपसमिति से अफगान फंड जारी करने की अपील की थी. उन्होंने कहा था, "मानवीय सहायता देने वाले समूह ने वहां की सरकार को नहीं चुना है, लेकिन इसकी लोगों को नहीं दी जा सकती है. एक बीच का रास्ता है. इसके सहारे नई सरकार से हाथ मिलाए बिना अफगान लोगों की मदद की जा सकती है."
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9/11 हमले के बाद बुश प्रशासन ने तालिबान सत्ता से ओसामा बिन लादेन अमेरिका को सौंपने कहा था. सूडान से निकाले जाने के बाद लादेन अफगानिस्तान में ही रह रहा था. तत्कालीन तालिबान प्रमुख मुल्ला मुहम्मद उमर ने लादेन को अमेरिका के सुपुर्द करने से इनकार कर दिया. इसके बाद अक्टूबर 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया.
एसएम/एनआर (एपी)