अफ्रीकी महाद्वीप के लिए परमाणु ऊर्जा अवसर है या आपदा?
२८ अक्टूबर २०२३बुर्किना फासो दुनिया का ऐसा देश है जहां सबसे कम इलाकों तक बिजली पहुंची है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जाएजेंसी (आईएईए) के आंकड़ों के मुताबिक, देश के सिर्फ 20 फीसदी लोगों तक ही बिजली आई है. अब यहां बिजली की तत्काल जरूरत है, क्योंकि इसके बिना आर्थिक विकास मुश्किल है.
दुनिया के लिए अनजान रहे कैप्टन इब्राहिम ट्राओर के नेतृत्व में 2022 में बुर्किना फासो में तख्तापलट हुआ. सत्ता में आई सैन्य सरकार ने देश में बिजली की आपूर्ति बढ़ाने के लिए हाल में एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है. समझौते के मुताबिक, रूस की सरकारी कंपनी रोसातम देश में परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण करेगी. इस परियोजना के चालू होने के बाद देश में बिजली की क्षमता काफी बढ़ सकती है, लेकिन विशेषज्ञ कई तरह की आशंका जता रहे हैं.
सैन्य तख्तापलट के बाद से इब्राहिम ट्राओर देश पर शासन कर रहे हैं. 35 वर्षीय ट्राओर दुनिया के सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति हैं. सत्ता में आने के बाद से ट्राओर फ्रांस से दूरी बना रहे हैं और रूस के साथ नजदीकियां बढ़ा रहे हैं.
सौर ऊर्जा भी बेहतर विकल्प
बुर्किना फासो में राष्ट्रीय समन्वय मामलों के पूर्व मंत्री और राजनीतिक विश्लेषक एड्रियन पॉसो जैसे आलोचकों का कहना है कि परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण सिर्फ रूसी प्रोपेगैंडा है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "यह पूरी तरह हास्यास्पद बात है कि अफ्रीकी महाद्वीप में ऊर्जा और बिजली की समस्या हो सकती है. यहां सूरज की पर्याप्त रोशनी उपलब्ध है. बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए, ना कि परमाणु संयंत्र बनाने के लिए समझौता करना चाहिए.”
बांग्लादेश का पहला परमाणु बिजली घर बना रहा है रूस
बुर्किना फासो ही अकेला अफ्रीकी देश नहीं है जो परमाणु ऊर्जा के लिए विदेशी साझेदारों के साथ समझौता कर रहा है. रोसातम का लक्ष्य माली में भी परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करना है. इसके अलावा वह भूमध्यसागरीय तट पर स्थित मिस्र के अल डाबा शहर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण कर रहा है. 2022 में शुरू की गई इस परियोजना में चार रूसी बिजली संयंत्र ब्लॉक होंगे, जिनमें से हर एक की क्षमता 1,200 मेगावाट बिजली पैदा करने की होगी.
अफ्रीका के अन्य हिस्सों में भी अक्षय ऊर्जा स्रोतों के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा को कम कार्बन उत्सर्जन वाले विकल्प के तौर पर माना जा रहा है. यूगांडा के ऊर्जा मंत्रालय ने इस साल मार्च में घोषणा की थी कि 2031 तक देश में अधिक बिजली पैदा करने के लिए परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाएगा. कथित तौर पर देश में पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के लिए जगह देखी जा रही है.
इसी क्रम में, यूगांडा ने कंपाला से 120 किलोमीटर दूर दो रिएक्टर ब्लॉक के निर्माण के लिए चीन के नेशनल न्यूक्लियर कॉर्पोरेशन (सीएनएनसी) के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किया है.
केन्या की परमाणु योजनाएं
केन्या भी 2027 में परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण शुरू करना चाहता है. केन्याई परमाणु प्राधिकरण (एनयूपीईए) ने कहा कि यह संयंत्र लगभग 1,000 मेगावाट बिजली पैदा करके देश की बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने में सक्षम होगा.
नैरोबी विश्वविद्यालय के विश्लेषक एक्स एन इराकी ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह आश्चर्य की बात है कि हमारे पास इतनी ऊर्जा होने के बावजूद भी हम परमाणु ऊर्जा की ओर बढ़ रहे हैं.”
केन्या को सौर, पवन और भूतापीय ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करने वाले अफ्रीका के अग्रणी देशों में से एक माना जाता है. मौजूदा समय में देश अपनी लगभग 90 फीसदी ऊर्जा इन अक्षय स्रोतों से प्राप्त करता है. केन्याई सरकार का लक्ष्य है कि वह 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से अपनी सारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगी. मिस्र के शर्म अल शेख में नवंबर 2022 में हुए कॉप27 जलवायु सम्मेलन के दौरान जर्मनी और केन्या ने जलवायु और विकास साझेदारी पर समझौता किया था.
इराकी को संदेह है कि निवेशक आर्थिक लाभ की वजह से अफ्रीका में परमाणु ऊर्जा संयंत्र शुरू करना चाहते हैं. उन्होंने कहा, "परमाणु ऊर्जा संयंत्र दुनिया के कई हिस्सों में बंद किए जा रहे हैं, क्योंकि यह कई औद्योगिक देशों में अब लोकप्रिय नहीं है.” इराकी ने रिएक्टर दुर्घटनाओं से जुड़े संभावित जोखिमों के बारे में भी चेतावनी जारी की, जैसे कि 1986 में चेर्नोबिल और 2011 में फुकुशिमाकी घटनाएं.
नए तरीके का ईजाद
अब तक जिस तरह के रिएक्टर की बात की गई है वैसे रिएक्टर पहले से ही कई देशों में मौजूद हैं. वहीं, रवांडा नया तरीका अपना रहा है. कनाडाई-जर्मन कंपनी डुअल फ्लूइड एनर्जी इंक नई तकनीक वाले रिएक्टर का निर्माण करने वाली है.
रवांडा परमाणु ऊर्जा प्राधिकरण के मुताबिक, इस स्टार्ट-अप ने सीसे का इस्तेमाल करके अलग तरीके का तरल ईंधन और कूलेंट बनाया है. कथित तौर पर इस खोज के बाद से रेडियोधर्मी कचरे में कमी आई है.
निवेशकों के लिए अवसर, अफ्रीका के लिए नहीं?
इराकी जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि अफ्रीका में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण से इस महाद्वीप को फायदा नहीं होने वाला है. निवेशक बाजार का दोहन करने के इरादे से निवेश करना चाहते हैं.
परमाणु ऊर्जा के आलोचक घाना, नाइजीरिया, सूडान, गांबिया और जिम्बाब्वे जैसे देशों की ओर इशारा करते हैं जिन्होंने आने वाले दशक में परमाणु ऊर्जा के संभावित इस्तेमाल का पता लगाने के लिए भागीदारों के साथ समझौते किए हैं. हालांकि, इन देशों में अतीत में ऐसी कई परियोजनाएं रद्द कर दी गई हैं.
फिलहाल, सिर्फ दक्षिण अफ्रीका एकमात्र ऐसा देश है जहां सफलतापूर्वक परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित हुआ और चल रहा है. यह केपटाउन के समीप कोएबर्ग में स्थित है, जिसे 1984 में चालू किया गया था.
दक्षिण अफ्रीका वर्षों से परमाणु ऊर्जा के विस्तार पर विचार कर रहा है. मौजूदा समय में देश की बिजली आपूर्ति का बड़ा हिस्सा कोयले पर निर्भर है, जिससे जलवायु पर काफी ज्यादा नकारात्मक असर पड़ता है. इसके अलावा, देश में बिजली की आपूर्ति करने वाली कंपनी एस्कॉम को उद्योगों और सामान्य जरूरतों के लिए मांग को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
अफ्रीकी महाद्वीप के लिए अवसर
दक्षिण अफ्रीकी कार्यकर्ता और अफ्रीका फोर न्यूक्लियर की सह-संस्थापक प्रिंसेस मथोम्बेनी आने वाले समय को देख रही हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि ‘परमाणु' अफ्रीकी महाद्वीप के लिए एक अवसर है.
वह कहती हैं, "मैं इसे बेहतर कदम के तौर पर देखती हूं, क्योंकि अफ्रीकी देशों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाने और रोजगार पैदा करने के लिए औद्योगीकरण को प्राथमिकता देने की जरूरत है. अफ्रीकी महाद्वीप के लिए यह समय पहिए का फिर से आविष्कार करने का नहीं, बल्कि ऊन ऊर्जा तकनीकों का इस्तेमाल करने का है जो विकसित देशों में अपनी अहमियत साबित कर चुकी हैं. परमाणु ऊर्जा के साथ सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा को समझदारी से इस्तेमाल करना सबसे बेहतर कदम होगा.”