अब मरीजों के डाटा पर बवाल
२१ अगस्त २०१३क्या अमेरिका में कंप्यूटर डाटा जमा करने वालों को पता है कि कौन सा डॉक्टर किस मरीज को कौन सी दवा लिख रहा है? जर्मन समाचार पत्रिका डेअर श्पीगेल की एक रिपोर्ट के बाद जर्मनी में यह सवाल पूछा जा रहा है. और इस बार मामला अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की जासूसी का नहीं है, बल्कि डॉक्टर की पर्ची में होने वाली जानकारी के लहलहाते कारोबार का है.
डॉक्टरों द्वारा मरीजों को दी जाने वाली दवाओं की जानकारी से दवा कंपनियों को मूल्यवान संकेत मिलते हैं कि उनकी कौन सी दवाइयां बिक रही हैं. चूंकि पर्चियां गोपनीय होती हैं, इसलिए प्रेसक्रिप्शन की सूचनाओं को मरीजों के नाम के बिना ही आगे बढ़ाया जा सकता है. ये जानकारियां आम तौर पर ड्रग स्टोरों के डाटा सेंटर देते हैं, जिनका काम आम तौर पर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों से ड्रग स्टोर के बिलों का भुगतान करवाना होता है. उन्हें ड्रग स्टोरों से प्रेस्क्रिप्शन मिलता है, वे उन्हें अलग अलग करते हैं, स्कैन करते हैं और बीमा कंपनियों को बताते हैं कि स्टोर को कितना पेमेंट करना है.
बात यहीं नहीं रुकती. डाटा सेंटर इस डाटा को प्रोसेस कर उसे मेडिकल मार्केटिंग रिसर्च कंपनियों को बेच देते हैं. और वे प्रेस्क्रिप्शन की सूचनाओं को अपने सर्वे में शामिल करते हैं और आखिरकार उसे दवा कंपनियों को बेच देते हैं. डेअर श्पीगेल की रिपोर्ट के अनुसार देश के सबसे बड़े दक्षिण जर्मन डाटा सेंटर वीएसए में पर्चियों को गुमनाम करने के बदले उसे एक दूसरा नाम दे दिया जाता है. मरीजों के नाम के बदले उन्हें आजीवन चलने वाला कोड दे दिया जाता है. उसके बाद ये डाटा अमेरिकी कंपनी आईएमएस हेल्थ को भेजा जाता है जो अमेरिका की बहुत बड़ी मेडिकल मार्केट रिसर्च कंपनी है.
स्कैंडल है या नहीं?
जर्मन प्रदेश श्लेसविष होलश्टाइन के डाटा सुरक्षा अधिकारी थीलो वाइषर्ट इसे लंबे समय से चला आ रहा स्कैंडल बताते हैं, "मैं इसे वैसे ही देखता हूं जैसा हर अच्छा डाटा संरक्षक देखेगा. नाम के बदले एक संख्या देना उसे गुमनाम करना नहीं है, क्योंकि उसका वर्गीकरण सिर्फ संभव ही नहीं बल्कि उसका इरादा भी है." लेकिन दक्षिण जर्मन डाटा सेंटर वीएसए के लिए जिम्मेदार बवेरिया प्रांत के डाटा संरक्षण कार्यालय की राय अलग है. उसके अध्यक्ष थोमस क्रानिष वीएसए का बचाव करते हैं. वे कहते हैं कि 2012 में इस कंपनी की व्यापक जांच की गई, "वहां से जो बाहर निकलता है, वह इस तरह इन्क्रिप्टेड होता है कि किसी एक डॉक्टर या मरीज की दवाओं का वर्गीकरण संभव नहीं."
लेकिन यही दवा कंपनियां चाहती हैं, कहना है मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव रहे रोलांड होल्स का. मार्केटिंग के नजरिए से खासकर डॉक्टर बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. कंपनियां अपनी दवाइयां सीधे नहीं बेचतीं. वे डॉक्टरों को इसकी सिफारिश करती हैं, डॉक्टर उसे चाहे तो प्रेसक्राइब करता है, मरीज प्रेस्क्रिप्शन के साथ दवाखाने जाता है और तब दवा की बिक्री होती है. प्रेस्क्रिप्शन डाटा की जानकारी होने से पहले दवा कंपनियों को पता नहीं चलता था कि उनके मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव दवा की मार्केटिंग में कितने सफल हैं. प्रेस्क्रिप्शन कारोबार से मिलने वाले डाटा से यह संभव हो गया है और वह भी इलाकों के आधार पर जहां करीब 3,00,000 लोग रजिस्टर्ड हैं.
दवा कंपनियों के लिए नतीजा
होल्स का कहना है कि चूंकि दवा कंपनियों पर मार्केटिंग का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है, वे विस्तार से जानकारी चाहती हैं. इसलिए मूल्यांकन किए जाने वाले इलाके लगातार छोटे होते गए हैं. इससे अब यह जानना संभव है कि कौन सी दवा किस इलाके में बेची गई. डॉक्टरों की भी आसानी से पहचान संभव है. लेकिन 2007 में एक कानून बनाकर इस पर रोक लगा दी गई. अब सिर्फ 3,00,000 निवासियों या 1,300 डॉक्टरों वाले इलाकों का ही मूल्यांकन किया जा सकता है.
अब वे जानकारियां दिलचस्प हो गई हैं जिनसे डॉक्टरों के दवा लिखने के व्यवहार का पता किया जा सके. ठीक से गुमनाम नहीं की गई पर्चियों के साथ यह संभव है जिसमें एकल मरीजों का वर्गीकरण किया जा सकता है. डाटा संरक्षण अधिकारी वाइषर्ट कहते हैं, "यह साफ है कि इन सूचनाओं का इस्तेमाल दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों को डॉक्टरों के पास भेजने और उन्हें खास दवाइयां लिखने के लिए मनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है." उनका कहना है कि पर्टियों को गुमनाम बनाने का लक्ष्य इसे रोकना था.
वीएसए में डाटा को गुमनाम करने की प्रक्रिया की आलोचना के बाद दवाखानों के उत्तर जर्मन डाटा सेंटर ने मरीजों के नाम की जगह विवादास्पद कोड को आगे देने से रोक दिया है. बर्लिन के डाटा सेंटर ने भी यही किया है. नॉर्थ राइन वेस्टफालिया प्रांत में जांच चल रही है क्योंकि डाटा संरक्षण अधिकारी पर्चियों को गुमनाम करने की प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं हैं. थॉमस क्रानिष कहते हैं कि बवेरिया में फिलहाल सब कुछ वैसा ही रहेगा. वे कहते हैं, "सचमुच ही पर्चियों को गुमनाम करने के सवाल पर और उसके लक्ष्यों पर अलग अलग राय है."
रिपोर्ट: डियाना पेसलर/एमजे
संपादन: ए जमाल