अरब क्रांति में हथियार बने पुराने झंडे
७ दिसम्बर २०२०लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में प्रोफेसर गिल्बर्ट आचर कहते हैं, "सीरिया और लीबिया में जो मौजूदा झंडे हैं, वे राष्ट्रीय प्रतीक होने से ज्यादा वहां की मौजूदा सत्ताओं की पहचान को जाहिर करते हैं, इसीलिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है."
लीबिया में जब 2011 में तानाशाह मुआम्मर गद्दाफी के खिलाफ बगावत शुरू हुई, तो प्रदर्शनकारियों ने 1977 में अपनाए गए गद्दाफी के झंडे को खारिज कर दिया, जो पूरी तरह हरा था. उन्होंने इस झंडे को जलाया और तुरंत उस झंडे को अपना लिया जो देश में राजशाही के दौरान चलता था. लीबिया को 1951 में आजादी मिलने के बाद देश की बागडोर राजशाही के हाथों में थी. लेकिन 1969 में गद्दाफी ने शाह इदरीस को सत्ता से बेदखल कर दिया.
प्रोफेसर अचर कहते हैं कि राजशाही के दौर वाले झंडे की वापसी का यह मतलब नहीं है कि लोगों को उस दौर की याद सता रही है, बल्कि उन्होंने तो गद्दाफी का विरोध करने के लिए इस झंडे का इस्तेमाल किया है. आज लीबिया की आबादी का ज्यादातर हिस्सा ऐसा है जिसने गद्दाफी की तानाशाही के अलावा कोई और दौर नहीं देखा. उन्होंने तो बस उत्साह में देश को आजादी मिलने पर अपनाए गए झंडे को हाथों में उठा लिया.
लीबिया के पुराने झंडे में तीन रंग थे लाल, काला और हरा. बीच में काली पट्टी पर चांद सितारा थे. गद्दाफी के एक विरोधी ने कहा, "यह 17 फरवरी की क्रांति का सबसे ताकतवर प्रतीक था." गद्दाफी के एजेंटों के डर से प्रदर्शनकारियों ने छिपकर झंड़े बनाए. खास तौर से उन्होंने अलग अलग रंगों का कपड़ा अलग अलग दुकानों से लिया.
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झंडे की ताकत
सीरिया में भी प्रदर्शनकारियों ने 2011 में अपनी बगावत का प्रतीक उस झंडे को बनाया जो 1932 में सीरियाई स्वाधनीता सेनानियों ने तैयार किया था. इस झंडे में तीन रंग थे. पहला हरा जो शुरुआती मुस्लिम शासन का प्रतीक था, सफेद उम्मायिद राजवंश के लिए और काला रंग 750 ईसवी से लेकर 13वीं सदी तक राज करने वाले इस्लामिक साम्राज्य के अरबी राजवंश के लिए. इसके साथ ही बीच वाली पट्टी पर तीन सितारे दमिश्क, अलेप्पो और दायर एजोर इलाकों का प्रतिनिधित्व करते थे.
इसके विपरीत मौजूदा राष्ट्रपति बशर असद के पिता और पूर्व राष्ट्रपति हाफेज अल असद ने 1980 में नया झंडा अपनाया जिसमें लाल, सफेद और काली पट्टियों के साथ दो सितारे थे.
बेरुत की सेंट जोसेफ यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर करीम एमिल बितार कहते हैं, "सीरिया और लीबिया में दो कारक काम कर रहे थे. लोगों के बीच 1950 के दशक की अच्छी यादें थीं. यह एक हद तक उदारवादी अरब राष्ट्रवाद का दशक था जबकि 1960 के दशक में एकदम तानाशाहियों का दौर आ गया. तो लोगों ने तानाशाहों को हटाने के लिए उनके बनाए प्रतीकों को भी बदलना शुरू किया."
सीरिया की बगावत के शुरुआती दिनों में अहम रोल अदा करने वाले विपक्षी नेता जॉर्ज साबरा कहते हैं कि आजादी के बाद के झंडे लोगों को 1950 के दशक की काफी हद तक आजादी और आर्थिक विकास की याद दिलाते हैं. वह कहते हैं, "यह सीरिया में लोकतंत्र के दौर का झंडा है, तख्तापलट और तानाशाही व्यवस्था शुरू होने से पहले का."
तख्तापलट का प्रतीक
लीबिया और सीरिया में बदलाव के बावजूद अरब क्रांति के केंद्र में रहे एक देश में कोई बदलाव नहीं हुआ. मिस्र का झंडा वही रहा जो 1952 से है. लाल, सफेद और काली पट्टियों वाला झंडा जिसके बीच में सुनहरे बाज का निशान है जो मध्य पूर्व के 12वीं सदी के शासक सालादीन का प्रतीक है.
बितार कहते हैं, "जुलाई 1952 में हुई क्रांति के बाद देश की सत्ता संभालने वाली सत्ता का झुकाव तानाशाही की तरफ था. बावजूद इसके बहुत से लोग मानते हैं कि वह एक भ्रष्ट राजशाही और औपनिवेशिक हस्तक्षेप के खिलाफ एक जायज विद्रोह था."
मिस्र के पड़ोसी सूडान में अरब क्रांति के पहले दौर में कोई सुगबुगाहट नहीं दिखी. लेकिन वहां विरोध की ज्वाला 2019 में भड़की और बरसों से राज कर रहे राष्ट्रपति ओमर अल बशीर को हटना पड़ा. इसके साथ ही यहां के लोगों का भी देश के पुराने झंडे को लेकर लगाव बढ़ गया. इस झंडे में नीला रंग नील नदी के पानी का प्रतीक है, जबकि पीला रंग रेगिस्तान और हरा रंग कृषि को दर्शाता है. लेकिन 1970 में राष्ट्रपति गफार अल निमेरी ने इस झंडे को छोड़ दिया और अरब राष्ट्रवाद के असर में उन्होंने ऐसा किया.
देश की मौजूदा सत्तादारी संप्रभु परिषद की सदस्य आयशा मूसा पुराने झंडे की वापसी का समर्थन करती हैं. वह कहती हैं, "यह झंडा आजादी का प्रतीक है इसलिए यही सही है. क्रांति के बाद यह हमारे देश की जातीय और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है." वह कहती हैं, "इससे भी बढ़कर यह कि मौजूदा झंडा सैन्य तख्तापलट से जुड़ा है. लेकिन इस देश में सैन्य सरकार को अच्छा नहीं माना जाता."
एके/ओएसजे (एएफपी)
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