अर्थव्यवस्था पर मिटने लगा भारत का भरोसा
१२ सितम्बर २०१२रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तानी लोग यूरोपीय या अमेरिकी लोगों की तुलना में ज्यादा उम्मीद से भरे हैं हालांकि इसके बावजूद देश के बेहतर भविष्य की संभावनाओं में उनका विश्वास 2011 से ही काफी कम हुआ है. पीयू रिसर्च सेंटर की रिसर्च सोमवार को छपी. इसमें कहा गया है, "ऐसी दुनिया में जहां अमेरिकी, यूरोपीय और यहां तक कि चीन के लोग अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता में हैं, वहां भारतीय लोगों का अपने देश की अर्थव्यवस्था पर मजबूत विश्वास कमजोर पड़ने लगा है."
सर्वे के लिए रिसर्च सेंटर ने 4000 से ज्यादा लोगों से बात की. इनमें सिर्फ 49 फीसदी लोगों ने ही माना कि देश की अर्थव्यवस्था अच्छी हालत में है. इससे पिछले साल जब यही सवाल किया गया था जब ऐसा जवाब देने वाले लोगों की तादाद कुल 56 फीसदी थी यानी सात फीसदी ज्यादा लोग मान रहे थे कि अर्थव्यवस्था बढ़िया तरीके से चल रही है.
आर्थिक हालत अगले 12 महीनों में बेहतर होगी ऐसा मानने वाले लोग महज 45 फीसदी है जबकि केवल 38 फीसदी लोग मान रहे हैं कि अर्थव्यवस्था सही दिशा में बढ़ रही है. पिछले साल 51 फीसदी लोग मान रहे थे कि अर्थव्यवस्था की गाड़ी सही रास्ते पर जा रही है. अमेरिका में संतुष्ट लोगों की तादाद तो बहुत कम है लेकिन 52 फीसदी से ज्यादा लोगों का मानना है कि अगले 12 महीने के अंदर अर्थव्यवस्था बेहतर हो जाएगी हालांकि यूरोप के बारे में वहां के सिर्फ 25 फीसदी लोग ही ऐसी राय रखते हैं. चीन में 83 फीसदी लोगों का कहना है कि अर्थव्यवस्था अच्छी हालत में है और अगले 12 महीनों में और बेहतर हो जाएगी. इसी तरह की उम्मीद का वातावारण ब्राजील में भी है.
एक समय में कामयाबी की छलांग लगा रही भारत की अर्थव्यवस्था के विकास की दर अप्रैल से जून के बीच सिमट कर 5.5 फीसदी पर आ गई. यह पिछले तीन सालों में सबसे कम विकास की दर है. महंगाई की दर अभी भी सात फीसदी से ऊपर ही है. राजनीतिक भ्रष्टाचार की घटनाओं के लगातार सामने आने से देश की जनता का मन टूट चुका है. एक तरफ विकास के पहिये भ्रष्टाचार के दलदल में धंस रहे हैं तो इन पर होने वाली राजनीति संसद में कामकाज भी नहीं होने दे रही. पूरा मानसून सत्र सत्ता और विपक्ष की खींचतान में बिना किसी काम के गुजर गया.
एक दिलचस्प बात इस रिसर्च में यह सामने आई है कि सर्वे में शामिल दो तिहाई लोग अपनी व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति से खुश हैं लेकिन देश की अर्थव्यवस्था के बारे में उनकी राय अच्छी नही.
एनआर/एएम (एएफपी)