अलगाववादी बोले, कश्मीर कमेटी बनाओ
२१ सितम्बर २०१०अलगाववादी नेता कश्मीर मसले के हल के लिए ऐसी बातचीत चाहते हैं जिसका कोई नतीजा निकले. हुर्रियत कांफ्रेस के उदारवादी धड़े के नेता मीरवाइज उमर फारूक और जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता यासीन मलिक ने एक साझा बयान में कहा, "हम साझा वचनबद्धताओं के आधार पर बातचीत के हक में हैं. भारत सरकारी तौर पर एक कश्मीर कमेटी बनाए जिसमें सभी राजनीतिक पार्टियों के वरिष्ठ प्रतिनिधि शामिल हो ताकि बातचीत शुरू हो और उसमें जम्मू कश्मीर के लोगों के प्रतिनिधियों को इसमें शामिल किया जाए." दोनों नेताओं ने कहा कि इस तरह की कमेटी पाकिस्तान में भी बननी चाहिए.
कश्मीर में तीन महीनों से तनाव है. इस दौरान भारत विरोधी प्रदर्शनों में कम से कम 100 लोगों की जानें गई हैं. जमीनी स्थिति का जायजा लेने एक केंद्रीय शिष्टमंडल घाटी के दौरे पर है. सोमवार को इस शिष्टमंडल ने अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक से मुलाकात की. फारूक ने शिष्टमंडल को पुलिस की गोली से मारे गए युवाओं की तस्वीरें दिखाए हुए कहा, "हम हमेशा डर और सरकारी आतंकवाद के साये में नहीं रहना चाहते हैं. कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय विवाद है और इसे लोगों की उम्मीदों के मुताबिक हल करना होगा."
गिलानी और फारूक, दोनों नेताओं को घर पर नजरबंद रखा गया है. अन्य अलगाववादी नेताओं की तरह पहले उन्होंने भी केंद्रीय शिष्टमंडल से मिलने से इनकार कर दिया था. लेकिन कुछ सांसद गिलानी और फारूक के घर पर जाकर उनसे मिले. हालांकि बातचीत में दोनों पक्षों के बीच कोई सहमति नहीं दिखी. गिलानी ने घाटी को आर्थिक मदद पैकेज देने की केंद्र की पेशकश को यह कहते हुए खारिज कर दिया, "हमें आजादी चाहिए." वहीं केंद्रीय शिष्टमंडल के सदस्य गुरुदास दासगुप्ता ने मीरवाइज उमर फारूक को साफ कह दिया, "हम हुर्रियत की आजादी की मांग से सहमत नहीं हैं."
घाटी में जून में पुलिस की गोली से एक युवती की मौत बाद से मौजूदा तनाव की शुरुआत हुई. उसके बाद आजादी के लिए होने वाले प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की फायरिंग में लगभग 100 लोगों की मौत हो चुकी है. पुलिस के मुताबिक सोमवार को भी उत्तरी कश्मीर में प्रदर्शनों के दौरान सात लोग घायल हो गए. कश्मीर में तीन महीने लगभग कर्फ्यू में ही बीते हैं. स्कूल और कॉलेज बंद रहने के साथ ही सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान भी ठप पड़े हैं. इस वजह से अब भोजन और दवाइयों की किल्लत होने लगी है.
सत्ताधारी नेशनल कांफ्रेस और विपक्षी पीडीपी कश्मीर में भारतीय शासन को स्वीकार करती हैं. लेकिन दोनों ही पार्टियां राज्य से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को पूरी तरह नहीं तो कम से कम आंशिक रूप से हटाने की मांग कर रही हैं. लेकिन भारतीय सेना, रक्षा मंत्री एके एंटनी और विपक्षी बीजेपी इसका विरोध कर रहे हैं. इसलिए इस कानून को लेकर आम सहमति नहीं बन पा रही है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एन रंजन