अशूरा से पहले डर के साए में शिया
२३ नवम्बर २०१२पाकिस्तान के ज्यादातर हिस्सों में मोबाइल फोन की सेवा मुहर्रम के दौरान बंद रहेगी. शिया मुसलमानों के खिलाफ हमले रोकने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है. शनिवार और रविवार का दिन इस लिहाज से बेहद अहम है, रविवार को अशूरा है सातवीं सदी में इसी दिन इमाम हुसैन की मौत हुई थी. इमाम हुसैन पैगम्बर मुहम्मद के पोते थे. सुन्नी चरमपंथी मुहर्रम के दौरान शियाओं को निशाना बनाते हैं खासतौर अशूरा के दिन. अकसर इस काम में मोबाइल फोन का इस्तेमाल बम धमाकों के लिए डेटोनेटर के रूप में होता है इसीलिए मोबाइल नेटवर्क को बंद किया जा रहा है. देश भर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जा रहे हैं. केवल पंजाब प्रांत में ही डेढ़ लाख से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है.
अशूरा से पहले ही देश में हिंसा की शुरुआत हो चुकी है. देश के अलग अलग हिस्सों में अब तक 25 लोगों के मारे जाने की खबर है. बुधवार को रावलपिंडी के इमामबाड़े पर हमला हुआ जिसमें 23 लोगों की जान गई और कम से कम 62 लोग घायल हुए. देश में शियाओं के खिलाफ 17 फरवरी के बाद यह सबसे बड़ा हमला था. फरवरी में उत्तर पश्चिमी कुर्रम इलाके में हमला हुआ था और तब 31 लोगों की जान गई थी. यह इलाका अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाकों में है. इसके अलावा दो और लोग कराची में दो अलग अलग हमलों में बुधवार को ही मारे गए. पाकिस्तान पुलिस के मुताबिक रावलपिंडी में धमाका एक आत्मघाती हमलावर ने किया. हमला तब हुआ जब शिया मुसलमान मुहर्रम का जुलूस निकाल रहे थे. अफगानिस्तान में भी शियाओं की आबादी करीब 20 फीसदी है. पिछले साल वहां भी मुहर्रम के दौरान करीब 80 लोगों की हत्या कर दी गई थी.
पाकिस्तान में एक तरफ शियाओं पर हमला हुआ दूसरी तरफ इस्लामाबाद में विकासशील मुस्लिम देशों के संगठन डी8 की बैठक चल रही है. बैठक में ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद और तुर्की के प्रधानमंत्री रेचप तैयब एर्दोआन भी मौजूद हैं. तहरीक ए तालिबान, पाकिस्तान ने बुधवार को हुए हमलों की जिम्मेदारी ली है. तालिबान के प्रवक्ता अहसानुल्लाह एहसान ने मीडिया से कहा है कि शियाओं के खिलाफ आने वाले दिनों में और हमले किए जाएंगे.
अल कायदा से संपर्क रखने वाले पाकिस्तान के सुन्नी मुसलमान आतंकवादियों ने अल्पसंख्यक शियाओं पर हमले तेज कर दिए हैं. ये लोग शियाओं को मुस्लिम भी नहीं मानते. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक बड़ी संख्या में शियाओं को एसएमएस के जरिए मौत की धमकी मिली है. रविवार को मुहर्रम का सबसे बड़ा जुलूस निकलेगा. हजारों शिया पाकिस्तान की शहरों में सड़कों पर भारी सुरक्षा के बीच जुलूस निकालेंगे. पाकिस्तान में शिया मुस्लिमों की आबादी करीब 20 फीसदी है.
शियाओं का संहार
2012 पाकिस्तान के शिया लोगों के लिए काफी खतरनाक साल रहा है. मानवाधिकार गुटों के मुताबिक कम से कम इस साल सांप्रदायिक हिंसा में 300 लोग मारे गए हैं. इसी साल अगस्त में रावलपिंडी से गिलगित जा रही एक बस को कई बंदूकधारियो ने रोक लिया. यात्रियों को उतार कर उनकी पहचान दिखाने को कहा गया और उसके बाद 22 लोगों की गोली मार कर हत्या कर दी गई. कुछ जानकार तो यहां तक कहते है कि शियाओं को सांप्रदायिक रूप से खत्म किया जा रहा है. कराची में शियाओं के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सैयद अली मुज्तबा जैदी कहते हैं, "जो कुछ भी पाकिस्तान में शिया मुस्लिमों के साथ हो रहा है वह कल्पना से परे है. मैं काम पर नहीं जा सकता, मैं अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने या लाने नहीं जा सकता, मैं ऐसे इलाकों में नहीं जा सकता जहां शियाओं की आबादी कम है. हमारा सामाजिक जीवन एक तरह से खत्म हो गया है." जैदी यह भी बताते हैं कि पाकिस्तान में शियाओं के लिए खुले में अपने विचार रखना भी मुमकिन नहीं.
पाकिस्तान के मानवाधिकार गुटों का आऱोप है कि देश की सुरक्षा एजेंसियां सुन्नी चरमपंथियों को समर्थन दे रही है और देश के अल्पसंख्यकों की हिफाजत करने में नाकाम हो रही हैं. पाकिस्तान के गैर सरकारी मानवाधिकार आयोग ने बयान जारी कर इन हत्याओं के लिए तालिबान और सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. आयोग का कहना है, "ये हत्याएं निश्चित रूप से उन लोगों का काम है जो पाकिस्तान को मिटाना चाहते हैं, लेकिन हत्यारों को पकड़ कर सजा दिलाने में नाकामी भी इस काम में मदद कर रही है, तालिबान किसी के दोस्त नहीं हैं और जिन लोगों ने इसे बनाया है वो पाकिस्तान को सत्यानाश के रास्ते पर ले जा रहे हैं."
सरकार की नाकामी
राजनीति और सुरक्षा मामलों के विश्लेषक अली के चिश्ती ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि सरकार न सिर्फ शियाओं बल्कि अपने ज्यादातर नागरिकों की सुरक्षा कर पाने में नाकाम रही है. उन्होंने कहा, "हम आज जिस स्थिति का सामना कर रहे हैं वह पाकिस्तान की दशकों पुराने सुरक्षा सिद्धांत और विदेश नीति का नतीजा है जो मेरी राय में पूरी तरह नाकाम रही है." चिश्ती का कहना है कि पाकिस्तान अपनी नीतियों के कारण पूरी तरह से गलत दिशा में आगे बढ़ा और इस वजह से आज उसके अस्तित्व का संकट आ खड़ा हुआ है.
कई पाकिस्तानी जानकार देश में साप्रदायिक हिंसा की शुरुआत 1980 के दशक में हुए अफगानिस्तान की जंग को मानते हैं. उनका कहना है कि पूर्व तानाशाह जनरल जिया उल हक ने चरमपंथी वहाबी गुटों को पैसा और हथियार देने की नीति बनाई और उन्हें शियाओं के खिलाफ इस्तेमाल किया. इसका मकसद पाकिस्तान में ईरान के समर्थन को रोकना और अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाना था. जानकार मानते है कि अब तालिबान और दूसरे चरमपंथी गुटों को रोक पाने की स्थिति में पाकिस्तान नहीं है.
रिपोर्टः शामिल शम्स/ एनआर(डीपीए, एएफपी)
संपादनः आभा मोंढे