अभी भी माइनस में है जीडीपी विकास दर
१ सितम्बर २०२१सरकारी आंकड़े मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून तक के हैं. ये आंकड़े दिखा रहे हैं कि इस दौरान भारत के सकल घरेलु उत्पाद में पिछले साल इसी अवधि के आंकड़ों के मुकाबले 20.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
अपने आप में यह चौंकाने वाला तथ्य लगता है क्योंकि कहा तो यह जा रहा है कि अर्थव्यवस्था में मंदी फैली हुई है. अगर जीडीपी 20 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है तो कहां है मंदी? सवाल और भी महत्वपूर्ण बन जाता है जब आप याद करते हैं कि पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में जीडीपी में 24.4 प्रतिशत की गिरावट आई थी.
असली तस्वीर
तो असलियत क्या है और सही मायनों में क्या हो रहा है? क्या जीडीपी वाकई तेजी से बढ़ रही है? अधिकतर अर्थशास्त्री आंकड़ों के इस खेल को एक भ्रम बता रहे हैं. आइए जानते हैं कि वो ऐसा क्यों कह रहे हैं.
दरअसल पिछले साल महामारी से लड़ने के लिए पूरे देश में जो तालाबंदी लगाई गई थे, उससे देश में आर्थिक गतिविधि लगभग पूरी तरह से रुक गई थी. इस वजह से जीडीपी का बेस यानी आधार ही बहुत नीचे चला गया, जिसे करीब 24 प्रतिशत की गिरावट के तौर पर नापा गया.
जब बेस बहुत नीचे चला जाता है तो हलकी सी उछाल भी बड़े सुधार का भ्रम पैदा कर देती है, जब की असल में हालात में उतना सुधार नहीं आया होता है. आप खुद सोच सकते हैं कि अगर जीडीपी पिछले साल 24 प्रतिशत गिर गई थी और इस साल उसी अवधि में 20 प्रतिशत ऊपर आई है तो क्या ये वाकई बहुत बड़ी खुशखबरी है?
महामारी के पहले का स्तर
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है. मान लीजिए पिछले साल देश की जीडीपी 100 रुपए थी. 24 प्रतिशत की गिरावट आने के बाद वो 76 रुपयों पर पहुंच गई. अब अगर उसमें 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, तो वो ऊपर तो बढ़ी है लेकिन बस 91 रुपयों तक पहुंच पाई है.
यानी 100 रुपयों से आगे बढ़ना तो दूर, वो वापस 100 रुपयों तक भी नहीं पहुंच पाई है. बल्कि अगर ताजा आंकड़ों को इसके ठीक पहले की तिमाही यानी जनवरी 2121 से मार्च 2021 के आंकड़ों से तुलना करें तो आप पाएंगे की जीडीपी में करीब 17 प्रतिशत की गिरावट आई है.
कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर देश की अर्थव्यवस्था के मौजूदा स्वास्थ्य का सही अंदाजा लगाना है तो उसकी तुलना महामारी के पहले के हालात यानी वित्त वर्ष 2019-20 के आंकड़ों से करनी चाहिए.
रुकी हुई खपत
भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने एक ट्वीट में बताया कि अप्रैल-जून 2019 के मुकाबले जीडीपी की ताजा विकास दर माइनस 9.2 है, यानी उसमें 9.2 की गिरावट आई है.
जानकारों का कहना है कि इतना ही नहीं, चिंता का असली विषय आंकड़ों के और अंदर छिपा हुआ है. जीडीपी का करीब 55 प्रतिशत अर्थव्यवस्था में खपत के स्तर से बनता है और इसे आर्थिक प्रगति का एक बड़ा सूचक माना जाता है.
खपत पिछली कई तिमाही से गिरी ही हुई है और ताजा आंकड़ों में तो नजर आ रहा है कि यह गिर कर 2017-18 के स्तर के आस पास पहुंच चुकी है. यानी आम लोग अपनी खपत या खर्च बढ़ा नहीं रहे हैं.
खपत नहीं बढ़ेगी तो अर्थव्यवस्था में निवेश भी नहीं होगा. इसलिए जानकार आगाह कर रहे हैं कि अगर इन आंकड़ों को ठीक से नहीं देखा गया तो अर्थव्यवस्था की असली तस्वीर का गलत अंदाजा लग सकता है.