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आदिमानव की नयी प्रजाति मिली

२८ मार्च २०१०

रूस और जर्मनी के वैज्ञानिकों के मिले-जुले प्रयास से मनुष्य के पूर्वजों की एक नयी प्रजाति का पता चला है. यह खोज पहली बार किसी खोपड़ी, कंकाल या जीवाश्म नहीं, बल्कि एक आदिमानव की हड्डी में मिले डीएनए के विश्लेषण से हुई है.

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आदिमानव का पता चलातस्वीर: AP/Nature

साइबेरिया में इतनी ठंड पड़ती है कि वहां हर चीज जम जाती है और लंबे समय तक सड़ती-गलती नहीं. इसी का परिणाम है कि वहां हज़ारों साल पुराने मैमथ कहलाने वाले रोंएदार हाथी के अब भी लगभग साबूत शव मिल जाते हैं. इसी ठंड की कृपा से 2008 में रूसी वैज्ञानिकों को अल्ताई पर्वतों में बसे देनीसोवा के पास की एक गुफा में एक उंगली की टूटी हुई हड्डी मिली. उन्होंने उसे जांच के लिए जर्मनी में लाइपज़िग के विकासात्मक नृवंश विज्ञान माक्स प्लांक संस्थान के पास भेजा.

लाइपज़िग के वैज्ञानिकों ने पाया कि इस हड्डी की कोषिकाओं वाले डीएनए अब भी इतनी अच्छी हालत में हैं कि उन के आधार पर बहुत कुछ कहा जा सकता है. कोषिका का पावर हाउस कहलाने वाले माइटोकोंड्रिया के डीएनए की अब तक ज्ञात अन्य प्रजातियों के डीएनए से तुलना की गयी. पता चला कि यह हड्डी हमारे पूर्वजों की एक बिल्कुल नयी प्रजाति की होनी चाहिये. वह प्रजाति 30 से 48 हज़ार वर्ष पूर्व मध्य एशिया के जंगलों-पहाड़ों के बीच रहती रही होगी.

30 से 48 हज़ार वर्ष का अर्थ है कि अब तक अज्ञात इस प्रजाति का मनुष्य भी उस समय रह रहे निआनेडरथाल मनुष्य और होमो सापियन का समकालीन था. निआन्डरथाल मनुष्य तो उस गुफ़ा से केवल 100 किलोमीटर ही दूर रहा करता था, जहां नयी मानव प्रजाति वाली उंगली की हड्डी मिली थी.

वैज्ञानिक कहते हैं कि इन तीनो आदि प्रजातियों का साझा पूर्वज कोई 10 लाख साल पहले रहा करता था. हमारे और साइबेरियाई आदिमानव के जीनों के बीच 400 से अधिक ऐसे अंतर हैं, जो उसे एक भिन्न प्रजाति बना देते हैं. प्रजाति का अर्थ है, दोनो के मेल से कोई साझी संतान नहीं पैदा हो सकती. उसे अभी कोई नाम नहीं दिया गया है. सुविधा के लिए देनीसोवा होमिनीड (मनुष्य-समान) कहा जा रहा है.

2003 में इंडोनेशिया के फ्लोरेस द्वीप पर आदिकालीन मनुष्य की एक बौनी प्रजाति के अवशेष मिले थे, जो लगभग दस हज़ार साल पहले लुप्त हो गयी. उसे बोलचाल की भाषा में होबिट और विज्ञान की भाषा में होमो फ्लोरेसियेंसिस कहा जाता है. होबिट के मिलने तक नृवंश विज्ञान के शब्दभंडार में केवल दो मानव प्रजातियां हुआ करती थीं-- होमो सापियन और नेआन्डरथाल.

होबीट और देनीसोवा होमिनीड को मिला कर मनुष्य की अब तक ज्ञात प्रजातियों की संख्या अब चार हो गयी है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि चारो प्रजातियां हज़ारों वर्षों तक इस पृथ्वी पर साथ साथ जी रही थीं, लेकिन समय के साथ तीन प्रजातियां लुप्त हो गयीं और बचे केवल हम होमो सापियन (आधुनिक मानव). यह स्पष्ट नहीं है कि बाक़ी तीनो प्रजातियां लुप्त क्यों हो गयीं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/राम यादव

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य