उच्च न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार हैः प्रशांत भूषण
२८ अप्रैल २०११भूषण लोकपाल विधेयक मसौदा समिति के सदस्य हैं. उन्होंने इन 'गलत' रिपोर्टों को खारिज किया है कि सिविल सोसाइटी में इस बात को लेकर आम सहमति है कि वे न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखना चाहते हैं. भूषण ने कहा, "लोकपाल के तहत सिर्फ जजों के खिलाफ आपराधिक मामलों की जांच होगी. दुर्व्यवहार के मुद्दे को किसी अन्य स्वतंत्र संस्था को दिया जाना था. हमें इस बात से कोई समस्या नहीं होगी अगर आपराधिक मामलों को भी उसी संस्था के तहत लाया जाता है."
इससे पहले भूषण ने गैर सरकारी संगठनों ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल और फिफ्थ पिलर की ओर से कराए गए एक सम्मेलन में कहा कि उच्च न्यायपालिका में भी खासा भ्रष्टाचार है क्योंकि वहां जबावदेही नहीं होती. भूषण ने कहा कि न्यायिक तंत्र अपने बोझ के तले ही दबा जा रहा है. प्रस्तावित लोकपाल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जजों और प्रधानमंत्री को भी इसके दायरे में लाया जाना चाहिए. भूषण के मुताबिक लोकपाल के पास मुकदमा चलाने की शक्ति भी होनी चाहिए.
अन्ना का तरीका 'सही' है
भूषण ने इन बातों को खारिज किया कि गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने लोकपाल विधेयक के लिए आंदोलन का जो तरीका अपनाया, उससे लोकतंत्र पर चोट होती है. उन्होंने कहा, "असल लोकतंत्र तो तभी आएगा, जब लोग अपने फैसले खुद ले सकेंगे. हमें ऐसे तरीके तलाशने होंगे कि लोगों की लोकतंत्र में भागीदारी सुनिश्चित की जा सके. मिसाल के तौर पर अमेरिका से होने वाले परमाणु करार पर जनमत संग्रह क्यों नहीं हो सकता."
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार विरोधी संस्थान कमजोर हो गए हैं. भूषण के मुताबिक सीबीआई भ्रष्ट और सरकार के हाथों की कठपुतली हो गई है. साथ ही ऐसे लोगों को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनाने की कोशिश हो रही है जिन्हें आसानी से काबू में रखा जा सकता है.
भूषण ने कहा कि लोकपाल सिर्फ भ्रष्टाचार के 'आपूर्ति पक्ष' से निपट सकता है जबकि अहम मुद्दा 'भ्रष्टाचार का मांग पक्ष' है जो आर्थिक उदारीकरण के बाद अपनाई जा रही नीतियों से पैदा हो रहा है. उन्होंने नीरा राडिया टेप कांड की तरफ इशारा करते हुए कहा, "अधिकारियों को भ्रष्ट करके कॉरपोरेट लोग बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं और ये इतने ताकतवर हो गए हैं कि संसद, न्यायपालिका, पुलिस और यहां तक कि मीडिया को भी भ्रष्ट बना सकते हैं."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः ओ सिंह