एशिया में नाजी प्रतीक
४ अगस्त २०१३जर्मन तानाशाह हिटलर की विशाल तस्वीर और उस पर अंग्रेजी में लिखा है "हिटलर मरा नहीं है." कुछ साल पहले थाईलैंड के मशहूर पटाया बीच रिसॉर्ट पर वैक्स म्यूजियम में हिटलर की मूर्ति का प्रचार इसी तरह से हो रहा था. बहुत शिकायतें आईं तो 2009 में इसे हटा दिया गया लेकिन हिटलर को खत्म हुए सात दशक बीत जाने के बाद भी नाजी छवि एशियाई लोगों के मन में है और ऐसी हालत तब है जबकि यह इलाका यहूदी विरोध के लिए नहीं जाना जाता.
इस साल जुलाई में बैंकॉक के चुलालोंगकोर्न यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में दीवारों पर बनी पेंटिंग की प्रदर्शनी में कार्टूनों के बीच सैल्यूट की मुद्रा में हिटलर भी था और अंग्रेजी में कैप्शन था "बधाइयां." लॉस एंजेलिस के सिमोन वीजेन्थाल सेंटर सहित कई संस्थाओं से शिकायत मिलने के बाद अधिकारियों ने माफी मांगी और पेंटिंग को हटा दिया गया. सिमोन वीजेन्थाल सेंटर दूसरे विश्व युद्ध के युद्ध अपराधियों का पता लगाने और नाजी शासन में यहूदियों पर हुए अत्याचार को दुनिया के जहन में जिंदा रखने के लिए काम कर रहा है.
नाजी अपराधों की जानकारी नहीं
2011 में चियांग माई के एक कैथोलिक स्कूल में थाई छात्रों ने स्पोर्ट्स डे पर नाजी वर्दी पहन कर शहर में मार्च किया था. लेकिन इन सबके बावजूद थाईलैंड नाजी विचारधारा का अड्डा नहीं है, इन प्रतीकों का इस्तेमाल आमतौर पर उसके ऐतिहासिक संदर्भ को समझे बगैर लापरवाही में कर लिया जाता है. चुलालोंगकोर्न के राजनीति विज्ञानी थितिनान पोंगसुधीरक कहते हैं. "आप को याद रखना होगा कि हम पश्चिमी सभ्यता और इतिहास से प्रभावित नहीं हैं." थितिनान इसे स्वीकार करते हैं कि पब्लिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में दूसरे विश्व युद्ध या होलोकॉस्ट के बारे में बहुत कम जानकारी है. इसकी एक वजह यह भी है कि जंग के दौरान थाईलैंड जापान का सहयोगी था और इस तरह से अप्रत्यक्ष रूप से जर्मनी से जुड़ा था.
पश्चिमी देशों में नाजीवाद की ऐतिहासिक गूंज को दक्षिण पूर्व एशिया एक तरह से भुला चुका है. उन देशों में भी जो जंग के दौरान धुरी देशों का हिस्सा नहीं थे. स्थानीय इतिहासकार जेन रचमत सुगितो कहते हैं कि इंडोनेशिया का नाजीवाद के साथ दर्दनाक अनुभव नहीं रहा है, "नाजीवाद यूरोप की वर्जना है, इंडोनेशिया में नाजीवाद वर्जित नहीं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम होलोकॉस्ट हुआ इससे इनकार करते हैं." दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया वीजेन्थाल सेंटर का एशिया में नया निशाना बना.
लाखों यहूदियों का नरसंहार
होलोकॉस्ट हिटलर की नाजी सरकार का पूरी तैयारी के साथ चलाया अभियान था जिसके तहत 60 लाख यहूदियों की हत्या की गई. इसके लिए यूरोप में 40 हजार यातना शिविर बनाए गए थे. होलोकॉस्ट से पहले यूरोप में करीब 90 लाख यहूदी रहते थे. इनमें से दो तिहाई इस अभियान में मार दिए गए. मरने वालों में 10 लाख यहूदी बच्चे, 20 लाख औरतें और 30 लाख मर्द थे. होलोकॉस्ट की इबारत लिखने वाला हिटलर जर्मनी समेत पूरी दुनिया में नफरत और क्रूरता का प्रतीक है, लेकिन एशियाई देशों में एक तबका जर्मन तानाशाह को अनुशासन, ताकत और देशप्रेम से भी जोड़ कर देखता है.
जकार्ता से करीब 100 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में बांडुंग के सोल्डाटेन काफीहाउस को अंतरराष्ट्रीय शिकायतों के बाद अपनी दुकान दोबारा साज सज्जा के लिए बंद करनी पड़ी. नाजी प्रतीकों के साथ की गई इसकी सजावट को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. इसके मालिक ने बताया कि रेस्तरां की थीम ऐतिहासिक उत्साह से प्रभावित थी, राजनीतिक प्रतिबद्धता से नहीं. रेस्तरां के मेन्यू में एक जिश नाजी गोरेंग भी था जो खास तरीके से भूने चावलों का एक डिश है. मालिक हेनरी मुल्याना ने कहा, "मेरे दिमाग में नहीं आया कि इस पर विवाद हो सकता है. बस ये हुआ कि मैंने दूसरे विश्व युद्ध से जुड़ी जर्मनी की चीजें जुटाई थी, मैं नस्लवादी नहीं हूं."
इतिहास की समझ का अभाव
वीजेन्थाल सेंटर के एशिया विशेषज्ञ रबी अब्राहम कूपर इन सब को एशिया में बढ़ते यहूदी विरोध का प्रतीक नहीं मानते. कूपर का कहना है, "एशिया ऐसी जगह है जहां सबसे कम यहूदी विरोध है, पूरे इलाके में एक मलेशिया ही है जहां यहूदी विरोध के कुछ लक्षण दिखाई देते हैं." हालांकि कूपर का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं कि नाजी प्रतीकों के इस्तेमाल को नजरअंदाज किया जाना चाहिए. कूपर ने कहा, "यह सड़कों पर यहूदी विरोध के बारे में नहीं है, बल्कि हिटलर, नाजी प्रतीक और छवियां महादेश में अचानक बहुत आसान और सनक बन गई हैं जिसे हम ना तो स्वीकार करेंगे ना ही इन्हें बिना जवाब दिए जाने देंगे."
रब्बी एशिया में नाजी प्रतीकों के खिलाफ 1980 के दशक से ही लड़ रहे हैं. जब कभी ऐसी कोई बात सामने आती है वो औपचारिक तौर पर शिकायत दर्ज कराते हैं. 1980-90 के दशक में उन्होंने यहूदी विरोधी साहित्य के विरोध के अभियान के लिए जापान का कई बार दौरा किया. हाल ही में वह हिटलर की आत्मकथा मानी जाने वाली माइन कांप्फ की बढ़ती बिक्री की निंदा करने के लिए मुंबई में थे. 2012 में भारत की इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में रिपोर्ट छपी थी जिसमें बताया गया कि 13 प्रकाशक इस किताब को छाप रहे हैं और इनमें से एक ने तो 1998 से 2010 के दौरान इसकी एक लाख प्रतियां छापी है.
यह किताब अपने साहित्यिक महत्व के लिए तो नहीं जानी जाती लेकिन ऐसी खबर है कि कारोबार के छात्रों में बहुत पसंद की जाती है. नाजी अंदाज दक्षिण कोरिया की स्पोर्ट्स बारों में बहुत आम है. ऐसी भी खबरें हैं कि सुंदरता का सामान बनाने वाली एक कंपनी ने इसकी क्रांति की गूंज को अपना सामान बेचने के लिए इस्तेमाल किया. कूपर का कहना है, "मुझे लगता है कि आमतौर पर हम समझ में कमी के बारे में सोचते हैं और बिना इतिहास को जाने बिना हिटलर को एक मजबूत नेता मानते हैं लेकिन इंटरनेट के युग में इतिहास के बारे में न जानना अच्छी बात नहीं."
रिपोर्ट: एन रंजन (डीपीए)
संपादन: महेश झा