एसिड हमले के बाद हत्या के डर
२७ जून २०१५20 साल की मुमताज अपनी जान बचाने के लिए छुप कर जीवन बिताने को मजबूर है. चार साल पहले एक आदमी ने एसिड फेंक कर उसे बुरी तरह जला दिया था, जिससे उसका शरीर खराब हो गया और गहरा मानसिक आघात पहुंचा. यह केवल एक मुमताज का मामला नहीं है बल्कि अफगानिस्तान के समाज में फैली कई समस्याओं की एक तस्वीर है. अफगानिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की एक शांत सुनामी सी उठ रही है. तालिबान से लोहा ले रहे नागरिकों में से निकले मिलिशिया पहले ही मुसीबतों से घिरे देश में और कहर ढा रहे हैं. आम नागरिकों को किसी ओर से सुरक्षा नहीं मिल पा रही.
मुमताज 2011 के एसिड हमले के बाद से कई सर्जरियां करवा चुकी है. अफगानिस्तान के कुंडूज प्रांत में अपने बदले हुए चेहरे के साथ वह छुप कर जीवन काट रही है. एक किसान की बेटी मुमताज पर नासिर नाम के मिलिशिया जवान की बुरी नजर थी. जब मुमताज के परिवार ने उसकी सगाई किसी और आदमी से तय कर दी तब नासिर ने उसका चेहरा खराब करने का घृणित कदम उठाया. हमले के बाद नासिर तो भाग निकला लेकिन उसके तीन साथियों को अदालत ने 10 साल की जेल की सजा सुनाई. अफगानिस्तान में यह एक सराहनीय फैसला माना गया, लेकिन इसके बाद मुमताज के लिए नई परेशानियां शुरु हुईं. जेल की सजा काट रहे अपराधियों के परिवार वालों और समर्थकों ने उसे और उसके परिवार को जान से मारने की धमकियां दीं. कई हथियारबंद लोगों ने उसके घर में घुसने की कोशिश भी की.
मुमताज को कानूनी और चिकित्सकीय मदद दिलाने वाला गैरसरकारी संगठन 'वीमेन फॉर अफगान वीमेन' की कुंडूज मैनेजर हसीना सरवरी ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हम उसकी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित हैं." घर के पुरुष बारी बारी से सोते हैं और हथियारों के साथ परिवार की रखवाली करते हैं. हाल के सालों में अफगानिस्तान में पूर्व मुजाहिद्दीन लड़ाके मिलिशिया बन कर उभरे हैं. यह नागरिकों से उनको सुरक्षित रखने के लिए "प्रोटेक्शन टैक्स" वसूलते हैं ओर कई तरह के जुल्म भी ढाते हैं. 2014 में राष्ट्रपति अशरफ गनी ने सत्ता में आने पर मिलिशिया को निशक्त बनाने का वादा किया था. लेकिन तालिबान से निपटने के लिए हाल के वक्त में सरकार खुद उन्हें सक्रिय करती दिख रही है. ह्यूमन राइट्स वॉच की पैट्रिशिया गॉसमैन बताती हैं, "इन मिलिशिया के शिकारी रवैए, हत्या, पिटाई, चोरी, लूट जैसे अत्याचारों और दूसरी ओर तालिबान के डर के तले आम नागरिक पिस गया है. अगर कुंडूज या पूरे अफगानिस्तान में दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए जरा भी उम्मीद है तो हिंसक मिलिशिया पर निर्भरता खत्म करनी होगी."
कुछ महीने पहले मुमताज ने उस व्यक्ति से शादी रचाई जिससे कई साल पहले उसकी सगाई हुई थी. उसके जीवन में उम्मीद की छोटी सी किरण तो जगी है लेकिन वह कहती है, "मैं हर वक्त डर के साये में जीती हूं कि वे (हमलावर) मुझे एक ना एक दिन जरूर ढ़ूंढ लेंगे."
आरआर/एमजे (एएफपी)