कहां है जापानी युवाओं की विरोध की भावना
९ अप्रैल २०२१बहुत पुरानी बात नहीं है जब जापानी युवाओं की छवि हिंसक विरोध प्रदर्शनों को भड़काने वाली थी. 1960 और 1970 के दशक में मीडिया में छपी तस्वीरें दंगा पुलिस और उग्र छात्र समूहों के संघर्ष को दिखाती हैं कि वे कैसे हेलमेट और बांस के डंडों से उसका सामना करते थे. इन दो दशकों के दौरान जापान में विरोध प्रदर्शनों की जैसे बाढ़ सी आ गई थी. ये विरोध प्रदर्शन सरकारी नीतियों, शिक्षा में सुधार, टोक्यो के नरिता एयरपोर्ट के निर्माण, जापान में अमरीकी सेना की मौजूदगी, वियतनाम युद्ध और तमाम दूसरे मुद्दों को लेकर हो रहे थे. जापान में सत्ता के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शनों का लंबा इतिहास रहा है.
इनमें सबसे भीषण विरोध प्रदर्शन अक्तूबर 1960 में हुआ छात्र आंदोलन था जब एक 17 वर्षीय अतिराष्ट्रवादी छात्र ओटोया यामागुची जैकेट के भीतर स्कूल ड्रेस पहनकर टेलीविजन पर चल रही चुनावी बहस के मंच पर पहुंचने में सफल हो गया. यामागुची ने एक छोटी सी तलवार निकाली और जापान सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष इनेजिरो असानुमा पर वार कर दिया. बुरी तरह से घायल असानुमा की कुछ दिन बाद मौत हो गई. मुकदमे की सुनवाई के इंतजार के बीच ही यामागुची ने आत्महत्या कर ली और जापानी राजनीति में दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों में वह हीरो बन गया. इस घटना की ग्रैफिक तस्वीर को बीसवीं सदी की सबसे प्रसिद्ध तस्वीरों में शुमार किया जाता है जिसे पुलित्जर पुरस्कार भी मिला था.
आज हिंसा के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता
आज जापान में इस तरह की घटना कल्पना से परे की चीज है जबकि जापानी शहरों की सड़कों पर आए दिन छोटे और शांतिपूर्ण प्रदर्शन होते रहते हैं. इन प्रदर्शनों में शायद ही युवा शामिल होते हों. अन्य देशों के विपरीत, जापान के अतीत को लेकर वहां के युवाओं में अपने दर्शन और आदर्शों को लेकर जुनून की भी कमी है. अमरीका में काले लोगों पर हिंसा के खिलाफ हुए प्रदर्शन में युवाओं की मौजूदगी सबसे ज्यादा थी तो हांग कांग में चीन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार हनन के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में छात्र सबसे ज्यादा मुखर होकर विरोध कर रहे थे. इस बीच, स्वीडन की 18 वर्षीया ग्रेटा थुनबर्ग पर्यावरण कार्यकर्ताओं का एक अहम चेहरा बनकर उभरी हैं.
क्योटो के रित्सुमिकान विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर क्योको तोमिनागा अपने एक शोध के हवाले से कहती हैं कि जापानी युवाओं में सामाजिक आंदोलनों के प्रति दिलचस्पी में अन्य देशों के मुकाबले काफी कमी आई है. महज 20 फीसद युवा जापानी ही मानते हैं कि वे समाज में कोई बदलाव ला सकते हैं. जापानी युवाओं की यह राय इस संबंध में नौ देशों में कराए गए सर्वेक्षण के लिहाज से सबसे कम है. सर्वेक्षण में चीन, अमरीका, दक्षिण कोरिया और यूनाइटेड किंगडम भी शामिल हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में तोमिनागा कहती हैं, "जापान में अपने शोध में हमने 1960 और 1970 के दशक में हुए विरोध प्रदर्शनों के बारे में सवाल किया था लेकिन सिर्फ 10 फीसद लोगों ने ही इस पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी. जबकि चालीस फीसद से ज्यादा लोग इन प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा को लेकर इनके बारे में नकारात्मक सोच रखते हैं.” इन आंदोलनों में अग्रणी रहने वाले कई समूहों की छवि घरेलू हिंसक संघर्षों की वजह से धीरे-धीरे धूमिल पड़ने लगी क्योंकि इन हिंसक संघर्षों में बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुईं. जेनक्योटो नाम का छात्रों का एक समूह भी इन्हीं में से एक था जिसने कभी अमरीकी साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और यहां तक कि स्टालिनवाद के खिलाफ संघर्ष में साम्यवादी और विद्रोही युवाओं को एक साथ लाने में सफलता पाई लेकिन बाद में यह समूह भी बिखर गया.
ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन
तोमिनागा कहती हैं कि युवा जापानी अपने दृष्टिकोण को लेकर उदासीन नहीं हैं लेकिन तकनीकी विकास की वजह से वो अपना विरोध प्रदर्शन अब आभासी दुनिया यानी सोशल मीडिया के माध्यम से दर्ज करा रहे हैं. वो कहती हैं, "मुझे लगता है कि ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा है जो राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों में दिलचस्पी रखती हैं और तमाम वेबसाइट्स के माध्यम से ये लोग ऑनलाइन विरोध प्रदर्शनों में भी हिस्सा ले रहे हैं और उपभोक्ताओं को जागरूक करने का काम कर रहे हैं.”
इन सबके अलावा बहुत से लोगों को रोजगार की भी चिंता है. बढ़ते प्रतियोगी बाजार में उन्हें योग्यता प्राप्त करने के लिए पढ़ाई की जरूरत है ताकि खुद को साबित कर सकें. टोक्यो में द्वितीय वर्ष के एक छात्र इसी इजावा कहते हैं, "मैंने इस बारे में लोगों की राय जानने की कोशिश की लेकिन हर व्यक्ति कुछ पाने के लिए बहुत ज्यादा व्यस्त है. विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के लिए युवा पार्ट टाइम नौकरी कर रहे हैं. ऐसे में उनके पास विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने का समय ही नहीं है.”
इजावा कहते हैं, "एक छात्र के तौर पर मैं एक ऐसी शिक्षा प्राप्त कर रहा हूं जिससे कि मैं अपनी मनचाही नौकरी पा जाऊं ताकि मेरे पास खूब पैसा रहे. ऐसा नहीं है कि मैं बहुत ज्यादा पैसा कमाकर अमीर बनना चाहता हूं बल्कि इतना पैसा कमाना चाहता हूं कि अच्छे से जीवन-यापन कर सकूं. मैं तमाम ऐसे प्रौढ़ लोगों को देख रहा हूं जो कि नौकरी चले जाने के कारण चौबीस घंटे वाले स्टोर्स में नौकरी कर रहे हैं जबकि वो रिटायरमेंट तक अपनी नौकरी को सुरक्षित मानकर चल रहे थे. अब वो अपना और परिवार का भविष्य अंधकार में देख रहे हैं. मैं ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता जिससे कि मैं मुसीबत में पड़ूं क्योंकि मुझे अपने भविष्य के बारे में सोचना है.”
विरोध करने का कोई मतलब नहीं
होक्काइदो बुन्क्यो यूनिवर्सिटी में संचार विभाग के प्रोफेसर मकोटो वातानाबे भी इस बात से सहमत हैं कि जापानी युवा अपनी ही दुनिया में उलझा हुआ है और वो सिर्फ उन मुद्दों के बारे में सोचता है कि जो उसे सीधे प्रभावित कर रहे हों. डीडब्ल्यू से बातचीत में वातानाबे कहते हैं, "मैं जिन छात्रों से बात करता हूं वो अन्य देशों की राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता के बारे में जानते हैं लेकिन वे खुद इन चीजों में शामिल नहीं होना चाहते क्योंकि उनका मानना है कि इन मुद्दों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझे लगता है कि यह समस्या दरअसल, उनके माता-पिता की पीढ़ी की ही है जो उन तक पहुंच चुकी है.”
वातानाबो कहते हैं, "यह वो पीढ़ी थी जो जापान की सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के दौरान बड़ी हुई थी और उसे किसी चीज की कमी नहीं थी. वह पूर्णतया संतुष्ट थी. लेकिन यह सुदृढ़ अर्थव्यवस्था उसे लंबे समय के विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बाद ही मिली थी. इसी वजह से आज जापान का युवा बहुत ही गैर राजनीतिक सोच वाला हो गया है. जब तक उसका मोबाइल फोन काम कर रहा है वो तब तक खुश रहेगा. इससे आगे की उसे चिंता नहीं. ये युवा जापान की बदलती राजनीति पर कुछ नहीं कहेगा. वो विरोध प्रदर्शनों में कोई लाभ नहीं देखता और उसकी दुनिया बहुत सिमट चुकी है.”