ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश
९ अप्रैल २०२१ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद नया नहीं, बल्कि कई दशक पुराना है. मस्जिद के इतिहास के मुताबिक इसे मुगल बादशाह औरंगजेब ने 17वीं शताब्दी में बनवाया था. कुछ लोग मानते हैं कि औरंगजेब ने मस्जिद 2500 साल पुराने काशी विश्वनाथ मंदिर को आंशिक रूप से तुड़वा कर बनवाई थी.
यही मान्यता एक दशकों पुराने विवाद की जड़ भी है जो आज भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है. इसी बीच राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बनारस के जिला सिविल कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद पर भी एक याचिका दायर कर दी गई. ताजा फैसला उसी याचिका पर आया है.
याचिका में मस्जिद की पूरी भूमि हिन्दुओं को देने की अपील की गई थी, इसी दावे के आधार पर कि वो भूमि मूल रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर की थी और औरंगजेब ने मंदिर के एक हिस्से को तोड़ कर उसे बनवाया था. मस्जिद की प्रबन्धन समिति ने याचिका का विरोध किया था और मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाए जाने के दावे को ठुकरा दिया था.
अदालत ने कहा कि चूंकि याचिका में किए गए दावों को मस्जिद पक्ष ने ठुकरा दिया है, तो अदालत को ही सच्चाई का पता लगाना पड़ेगा. इसके लिए अदालत ने पुरातत्व विभाग को मस्जिद का विस्तार से सर्वेक्षण करने के लिए कहा है. अदालत ने एक पांच सदस्यीय समिति के गठन का भी आदेश दिया जिसका काम यह पता लगाना होगा कि मस्जिद जहां है वहां उसके पहले कोई हिन्दू मंदिर था या नहीं.
समस्या यह भी है कि यह मामला 1998 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी लाया गया था और यह वहां अभी तक लंबित है. ऐसे में कोई निचली अदालत ने कैसे इस मामले पर फैसला दे दिया, इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य डॉ कासिम रसूल इलियास ने डीडब्ल्यू को बताया कि उनकी नजर में यह फैसला असंवैधानिक है और वो इसे चुनौती देंगे.
इलियास ने यह भी कहा, "ऐसा लगता है कि जज ने बाबरी मस्जिद के संदर्भ में यह फैसला सुनाया है." दरअसल 2019 में बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही कुछ लोगों ने "अयोध्या तो बस झांकी है, अभी काशी-मथुरा बाकी है" जैसे नारे लगाने शुरू कर दिए थे. कुछ लोगों ने बाकायदा घोषणा की थी कि अब बनारस और मथुरा में भी अयोध्या जैसे पुराने मंदिर-मस्जिद विवादों के समाधान का वक्त आ गया है.
इसी वजह से अयोध्या के इस विवाद को लेकर भी अयोध्या जैसी अप्रिय स्थिति बनने की आशंका व्यक्त की जा रही है. देखना होगा कि निचली अदालत के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जाती है या नहीं.