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केवल कला या कारोबार नहीं सिनेमा

२० जुलाई २०१३

जर्मनी में लोग सोचते हैं कि हर हिंदी फिल्म में शाह रुख खान होते हैं. वह हेलिकॉप्टर से कूदते हुए गाना गाते हैं और रंगीन कपड़ों में हीरोइन उनके इंतजार में नाचती गाती है, श्टुटगार्ट का फिल्मी मेला यह सोच बदल रहा है.

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तस्वीर: DW/M.Gopalakrishnan

श्टुटगार्ट में भारतीय फिल्म महोत्सव जर्मनी के बाकी फिल्म महोत्सवों से काफी अलग है. यहां दर्शकों को भी पता है कि उन्हें फिल्मों में कुछ अहम सामाजिक मुद्दों के बारे में ठोस जानकारी मिलेगी और शायद इसी वजह से हिंदी फिल्मों का नाच गाना यहां के फिल्म प्रेमियों को और लुभाता है. इनके लिए फिल्मों में मस्ती तो है ही, साथ ही उन्हें बहुरंगी भारत की परेशानियों और अच्छाइयों को जानने का मौका मिलता है.

मिसाल के तौर पर सिमोन मिलर, जो पिछले दस सालों से बॉलीवुड डांस करते हैं, "उस वक्त मैंने कुछ कुछ होता है देखा था और फिर मैंने नाचना शुरू किया. मैंने सब कुछ खुद से सीखा है." सिमोन के बॉलीवुड प्रेम की एक वजह उनकी दोस्त विदुषा भी हो सकती हैं. विदुषा भारतीय मूल की हैं और जर्मनी में इस तरह के महोत्सव उन्हें अपनी मूल संस्कृति से जुड़ने का मौका देते हैं.

Indisches Filmfestival Stuttgart 2013
सिमोन मिलरतस्वीर: DW/M.Gopalakrishnan

इसकी वजह फेस्टिवल में आराम का माहौल भी हो सकता है. यहां बर्लिन या कान महोत्सवों वाला तामझाम, तनाव और आपाधापी नहीं है. अदाकारों के लिए लाल कालीन बिछाई तो गई है, लेकिन वे आम तौर पर सिनेमा हॉल के बाहर सड़क किनारे दर्शकों के साथ गप्प लड़ाते दिख जाते हैं. ऐसे ही गप्प करते मिले विपिन शर्मा जिन्होंने तारे जमीं पर में इशान के पिता की भूमिका निभाई है. विपिन ने कहा कि श्टुटगार्ट में आकर वह कई सारी ऐसी फिल्में देख लेते हैं जो वह आम तौर पर भारत में नहीं देख पाते, “हम एक दूसरे की फिल्में देखते हैं, एक दूसरे से बात करते हैं, थोड़ी नेट्वर्किंग भी हो जाती है.” विपिन शर्मा के मुताबिक बॉलीवुड एक बड़ा बिजनेस हो गया है. “कला से ज्यादा यह कारोबार है, तो फोकस सितारों, बड़े बजट की फिल्में पर है और बॉलीवुड हमेशा से ही मनोरंजन की तरफ ध्यान देता रहा है.”

महोत्सव में विपिन शर्मा की फिल्म शाहिद भी है. यह फिल्म एक वकील के बारे में है जिसने मुंबई हमलों के एक आरोपी का बचाव किया. इस वकील की बाद में मौत हो जाती है. फिल्म का निर्देशन हंसल मेहता ने किया है, जो दस कहानियां से मशहूर हुए. जर्मनी में ज्यादातर लोगों के लिए बॉलीवुड का मतलब नाच गाना और शाहरुख खान है, लेकिन मेहता का मानना है, “जर्मनी की अपनी सिनेमा संस्कृति भी है, उन्हें सिनेमा परखना आता है.” शाहिद पर दर्शकों की प्रतिक्रिया अच्छी रही, जैसा कि किसी भी अच्छी फिल्म के बाद होता है. फिल्म को पहले स्कूली बच्चों ने देखा. मेहता ने बताया, “बच्चों ने मुद्दों को समझा, फिर हमसे उस बारे में बहस की, एक वैश्विक स्तर पर और यह ऐसे बच्चे हैं जो 15 से लेकर 18 साल की उम्र के हैं.”

Indisches Filmfestival Stuttgart 2013
विपिन शर्मातस्वीर: DW/M.Gopalakrishnan

इस महोत्सव में युवाओं की भूमिका साफ उभर कर आती है. शाहिद में ही वकील का किरदार निभाया है राज कुमार यादव ने जो गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट 2 और काय पो चे से मशहूर हुए. 29 साल के राज कुमार को भी इस फेस्टिवल में बहुत मजा आ रहा है. राजकुमार के मुताबिक भारत में भी ऐसी फिल्मों को बेचना पहले से आसान हो गया है, "हाल ही में एक स्टूडियो ने हमारी फिल्म खरीदी है. जाहिर है कि उन्हें लगता है वह इसे बेच सकेंगे और कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें बेचने से ज्यादा आप चाहते हैं कि लोग इसे देखें. यह ऐसी ही एक फिल्म है, आप चाहेंगे कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस फिल्म को देखें."

काय पो चे, शाहिद के साथ एक और फिल्म कलकत्ता टैक्सी इस महोत्सव में चर्चा बटोर रही है. तीन फिल्मों के जरिए निर्देशक विक्रम दासगुप्ता एक थैली की कहानी सुनाते हैं जो गलती से एक टैक्सी में रह जाती है. थैली के साथ साथ कहानी टैक्सी वाले, थैली के मालिक और थैली चुराने वाले एक तीसरे शख्स की है. कलकत्ता टैक्सी के अलावा महोत्सव में बॉम्बे टॉकीज, तमिल फिल्म 500 रुपये-पांच लोग, मलयाली अभिनेत्री रेवती के अभिनय वाली मॉली आंटी रॉक्स जैसी फिल्में हैं. हालांकि बॉलीवुड अपने बड़े सितारों स्टार्स के बिना अधूरा है, इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता. आमिर खान और करीना कपूर की तलाश और ऐश्वर्या राय की चोखेर बाली भी इस बार फेस्टिवल का हिस्सा हैं.

Indisches Filmfestival Stuttgart 2013
हंसल मेहतातस्वीर: DW/M.Gopalakrishnan

दर्शकों को इंतजार है कुवेरा और नेल्सन सिवलिंगम की फिल्म द रजनी इफेक्ट का है जिसमें तायहो नाम का जापानी लड़का रजनीकांत की तरह अगला तमिल सुपस्टार बनना चाहता है. वह रजनीकांत पर फिल्म बनाने की कोशिश करता है. तायहो के पिता गुजर चुके हैं और वह अपनी मां के साथ लंदन में रहता है. उसके पिता रजनीकांत के बड़े फैन थे और तायहो अपने पिता की याद में खुद रजनी का फैन बन जाता है. फिल्म बनाने की कोशिश में उसे कई दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं.

पैरेलल सिनेमा और एंटरटेनमेंट, भारतीय फिल्म जगत में हर दर्शक को अपने लिए मसाला मिल जाता है. इस महोत्सव में भी भारत की फिल्म संस्कृति के अलग अलग पहलू दिखाए जा रहे हैं. कला और मनोरंजन एक कैसे हो सकते हैं, श्टुटगार्ट महोत्सव इसकी मिसाल है. तभी तो उस्ताद निशात खान एक बड़ी स्क्रीन पर 1929 की फिल्म प्रपंच पाश की छवियां देखते रहते हैं. फिल्म में आवाज नहीं है, क्योंकि उस वक्त तकनीक इतनी विकसित नहीं हुई थी. लेकिन दर्शकों को खींचने का एक माध्यम था. संगीत और संगीतकार दर्शकों के सामने, फिल्म की कहानी और तस्वीर के साथ धुन बजाते- कभी वीणा की तान पर नायिका व्याकुल हो जाती तो कभी बांसुरी की आवाज पर नायक अपनी आंखें खोलता और दूर पहाड़ी पर से उगते सूरज को निहारता.

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन, श्टुटगार्ट

संपादनः निखिल रंजन

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