कैसे बचें पर्दाफाश करने वाले!
१५ जुलाई २०१३अमेरिका के अलावा यूरोप में भी इस तरह राजफाश करने वालों की सुरक्षा का बहुत ज्यादा इंतजाम नहीं है. हालांकि यूरोपीय संघ ने उनके लिए खास नियमों के बारे में बार बार बात होती है, पर कुछ ठोस नहीं हो पाया है. बर्लिन के ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल में ऐसे लोगों की सुरक्षा विभाग के समन्वयक मार्क वोर्थ ने डॉयचे वेले के साथ इस मुद्दे पर बात की.
डॉयचे वेलेः एडवर्ड स्नोडन का केस दुनिया भर में मशहूर हो चुका है. लेकिन यूरोप में इस तरह से जानकारी देने वाले लोगों की क्या स्थिति है. सरकारी या निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी अगर ऐसा कोई कदम उठाएं तो क्या वे सुरक्षित हैं?
मार्क वोर्थः यूरोपीय संघ के जिस देश में पर्दाफाश करने वालों के लिए कड़े कानून हैं और जहां इसे अच्छे ढंग से लागू किया जा सकता है, वह है ब्रिटेन. वहां 1998 से ऐसा कानून है, जो निजी और सार्वजनिक क्षेत्र और गैरसरकारी संगठनों में काम करने वाले कर्मचारियों को सुरक्षा देता है. इसलिए अगर कोई गलत काम, भ्रष्टाचार या अपराध जैसे मामलों के बारे में लोगों को बताना चाहते हैं और यह जनता के हित में है, तो वहां नौकरी से निकाले जाने, डिमोट करने, सताने और जबरदस्ती ट्रांसफर के खिलाफ कानूनन मदद का प्रावधान है.
हंगरी में भी ऐसे लोगों की मदद के लिए कानून है. लेकिन उनके पास कोई ऐसी एजेंसी नहीं है जहां शिकायत दर्ज हो सके. हमने पाया है कि यह हकीकत में काम नहीं करता. लेकिन यही यूरोपीय संघ के दो देश हैं जहां व्हिसिलब्लोअर यानी राजफाश करने वालों की सुरक्षा का कानून है.
इसके अलावा तीन देश, रोमानिया, लक्जमबर्ग और स्लोवेनिया में भी इस तरह के कानून हैं. लेकिन इनका दायरा काफी कम है. लक्जमबर्ग और स्लोवेनिया में इन्हें भ्रष्टाचार विरोधी कानून में शामिल किया गया है. बाकी 22 यूरोपीय संघ देशों में इनके लिए बहुत कम या न के बराबर कानून है.
डॉयचे वेलेः कानूनी स्थिति इतनी कमजोर क्यों है?
मार्क वोर्थः राजफाश करने वालों के मामले किसी भी कानून के नए हिस्से में आता है. अमेरिका में यह 1970 के दशक के आखिर में सामने आया. जहां सरकारी कर्मचारियों के लिए कानून है. यूरोप में यह बहस 1990 तक शुरू ही नहीं हुई. जब तक वहां गंभीर सिलसिलेवार आपदाएं, साजिश और दुर्घटनाएं नहीं हुईं, जिन्हें रोका जा सकता था. इसकी वजह से 1998 में जनहित सूचना अधिकार आया. फिर मामला ढीला पड़ गया. इसके बाद 2008 और 2009 में कुछ प्रस्ताव रखे गए या कुछ कानून बने. मुख्य तौर पर आर्थिक संकट के कारण. लोग भ्रष्टाचार, धांधली और गबन के प्रति जागरूक हुए. और आर्थिक संकट के कारण राजनीतिक खलबली भी काफी हुई. अब ग्रीस, फ्रांस, स्लोवाकिया जैसे देश, जहां इन लोगों के लिए कानून नहीं हैं, वो भी इसका प्रस्ताव रख रहे हैं.
डॉयचे वेलेः यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की अलग अलग प्रतिक्रिया का क्या कारण है. कानूनी और सांस्कृतिक परंपराओं के मद्देनजर आप क्या कहेंगे.
मार्क वोर्थः कई देशों में इस तरह राजफाश करने की परंपरा नहीं है. इसकी ऐतिहासिक वजह भी हैं. अगर आप मदद की भी दुहाई देते हुए ऐसा करते हैं, तो भी आप को देशद्रोही और मुखबिर जैसे नामों से पुकारा जाने लगता है. इसे लेकर लोगों में पुरानी सोच है. हमें लोगों को जानकारी देनी होगी.
कम्युनिस्ट काल के पूर्वी जर्मनी में ऐसे तंत्र की बात कर रहे हैं जो अभी 24 साल पहले ही खत्म हुआ है. हम दादा दादी की पीढ़ी की बात नहीं कर रहे, बल्कि उन लोगों की कर रहे हैं जो अभी युवा हैं. जिन्हें ये याद है कि उनके पड़ोसी, दोस्त या साथी उनकी जासूसी करते थे. सोवियत दौर से जुड़े देशों में ये याद बहुत ताजा है.
तो किसी के बारे में कुछ कहा जाना अच्छा नहीं माना जाता, भले ही वह अच्छे इरादे से कहा जा रहा हो. यूरोपीय लोगों के दिमाग में अभी यह फर्क पूरी तरह आया नहीं है. वहीं अमेरिका का इतिहास बिलकुल अलग है. वहां राजनीतिक इतिहास और राजफाश करने वालों को मीडिया और समाज में किस तरह देखा जाता है, इसका इतिहास है.
डॉयचे वेलेः ब्रसेल्स (यूरोपीय संघ का मुख्यालय) इस समस्या के हल के लिए क्या कर रहा है?
मार्क वोर्थः हम इसके लिए कोशिश कर रहे हैं. यूरोपीय परिषद में कुछ समितियां हैं, जिन्होंने राजफाश कानून के लिए सुझाव दिए हैं. ये काफी मजबूत दिखाई देते हैं लेकिन जब ये कानून बनेंगे तो इसका रूप क्या होगा, ये देखना होगा. हालांकि पिछले पांच साल में जो भी हुआ है, मैं कहूंगा कि कुछ समय में इस मुद्दे पर कानून बहुत जरूरी हो गया है. हम चाहते हैं कि यूरोपीय संघ में इस पर लोगों की सलाह ली जाए, बहस शुरू की जाए.
डॉयचे वेलेः क्या यूरोपीय संघ के सदस्य देश सहयोग के लिए तैयार हैं या फिर सलाह मानने में हिचकिचाते हैं?
मार्क वोर्थः यूरोपीय संघ के देशों में नेताओं ने कई बयान दिए हैं, जो पर्दाफाश कानून का समर्थन करते हैं. लेकिन इस पर काम बहुत हो रहा है. या तो वो ऐसे कानून का प्रस्ताव रखते हैं, जो लागू नहीं हो सकता या सरकार बदल जाती है या फिर कुछ नहीं होता. कुछ देश कई साल से इस कानून के बारे में बात कर रहे हैं लेकिन 10 साल से कुछ नहीं हुआ.
यूरोपीय संघ मानवाधिकारों के मुद्दे पर नेतृत्व करना चाहता है. नागरिकों की भागीदारी, सूचना पाने के मामले में भी. अगर आप यूरोपीय मूल अधिकारों के चार्टर को देखेंगे तो इस कानून के तीन मुद्दे हैं, 1. अभिव्यक्ति की आजादी, 2. गलत तरीके से नौकरी से निकाले जाने के खिलाफ स्वतंत्रता और 3. समाधानों तक पहुंच.
अगर यूरोपीय संघ बुनियादी अधिकारों के स्तर को बनाए रखना चाहता है, तो उसे इस कानून को लाना ही होगा. या फिर ऐसे नियम लागू करने होंगे. मुझे आश्चर्य होगा कि कुछ संघ देश इसके लिए क्या करने वाले हैं क्योंकि इस पर कई बार काफी चर्चा हुई, समितियां बनीं लेकिन आखिर में कुछ नहीं हुआ.
यह बात सबके सामने है कि इस तरह के कानून से ही अपराध से लड़ा जा सकता है, भ्रष्टाचार से मुकाबला किया जा सकता है और गलत चीजों को रोका जा सकता है.
डॉयचे वेलेः जर्मनी की क्या स्थिति है?
मार्क वोर्थः जर्मनी में चांसलर अंगेला मैर्केल के गठबंधन ने पिछले महीने ही वोट किया कि वह इस मुद्दे पर कोई प्रस्ताव नहीं सुनेगी. ग्रीन, लेफ्ट और सोशल डेमोक्रैट्स ने दो एक साल पहले कुछ प्रस्ताव रखे थे. तो कुल मिला कर जर्मनी इसके लिए अच्छा देश नहीं है. इनके लिए यहां कोई सहायता नहीं. हालांकि पुराना एक मामला है जिसके तहत मानवाधिकार के लिए बने यूरोपीय कोर्ट ने फैसला दिया था कि राजफाश करने वालों के खिलाफ कार्रवाई मानवाधिकार का हनन हो सकता है, व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी का भी. बर्लिन में एक नर्स पर इसलिए मुकदमा चला कि उसने नर्सिंग होम में किसी व्यक्ति के बुरे इलाज का भांडाफोड़ किया. नर्स को निकाल दिया गया और जर्मन अदालत ने उसके खिलाफ फैसला दिया. जर्मनी के नागरिक कानून के तहत कहा गया है कि किसी व्यक्ति को तब निकाला जा सकता है, जब यह सामाजिक तौर पर सही हो. लेकिन इसका क्या मतलब होता है और ये कैसे तय किया जाएगा कि सामाजिक तौर पर क्या सही है, क्या नहीं. तो कुल मिला कर पिछले दिनों में इस मुद्दे पर जर्मनी का रिकॉर्ड ठीक नहीं है.
इंटरव्यूः आंद्रियास इलमर/एएम
संपादनः ए जमाल