कॉमनवेल्थ के लिए कैसे बुला रहा है भारत
१५ सितम्बर २०१०29 अगस्त की सुबह दिल्ली की सड़कें कुछ अलग दिखीं. कुछ लेन बंद कर दी गईं. साफ सफाई ज्यादा. सुरक्षा ज्यादा. पुलिसकर्मी मुस्तैद. जो लोग समाचार नहीं सुन रहे थे, वे लोग तो कनॉट प्लेस और उसके आस पास के इलाके से गुजरते हुए इधर उधर देख कर हैरान थे कि माजरा क्या है.
कुछ देर बाद इन सड़कों पर सैकड़ों साइकिल सवार निकले तब बात समझ में आई. दरअसल, यह कॉमनवेल्थ खेलों की एक छोटी सी झलक थी. इसे रोड रेस की प्रतियोगिताओं के परीक्षण स्पर्धा (टेस्ट इवेंट) के तौर पर आयोजित किया गया. और लोगों को समझाने के लिए कि कॉमनवेल्थ खेलों में माहौल कैसा रहेगा.
कॉमनवेल्थ बैटन रिले जिसे 29 अक्तूबर 2009 को इंग्लैंड की महारानी ने लंदन में बकिंघम पैलेस से रवाना किया वह 69 देशों की यात्रा पूरी कर लेने के बाद आजकल भारत में है. भारत के विभिन्न शहरों से होती हुई यह रिले 30 सितंबर को दिल्ली पहुंचेगी. यहां तीन दिन तक दिल्ली की अलग अलग जगहों की सैर करने के बाद यह मशाल कॉमनवेल्थ खेलों के उदघाटन समारोह के लिए कॉमनवेल्थ गांव में आएगी.
लेकिन बैटन खेलों के प्रचार का एक पारंपरिक जरिया है जो दशकों से चला आ रहा है. 2010 के खेलों के प्रचार के लिए कुछ अलग तरह के तरीके भी आजमाए जा रहे हैं. मसलन आकाशवाणी ने खेलों के लिए खास तौर पर एक एफएम चैनल शुरू किया है. एक सितंबर से शुरू हुआ यह चैनल सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक प्रसारण कर रहा है.
इस पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में खेलों से जुड़ी तमाम जानकारियों के अलावा दिल्ली के पर्यटन स्थलों और देश की कला और संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं. प्रसार भारती के मुताबिक इस चैनल का मकसद खेलों को उत्साह को सामने लाना और नौजवानों में खेल भावना को जगाना है.
इस भावना को जगाने का काम भारत के छह स्टार खिलाड़ी भी कर रहे हैं. निशानेबाज अभिनव बिंद्रा, बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल, 2006 कॉमनवेल्थ के स्टार रहे समरेश जंग, मुक्केबाज विजेंद्र कुमार, पहलवान सुशील कुमार और चार बार की वर्ल्ड चैंपियन मुक्केबाज एमसी मेरीकॉम को नई दिल्ली में होने वाले खेलों का ब्रैंड एम्बैस्डर बनाया गया है. ये लोग जगह जगह जाकर कोशिश कर रहे हैं कि खेलों का रंग सब पर चढ़ जाए.
कॉमनवेल्थ खेलों का रंग दिल्ली की बसों पर भी चढ़ा हुआ है. खेलों के लिए खुद को तैयार कर रही दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन यानी डीटीसी भी कॉमनवेल्थ खेलों के प्रचार प्रसार से जुड़ने जा रही है. डीटीसी गेम्स में इस्तेमाल होने वाली अपनी बसों को कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़े डिजाइन से सजाने की योजना पर काम कर रही है. इन वातानुकूलित बसों के अलावा बस स्टैंड को भी विशेष तौर पर तैयार किए गए डिजाइनों से सजाया जाना है.
इस पर करीब सात करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. बसों के दोनों ओर इस डिजाइन को विनायल रैपिंग की तरह लगाया जाएगा. यानी खेलों के बाद से हटाया भी जा सकेगा. डीटीसी का कहना है कि इस डिजाइन के लिए हर बस पर होने वाला खर्च लगभग 12,299 रुपये होगा.
डीटीसी की यह कवायद भले ही दिल्ली तक सीमित रहेगी, लेकिन कॉमनवेल्थ खेलों के प्रचार का काम दिल्ली की सीमाओं में नहीं बंधा है. बैटन रिले के अलावा एक और जरिया है जो शहर शहर पहुंचकर खेलों की जानकारी दिल्ली से दूर बसे उन लोगों तक पहुंचा रहा है, जिनके लिए कॉमनवेल्थ खेल दिल्ली में हो रही किसी खेल प्रतियोगिता से ज्यादा नहीं हैं.
यह है कॉमनवेल्थ एक्सप्रेस ट्रेन. पूरे भारत की सैर पर निकली इस ट्रेन को दिल्ली से इसी साल 24 जून को रवाना किया गया. और सबसे पहले यह ट्रेन अमृतसर पहुंची, जहां इसने पाकिस्तान से आ रही बैटन रिले का स्वागत किया.
2 अक्तूबर को दिल्ली वापस पहुंचने से पहले यह ट्रेन कुल 50 शहरों में जाएगी. कॉमनवेल्थ एक्सप्रेस ट्रेन में 11 कोच हैं, जिनमें कॉमनवेल्थ खेलों के बारे में जानकारी देने वाली प्रदर्शनियां लगाई गई हैं. इन 11 डिब्बों की एक सैर से ही लोग कॉमनवेल्थ खेलों के पूरे इतिहास के बारे में जान सकते हैं. एक डिब्बा भारत की उपलब्धियों का बखान करता है, तो दूसरे में खेलों की वजह से दिल्ली में हुए बदलाव और स्टेडियमों के छोटे छोटे मॉडल दिखाए गए हैं.
एक कोच पूरी तरह 2010 के नई दिल्ली खेलों को दिया गया है. इसमें दिखाया गया है कि कौन से खेल कहां और कब होंगे. लेकिन आखिरी छह कोच देश में हुई सूचना क्रांति की गाथा गाते नजर आते हैं.
जितना इंतजार लोगों को कॉमनवेल्थ खेलों का है, उससे कहीं ज्यादा इंतजार इसके थीम सॉन्ग का था, जो अब पेश किया जा चुका है. यारो इंडिया बुला लिया नाम का यह गीत ऑस्कर विजेता संगीतकार ए आर रहमान ने तैयार किया है.
कॉमनवेल्थ खेलों के प्रचार के लिए इसे पूरी दुनिया में प्रसारित किया जा रहा है ताकि जगह जगह से लोग खेल देखने दिल्ली आएं. यानी कॉमनवेल्थ खेलों के लिए इंडिया बुला रहा है, इसका प्रचार करने की कोशिशें काफी की गई हैं. उनमें से सफल कितनी होती हैं, यह 3 अक्तूबर को सामने आएगा.