तकनीक कराएगी मर चुके लोगों से बात
१७ अप्रैल २०२०दक्षिण कोरिया से लेकर अमेरिका तक ऐसी कई नई नई टेक स्टार्टअप कंपनियां खुली हैं जो मरने वालों को डिजिटल दुनिया के अवतार बना रही हैं. परिजनों से केवल कुछ क्लिक दूर मृतकों के ऐसे अवतार उनके बारे में उपलब्ध ऑनलाइन डाटा की मदद से बनाए जा रहे हैं. हालांकि डाटा विशेषज्ञ इस बात पर चिंता जता रहे हैं कि मृत लोगों की जानकारी इस्तेमाल करने में तमाम कानूनी और नैतिक पचड़े शामिल हैं.
डाटा सुरक्षा का सवाल
अमेरिका की एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के स्कूल फॉर द फ्यूचर ऑफ इनोवेशन इन सोसाइटी में पढ़ाने वाले फहीम हुसैन बताते हैं कि पर्याप्त डाटा हो तो तकनीकी रूप से किसी को भी ऑनलाइन बनाया जा सकता है. उनकी चिंता यह है कि इससे "कई तरह की नैतिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं." फिलहाल ऐसी सेवाएं देने वाली कई कंपनियां जीते जी किसी इंसान से उसकी अनुमति लेने के बाद ही मरने के बाद उसका डिजिटल अवतार मुहैया कराने की सर्विस दे रही हैं. लेकिन इस क्षेत्र में रेगुलेशन की इतनी कमी है कि कई अन्य लोग मृत जनों का डाटा हासिल कर सकते हैं और उसका गलत इस्तेमाल कर उन्हें ऑनलाइन दुनिया में जीवित दिखा सकते हैं.
ब्रिटेन में बर्मिंघम के ऐश्टन यूनिवर्सिटी में सीनियर लेक्चरर एडीना हार्बिंजा ने बताया, "विश्व के ज्यादातर देशों में मरने वालों का डाटा सुरक्षित नहीं है. इसलिए कानूनन किसी का भी अवतार बनाने से किसी को भी रोका नहीं जा सकता." यानि बिना किसी से अनुमति लिए ऐसा करना संभव है और इस तरह उस मृत व्यक्ति से जुड़े दूसरे लोगों का डाटा भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
‘वीआर' और ‘एआई'
वर्चुअल रिएलिटी से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक के क्षेत्र में हुए विकास ने लोगों के सामने ऐसे कई विकल्प ला दिए हैं. फरवरी में दक्षिण कोरिया के एक टीवी चैनल ने एक मां और उसकी 7 साल की उम्र में मर चुकी बेटी के मिलन का वीडियो दिखाया. बच्ची का यह डिजिटल अवतार वीआर की मदद से बनाया गया था, जिसे एक उसी उम्र की चाइल्ड ऐक्टर के ऊपर आजमाया गया. यानि मां ने जो बच्ची देखी उसकी शक्ल उनकी बेटी जैसी और भावनाएं ऐक्टर की थीं.
इसी तरह एक पुर्तगाली डिवेलपर हेनरिके यॉर्गे का ETER9 नामका सोशल नेटवर्क है जो सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों के बर्ताव को कॉपी करने वाली उनकी एक एआई छवि बनाता है. कुछ समय बाद या मरने के बाद भी यह छवि उस व्यक्ति की ओर से वैसे ही कमेंट पोस्ट करती है जैसा वे जिंदा होने पर करते थे. यॉर्गे ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को ईमेल के जरिए इसके फायदों के बारे ऐसे बताया कि "आज से कुछ साल बाद भी आपके पड़पोते आपसे बात कर सकेंगे, भले ही उन्हें आपसे मिलने का मौका नहीं मिला था."
अमेरिका की इटरनिमे और रेप्लिका जैसी कई कंपनियां इस समय ऐसी सेवाएं दे रही हैं जो लोगों के डिजिटल प्रतिरूप बनाती हैं. ये प्रतिरूप ऐसे किसी भी इंसान के साथ बातचीत कर सकते हैं जो उदास हों या जब उन्हें किसी से बात करने की जरूरत महसूस हो. दूसरे स्टार्टअप भी हैं जैसे सेफबियॉन्ड और गॉननॉटगॉन जिसमें लोग अपने प्रियजनों के लिए संदेश रिकॉर्ड कर सकते हैं. यह उनके मरने के बाद उनके वीडियो संदेश या चिट्ठी को प्रियजनों के जन्मदिन या किसी अहम दिन पर सीधे पहुंचा देंगे.
आरपी/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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