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कौन पढ़े डॉक्टरों की पर्ची!

९ जुलाई २०१३

डॉक्टर चाहे कितना भी बड़ा हो, उसके हाथ का लिखा प्रेस्क्रिप्शन पढ़ने में लोगों के पसीने छूट जाते हैं. कई बार तो दवा दुकानदार भी उनकी लिखी दवाओं के नाम नहीं पढ़ पाते. लेकिन अब इस हालत को सुधारने की पहल हो रही है.

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तस्वीर: DW/P. Tewari

कुछ राज्यों में अब इसके लिए डॉक्टरों के बीच जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. तमिलनाडु में छपी हुई पर्ची देने की व्यवस्था शुरू हो गई है. अब पश्चिम बंगाल सरकार ने भी इस दिशा में पहल की है. कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग ने इस सप्ताह फिलहाल डॉक्टरों को पर्ची पर दवाओं के नाम साफ साफ अक्षरों में लिखने का निर्देश जारी किया गया है. इस साल के आखिर तक यहां भी छपी हुई पर्ची देने की व्यवस्था शुरू हो जाएगी. उस पर डॉक्टर को हस्ताक्षर करने होंगे.

अमेरिका और यूरोप में कंप्यूटर से छपी हुई पर्ची देने की व्यवस्था है. इससे दवा विक्रेताओं को तो सहूलियत होती ही है, मरीजों को भी आसानी होती है. पश्चिम बंगाल सरकार ने इस सप्ताह जो निर्देश जारी किया है वह सिर्फ सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों पर ही लागू होगा. राज्य में कोई 36,000 डॉक्टर हैं. इनमें से महज 10 फीसदी यानी साढ़े 3,500 ही सरकारी विभागों में काम करते हैं. आखिर डॉक्टरों की पर्ची पढ़ पाना सबके बूते की बात क्यों नहीं है.

Indien Gesundheitssystem Ausstellung von Rezepten Apotheke
तस्वीर: DW/P. Tewari

कोलकाता के निजी अस्पताल में काम कर रहे डॉक्टर सुनील राय कहते हैं, "यह आदत बन गई है. अब हम हर दवा का नाम साफ लिखने लगें तो काफी समय लगेगा. इसलिए पहला और आखिरी अक्षर साफ लिखने के बाद बीच में घसीट कर ही काम चलाया जाता है."

समस्या

डॉक्टरों की पर्ची साफ नहीं होने की वजह से दवा दुकानदारों को भी खासी समस्या से जूझना पड़ता है. इस बात का कोई ठोस आंकड़ा तो नहीं है लेकिन मिलते जुलते नाम की वजह से कई बार मरीज को गलत दवा दे दी जाती है. कोलकाता के एक दवा विक्रेता धीरेन सरकार कहते हैं, "हम कुछ तो अनुभव से सीखते हैं और बाकी काम अनुमान के आधार पर होता है." वह बताते हैं कि डाक्टर की विशेषज्ञता के आधार पर हम दवा का अनुमान लगाते हैं. लेकिन इसमें गलती होने की संभावना रहती है.

कौशिक दासगुप्ता के पिता के लिए डॉक्टर ने सर्दी और खांसी की दवा लिखी थी. लेकिन दुकानदार ने गलती से उनको डायबिटीज की दवा दे दी. कौशिक कहते हैं, "वह तो मैंने डॉक्टर से दवा दिखाई तब गलती का पता चला. वरना क्या होता, कहना मुश्किल है."

नियमों की अनदेखी

वैसे मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के नियमों में लिखा है कि डॉक्टरों को अपनी पर्ची साफ साफ बड़े अक्षरों में लिखनी होगी. निजी अस्पतालों को मान्यता देने वाले नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पीटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स की निदेशक गायत्री वी महेंद्रू कहती हैं, "विभिन्न निजी अस्पतालों को मान्यता देते समय यह शर्त साफ लिखी जाती है कि दवा की पर्ची बड़े और साफ अक्षरों में लिखनी होगी."

Indien Gesundheitssystem Ausstellung von Rezepten Apotheke
तस्वीर: DW/P. Tewari

बंगाल केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन राज्य में दवा विक्रेताओं का सबसे बड़ा संगठन है. इसके महासचिव तुषार चक्रवर्ती कहते हैं, "पर्ची साफ अक्षरों में नहीं होने की वजह से हमारे सदस्यों को काफी दिक्कत होती है. कुछ दवाएं तो महज अनुमान के आधार पर दी जाती हैं." वह बताते हैं कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ बैठक में भी कई बार यह मुद्दा उठाया गया है लेकिन "अब तक इसका कोई समाधान नहीं" हो सका है.

ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ फाउंडेशन ट्रस्ट से जुड़े मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरविंद नारायण चौधरी कहते हैं, "यहां यह समस्या दूर करना मुश्किल है. इसकी वजह है कि मौजूदा नियमों में अस्पष्ट अक्षरों में पर्ची लिखने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं है. ब्रिटेन में दवा दुकानों पर मौजूद फार्मासिस्टों की शिकायत पर संबंधित डॉक्टर का पंजीकरण रद्द हो सकता है."

आखिर क्यों लिखते हैं ऐसी पर्ची

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की बंगाल शाखा ने सरकार की ओर जारी ताजा दिशानिर्देशों का तो स्वागत किया है. लेकिन उसकी दलील है कि काम के भारी दबाव, मरीजों की भीड़ और समय की कमी ही अस्पष्ट पर्ची लिखने की मूल वजह है. राज्य के पूर्व स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक सोमेंद्रनाथ बनर्जी कहते हैं, "डॉक्टर जानबूझ कर खराब लिखावट में पर्ची नहीं लिखते. पढ़ाई के दौरान लिखावट साफ होने के बावजूद प्रैक्टिस बढ़ने के साथ लिखावट खराब होती जाती है."

सुधार की पहल

अब इस हालत में सुधार की दिशा में पहल हो रही है. राज्य के स्वास्थ्य सेवा निदेशक बीआर सत्पथी कहते हैं, "हम इस साल के आखिर तक छपी हुई पर्ची की व्यवस्था शुरू करेंगे. इन पर संबधित डॉक्टर के हस्ताक्षर होंगे. वह कहते हैं कि निजी अस्पतालों के मुकाबले सरकारी अस्पतालों में काम का दबाव ज्यादा होता है. इसलिए यह व्यवस्था रातोंरात शुरू नहीं की जा सकती. सरकार पहले ही तमाम अस्पतालों में डॉक्टरों को पर्ची पर दवाओं के नाम साफ साफ लिखने का निर्देश जारी कर चुकी है."

सरकार की इस पहल से अब शायद उन लाखों मरीजों को राहत मिलेगी जो डॉक्टर और दवा विक्रेता की गलती से एक मर्ज के इलाज के लिए किसी दूसरे मर्ज की दवा खाते रहे हैं.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः ए जमाल

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