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कौल के निधन से बॉलीवुड की आंखें नम

७ जुलाई २०११

भारतीय फिल्म की दिग्गज हस्तियों ने जाने माने फिल्म निर्माता मणि कौल के निधन पर गहरा शोक जताया. उसकी रोटी और दुविधा जैसी झकझोर देने वाली फिल्में बनाने वाले कौल भारतीय सिनेमा का चेहरा बदलने वालों में थे.

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तस्वीर: AP

मणि कौल को उन फिल्म निर्माताओं में गिना जाता है जिन्होंने 1969 में अपनी पहली फिल्म उसकी रोटी से भारतीय सिनेमा के चरित्र और चेहरे को बदल दिया. भारत में उन्हें कम लोग जानते थे पर यूरोप में कौल को हमेशा उच्च कोटि का सम्मान मिला.

उसकी रोटी समय पर खाने पहुंचाने के लिए जूझती एक महिला की दर्द भरी कहानी बयां करती है, जो यूरोप के दर्शकों को भी हिला गई. भारतीय सिनेमा को इस फिल्म के जरिए यूरोप में सम्मान की नजर से देखा जाने लगा. कौल को इतना सम्मान मिला कि 1971 में उन्हें बर्लिन फिल्म फेस्टिवल की ज्यूरी में शामिल किया गया. 1973 में कौल ने पहली रंगीन फिल्म दुविधा बनाई. यह फिल्म भारत में बहुत ज्यादा नहीं चली लेकिन यूरोप के देशों में दिखाई गई. मोहन राकेश के उपन्यास पर बनाई गई उनकी फिल्म आषाढ़ का एक दिन भी भारतीय सिनेमा की श्रेष्ठ फिल्मों में गिनी जाती है.

कौल की फिल्मों ने साबित किया कि भारतीय सिनेमा का अर्थ नाचना गाना, बदला लेने के लिए लड़ना, कुंभ में बच्चे का खोना या बरसात में भूल हो जाना भर नहीं है. सुखद अनुभूति या सुखद अंत के सिलसिले को कौल ने चकनाचूर करके रख दिया. 1944 में जोधपुर में पैदा हुए इस फिल्म निर्माता ने साबित कर दिखाया कि भारतीय फिल्में पश्चिमी सिनेमा से कमजोर नहीं हैं.

लंबी बीमारी के बाद बुधवार को जब गुड़गांव से कौल के निधन की खबर आई तो बॉलीवुड के मंझे हुए तबके में शोक की लहर छा गई. मशहूर फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने कहा, "दोस्तों का विदा होना आपका इस वक्त की अहमियत का एहसास दिलाता है. आरआईपी मणि कौल, दोस्त, निर्देशक, एक ऐसा जोशीला समर्पण जो फिल्मों की कला के बाहरी मायने ढूंढता रहा. हमें उनकी कमी खलेगी."

66 साल की उम्र में कौल के निधन से शोकमग्न अनुपम खेर ने सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर लिखा, "मणि कौल भारतीय सिनेमा को नई लहर का रास्ता दिखाने वाले थे. एक महान संवाद करने वाले. हम उनके आभामंडल को मिस करेंगे."

युवा फिल्म निर्देशकों में गंभीर सिनेमा से लगाव रखने वाले अनुराग कश्यप कहते हैं, "भारत के एक महान फिल्म निर्माता. दुर्भाग्य से यूरोप के लोग उन्हें भारत के लोगों से ज्यादा जानते हैं."

कौल को बेस्ट डायरेक्शन के लिए दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. ठुमकों और आइटम नंबरों के दौर में कौल का जाना युवा पीढ़ी को भले ही खामोशी और 'कौन....कौल' टाइप का लगे लेकिन उनकी फिल्में आज भी बता सकती हैं कि भारतीय सिनेमा किन ऊंचाइयों को छू सकता है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: ए जमाल