क्या जलवायु परिवर्तन खा जाएगा पोलर बेयर को?
रूस के कुछ वैज्ञानिक आर्कटिक इलाकों के वन्य जीवों पर जलवायु परिवर्तन के असर का पता लगा रहे हैं. उनका विशेष ध्यान है ध्रुवीय भालुओं पर, जिन्हें ग्लोबल वॉर्मिंग के आगे सबसे संवेदनशील जानवरों में से एक माना जाता है.
नींद में है शोध का यह साझेदार
यह ध्रुवीय भालू इस शोध में हिस्सा जरूर ले रहा है लेकिन अपनी मर्जी से नहीं. वैज्ञानिकों को पहले इसे बेहोश करना पड़ा. रूस के कुछ वैज्ञानिक आर्कटिक इलाकों के वन्य जीवों पर जलवायु परिवर्तन के असर का पता लगाने के लिए एक शोध के मुख्य चरण में हैं. पोलर बेयर इस प्रोजेक्ट का एक मुख्य बिंदु हैं.
करीब से भालू का निरीक्षण
प्रोजेक्ट का लक्ष्य है ध्रुवीय भालुओं के स्वास्थ्य और व्यवहार पर नजर रखना और यह पता करना कि वो अपने प्राकृतिक वास में आ रहे बदलावों से कैसे जूझ रहे हैं. यह बदलाव मोटे तौर पर जलवायु से संबंधित हैं.
जलवायु परिवर्तन का प्रतीक
आर्कटिक धरती के बाकी हिस्सों से दो गुना ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है. इस से इलाके के वन्य-जीवों पर गंभीर असर पड़ा है. यहां के सबसे बड़े परभक्षी होने के बावजूद, ध्रुवीय भालू जलवायु परिवर्तन के आगे सबसे संवेदनशील प्रजातियों में से हैं.
बर्फ नहीं तो शिकार नहीं
पोलर बेयर सील मछलियों और दूसरी मछलियों का शिकार करने के लिए आर्कटिक समुद्र के इर्द गिर्द फैली बर्फ पर निर्भर होते हैं. जैसे जैसे यह बर्फ पिघलती है, भालुओं को खाने के लिए या तो दूर तक तैरना पड़ता है या किनारे पर दूर तक भटकना पड़ता है.
अंडों का भोजन
भालू का भोजन सील मछलियों और दूसरी मछलियों की आबादी के बीच संतुलन बनाए रखता है लेकिन अब स्थिति बदल रही है. कैनेडियन यूनिवर्सिटी ऑफ विंडसर में हाल ही में हुए एक अध्ययन में सामने आया कि भूखे पोलर बेयर अब अकसर समुद्री पक्षियों के अंडे खाने लगे हैं. इससे प्रकृति के नुकसान की एक कड़ी शुरू हो सकती, जिसकी शुरुआत समुद्री पक्षियों की संख्या कम होने से हो सकती है.
शिकार की पसंदीदा जगह
इन सब बदलावों को बेहतर समझने के लिए वैज्ञानिक यूएमकेए 2021 अभियान में शामिल हो गए हैं. यह रूस के फ्रांज जोसेफ लैंड में चल रहा है जो लगभग 200 द्वीपों का एक समूह है. यह सभी द्वीप समुद्री बर्फ से जुड़े हुए हैं जो ध्रुवीय भालुओं के शिकार करने की जगह है.
भालुओं को पकड़ना
यहां ध्रुवीय भालुओं को पकड़ने के बाद वैज्ञानिक उनका वजन, शरीर में जमा हुई चर्बी और रक्तचाप जैसी चीजें नापते हैं और उन्हें नोट कर लेते हैं. इससे उन्हें भालुओं के भोजन और ऊर्जा की खपत में बारे में और ज्यादा जानकारी मिलती है.
जीपीएस टैग
उसके बाद भालुओं के कानों में जीपीएस टैग लगा कर उन्हें छोड़ दिया जाता है. ये टैग उनके स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी शोधकर्ताओं को लगातार भेजते रहते हैं. इनसे उन्हें हेलीकॉप्टर और ड्रोन से ट्रैक करना भी आसान हो जाता है.
2100 तक नहीं बचेंगे ध्रुवीय भालू?
वैज्ञानिकों का मानना है कि इन पर करीब से नजर रखने से इन्हें लुप्त होने से बचाया जा सकता है. इनकी आबादी तेजी से गिर रही है और कई अध्ययनों ने यह बताया है कि अगर जलवायु परिवर्तन की रफ्तार कम नहीं की गई, तो इस शताब्दी के अंत तक पोलर बेयर लुप्त हो सकते हैं.
चिट्ठी ना कोई संदेश
जब भी कोई जीपीएस टैग लगे हुए भालू की मृत्यु हो जाती है, उसका टैग संदेश भेजना बंद कर देता है. वैज्ञानिकों को उसकी खबर मिलनी बंद हो जाती है. यह भले ही उनकी सूची से एक भालू का कम होना हो लेकिन धरती की जैव-विविधता के लिए आर्कटिक के इस परभक्षी की आबादी में कमी आना कहीं ज्यादा बड़ी चिंता का विषय है. - मोनीर घैदी