क्या पुरानी गाड़ियां हटाने से खत्म होगा बेंगलुरू का प्रदूषण
२० फ़रवरी २०१९बेंगलुरू अपनी ट्रैफिक समस्या के कारण लगातार सुर्खियों में रहता है. इस समय वहां लगभग 78 लाख वाहन हैं जिनमें 16 लाख से अधिक गाड़ियां 15 साल पुरानी हैं. हालत यह हो गई है कि यहां पार्किंग की जगह नहीं है. ऐसे में सरकार को उम्मीद है कि प्रतिबंधों के जरिए शहर में गाड़ियों की संख्या पर भी रोक लगाई जा सकेगी. परिवहन राज्य मंत्री डीसी तमन्ना ने ऐसी उम्मीद जताई है. उनका कहना है, "समस्या गम्भीर है और अब ऐसे कठोर निर्णय लेना आवश्यक हो गया है."
भारत की सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले बेंगलुरू की कई समस्याएं हैं. इनमें बढ़ती आबादी, तंग सड़कें और बिगड़ता इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रमुख हैं. शहर की बढ़ती प्रसिद्धि के चलते यहां की आबादी 1.2 करोड़ तक पहुंच गई है. जाहिर है कि इसमें सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की तादाद ज्यादा है. शहर के लगभग 35 लाख कामकाजी लोगों की जमात में 20 लाख लोग आईटी और उससे जुड़े पेशे के लोग हैं. सरकार का मानना है कि ज्यादातर गाड़ियां भी इन्हीं लोगों के पास हैं.
15 साल पुरानी गाड़ियों को रोकने के पीछे सुप्रीम कोर्ट का पिछले वर्ष का अक्तूबर में लिया गया निर्णय भी है. इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 15 साल पुरानी पेट्रोल और 10 साल पुरानी डीजल से चलने वाली गाड़ियों पर रोक लगा दी गई थी. यह रोक शहर में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए लगाई गई थी. बेंगलुरू में ऐसे परिवारों की तादाद भी ज्यादा है जिनके पास एक से ज्यादा गाड़ियां हैं. तेजी से कटते पेड़ों के अलावा शहर में बढ़ते प्रदूषण का एक यह भी बड़ा कारण है. इसी कारण इस शहर के वातावरण में जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है. पर्यावरण पर नजर रखने वाली दिल्ली की संस्था सेंटर आफ साइंस एंड एनवायर्नमेंट का कहना है कि चेन्नई, मुंबई और दिल्ली के बाद बेंगलुरू में सबसे अधिक प्रदूषण है.
पुरानी गाड़ियों पर रोक से जनता को होने वाली परेशानी को देखते हुए ही शायद सरकार ने हाल ही में पेश बजट में कुछ ठोस कदम उठाने के संकेत दिए हैं. इनमें एक रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवेलपमेंट बोर्ड की स्थापना है. इस बोर्ड का मुख्य उद्देश्य उपनगरीय रेल सेवा को बनाने और विकसित करने के काम में तेजी लाना है. इसके अलावा सरकार ने शहर में मेट्रो रेल की सेवा को 42 किलोमीटर से बढ़ा कर 72 किलोमीटर करने का निश्चय भी किया है. साथ ही शहर में बढ़ते ट्रैफिक और प्रदूषण को देखते हुए इस बजट में रिंग रोड पर लगभग 1000 करोड़ रुपये खर्च करने की भी बात कही है.
परिवहन विभाग के अफसरों का मानना है कि सरकार के ये कदम गाड़ियों की रोक से परेशान लोगों की सहूलियत के लिए हैं. परिवहन मंत्री डीसी तमन्ना ने भी जोर दे कर कहा, "अब नागरिकों को निजी वाहनों की बजाय मेट्रो रेल और बैंगलोर मेट्रोपॉलिटन बस कार्पोरेशन की बसों का इस्तेमाल बढ़ाना होगा." अतिरिक्त पुलिस उच्चायुक्त (यातायात) पी हरिहरन ने नई नीति का स्वागत करते हुए कहा कि यह कदम सड़कों पर होने वाली दुर्घटना कम करेगा. हरिहरन के मुताबिक, "वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण पिछले वर्ष कम से कम 4000 लोगों की मौत रोड हादसे में हुई थी. हमें उम्मीद है कि सरकार के नये कदम से शहर में सड़क दुर्घटना की समस्या भी काफी कम हो जाएगी."
जाने माने पर्यावरण विशेषज्ञ सुदर्शन ने भी पुराने वाहनों पर रोक लगाने को जरूरी बताया है और कहा है कि यह कदम काफी हद तक प्रदूषण कम करेगा. हालांकि स्थानीय लोग कुछ और मांग भी रख रहे हैं. बेंगलुरू में ही रहने वाले राजीव ठाकुर और उनके सहयोगी अखिल बागला का कहना है, "पुरानी गाड़ियों पर रोक लगाने के बजाय उनमें सीएनजी. किट लगाने की इजाजत मिलनी चाहिए. इसके लिए सरकार की ओर से सबसिडी भी मिलनी चाहिए." उधर सॉफ्टवेयर इंजीनियर विजय मट्टू का मानना है कि लोगों को अपनी पुरानी गाड़ियों को बैटरी पर चलाने के लिए सरकार से सब्सिडी मिलनी चाहिए.
कई लोग सरकार के इरादों पर भी संदेह जता रहे हैं. बेंगलुरू वासी भरत का कहना है, "परिवहन मंत्री की घोषणा में दम नहीं है. ऐसी घोषणा सरकार हर साल करती है लेकिन होता कुछ भी नहीं है."
हालांकि सरकारी अधिकारी इन बातों से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि सरकार अपने निर्णय पर खरी उतेरगी. लोगों की सुविधा के लिए 80 से अधिक बैटरी से चलने वाली बसें भी खरीदी जा रही है. धीरे धीरे बैंगलोर मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन भी पेट्रोल और डीजल से चलने वाले अपने बेड़े की 6500 बसों को सुधारने की कोशिश कर रही है, खासकर उन बसों को जो ज्यादा प्रदूषण करते हैं.
हालांकि एक तबका उन लोगों का भी है जो इस फैसले से खुश नहीं है. इनमें से एक हैं ममता शास्त्री. उनके चार सदस्यों वाले परिवार के पास एक ही गाड़ी है जो 15 साल पुरानी है. उनकी सोसाइटी में कम से कम 10 लोग और हैं जो सीनियर सिटिजन हैं. इन सब के पास 15 साल पुरानी गाड़ियां हैं और इन सब के लिए नई गाड़ी लेना आर्थिक रूप के साथ साथ भावनात्मक रूप से भी मुश्किल है. इनका कहना है कि सरकार अगर शहर की सड़कों पर ज्यादा ध्यान लगाए तो मुश्किलें अपने आप ही आसान हो जाएंगी.
त्यागराज शर्मा, बेंगलुरू