कैसे ग्लेशियर झील के फटने से आती है बाढ़
८ फ़रवरी २०२१स्पष्ट रूप से अभी तक पता नहीं चल पाया है कि आखिर उत्तराखंड की अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों में अचानक पानी का स्तर बढ़ने के पीछे क्या कारण है. जानकारों का अनुमान है कि संभव है कि नंदा देवी ग्लेशियर में बनी एक प्राकृतिक झील फट गई होगी और उसमें जमा पानी अचानक नीचे आ गया होगा.
क्या होती हैं ग्लेशियर झीलें
ग्लेशियर बर्फ के बड़े बड़े टुकड़े होते हैं जो अक्सर नदियों के उद्गम स्थल पर होते हैं. इन्हें हिमनदी या बर्फ की नदी भी कहा जाता है, लेकिन ये बनते हैं जमीन पर. इनका आकार बदलता रहता है और इनकी बर्फ भी पिघलती रहती है. ग्लेशियर बनते समय जमीन को काट कर उसमें गड्ढे बन जाते हैं और पिघलती हुई बर्फ जब इन गड्ढों में गिरती है तो उससे ग्लेशियल झीलें बनती हैं.
इनमें अक्सर काफी पानी होता है और किसी वजह से जब ये झीलें फटती हैं तो इनमें जमा पानी पहाड़ों के मलबे के साथ नीचे की तरफ गिरता है. इस समय जानकार यही अनुमान लगा रहे हैं कि इसी तरह की किसी झील के फटने से पानी और मलबा अलकनंदा नदी में गिर गया जिसकी वजह से अचानक नदी में बाढ़ आ गई.
क्यों फटती हैं ये झीलें
इस तरह की झीलें अलग अलग आकार की होती हैं. बड़ी झीलों में करोड़ों क्यूबिक मीटर तक पानी हो सकता है. एक अनुमान के मुताबिक नेपाल की शो रोल्पा ग्लेशियर झील में करीब 10 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी है जो करीब 150 मीटर ऊंचे प्राकृतिक बांध से घिरा हुआ है. इस तरह के बांध जब टूट जाते हैं तब झीलें फट जाती हैं और उनका पानी ढेर सारा मलबा लिए नीचे गिरने लगता है. झील फटने के कई कारण होते हैं.
कई बार धीरे धीरे झीलों में बहुत ज्यादा पानी भर जाता है और उस पानी के अपने दबाव से ही बांध टूट जाता है. कई बार हिमस्खलन और बर्फ के नीचे भूकंप या ज्वालामुखी के फटने की वजह से भी झीलें फट जाती हैं.
उत्तराखंड में क्या हुआ
ताजा घटना में क्या हुआ यह अभी तक पता नहीं चल पाया है. वैज्ञानिकों को ग्लेशियर के पास पहुंचाने की तैयारी की जा रही है और वे वहां पहुंच कर अध्ययन करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे. घटना से दो दिन पहले उसी इलाके में हिमस्खलन हुआ था, इसलिए उसकी वजह से झील फटी हो इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. कुछ जानकारों का कहना है कि इस इलाके में किसी बड़ी ग्लेशियल झील के होने की किसी को जानकारी नहीं थी. संभव है कि कोई छोटी झील रही हो और उसमें किसी वजह से अचानक पानी बढ़ गया हो.
लेकिन कई जानकारों का कहना है कि झीलों का फटना सर्दियों में कम ही होता है क्योंकि ठंडे मौसम में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार अमूमन कम हो जाती है. गंगा आह्वान संस्था से जुड़ी पर्यावरण एक्टिविस्ट मल्लिका भनोट ने डीडब्ल्यू को बताया कि अगर वाकई ग्लेशियर इस मौसम में पिघला है और उसकी वजह से ग्लेशियल झील फटी है तो यह गंभीर चिंता का विषय है. मल्लिका भनोट ने बताया कि उत्तराखंड के जंगलों में पिछले कई महीनों से आग लगी हुई है जिसकी वजह से इलाके में काफी गर्मी पैदा हुई है और आग की कालिख इलाके में जमा हुई है.
मल्लिका भनोट का यह भी कहना है कि इसके पीछे राज्य में चल रही चारधाम सड़क परियोजना और कई पन-बिजली परियोजनाओं की भूमिका को भी देखना पड़ेगा, क्योंकि इनकी वजह से कई पेड़ काटे जा रहे हैं और पहाड़ों में खुदाई हो रही है जिसका असर यहां के नाजुक पर्यावरण पर पड़ रहा है.
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