ग्रीस में वामदल को हटाकर सत्ता में आई कंजर्वेटिव पार्टी
८ जुलाई २०१९ग्रीस में हुए आम चुनाव के नतीजे देश की मुख्य विपक्षी पार्टी न्यू डेमोक्रेसी (एनडी) के पक्ष में रहे हैं. किरियाकोस मित्सोटाकिस के नेतृत्व में चुनाव लड़ने उतरी न्यू डेमोक्रेसी को करीब 39.8 फीसदी वोट मिले. अब तक देश की सत्ता प्रधानमंत्री अलेक्सिस सिप्रास की वामपंथी सिरीजा पार्टी के हाथों में थी. सिरीजा पार्टी को इन चुनावों में 31. 5 फीसदी के लगभग वोट मिले हैं.
गृह मंत्रालय के मुताबिक न्यू डेमोक्रेसी को संसद की कुल 300 सीटों में से लगभग 158 सीट मिलेंगी. जो चार साल पहले हुए चुनावों से 82 सीट ज्यादा हैं. वहीं सिरीजा पार्टी को 86 सीट मिलेंगी जो पिछले चुनावों की तुलना में 62 कम है. नव-नाजी समर्थकों द्वारा बनाई गई देश की धुर राष्ट्रवादी पार्टी गोल्डन डॉन चुनावों में बुरी तरह फेल हुई. पार्टी संसद में प्रवेश करने के तीन फीसदी के आंकड़े को भी नहीं छू पाई.
चुनाव में उल्टा ट्रेंड
चुनाव नतीजों से साफ है कि ग्रीक मतदाताओं ने यूरोप में पॉपुलिस्ट पार्टियों की जीत के ट्रेंड के उलट एक कंजर्वेटिव पार्टी को जिताया है. नतीजों के बाद मित्सोटाकिस ने जनता को संबोधित करते हुए कहा, "मैंने ग्रीस को बदलने के लिए प्रचंड जनमत की अपील की थी. आपने दिल खोल कर साथ दिया. आज से एक मुश्किल लेकिन खूबसूरत लड़ाई की शुरुआत होगी."
खराब आर्थिक हालातों से गुजर रहे ग्रीस में चुनाव अभियान के दौरान 51 वर्षीय मित्सोटाकिस ने जनता से टैक्स में कमी, निवेश आकर्षित करने और नौकरियां पैदा करने जैसे कई वादे किए. वह पिछले तीन सालों से जनमत सर्वेक्षणों में आगे रहे और चुनाव में एक अच्छी बढ़त बनाए रखने में कामयाब रहे. उन्होंने कहा, "ग्रीस अच्छी चीजों का हकदार है और अब यह साबित करने का वक्त आ गया है." प्रधानमंत्री अलेक्सिस सिप्रास ने हार स्वीकारते हुए मित्सोटााकिस को फोन कर बधाई दी. उन्होंने कहा, "लोगों ने अपनी पसंद बता दी है. हम लोगों के फैसले का सम्मान करते हैं." उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी अब लोगों के हितों की रक्षा करेगी, और एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएगी.
क्यों हारा वाम मोर्चा
44 साल के सिप्रास ने यूरोपीय संसद के चुनावों में मिली हार के बाद तय कार्यक्रम से तीन महीने पहले देश में आम चुनावों की घोषणा कर दी थी. माना गया था कि यूरोपीय संघ के चुनावों में सिरीजा की हार की मुख्य वजह मध्य वर्ग का पार्टी से किनारा करना रहा है. जानकार मान रहे हैं कि बेलआउट पैकेज का लाभ मध्य वर्ग तक नहीं पहुंचा और लोगों पर टैक्स की मार पड़ी. साल 2015 में सिरीजा पार्टी ने वादा किया था कि पहले दो बेलआउट पैकेज में खर्च कटौती के जो प्रावधान शामिल किए गए उसे वे रद्द करेंगे.
लेकिन महीनों तक अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ बात ना बनने और यूरो के गिरने के बाद उन्हें अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ा और तीसरे बेलआउट के लिए दस्तखत करने पड़े. तीसरे बेलआउट के बाद एक बाद फिर खर्च में कटौती और टैक्सों को बढ़ाया गया.
इसके अलावा वाम मोर्चे को उत्तरी मेसेडोनिया के साथ हुए समझौते की भी कीमत चुकानी पड़ी. ग्रीस के साथ हुए समझौते के तहत पहले युगोस्लाविया का हिस्सा रहे मेसेडोनिया ने अपना नाम बदलकर उत्तरी मेसेडोनिया कर लिया है. मेसेडोनिया ग्रीस का एक प्रांत है. हालांकि ग्रीस के इस समझौते पर पश्चिमी देशों ने तो उसकी तारीफ की लेकिन यूनानी लोगों ने इस पर नाराजगी व्यक्त की. यूनानी लोग मानते हैं कि उनका पड़ोसी उत्तरी मेसेडोनिया इस नाम का इस्तेमाल अपनी विस्तारवादी नीतियों को अंजाम देने के लिए कर सकता है. ग्रीस में व्यापक तौर पर इस समझौते का विरोध हुआ था.
एए/एमजे (एएफपी, डीपीए)
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