चार महीने बाद बाहर आए डॉक्टर बिनायक सेन
१९ अप्रैल २०११छत्तीसगढ़ की अदालत से मिली सजा के बाद डॉक्टर सेन ने हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सुप्रीम कोर्ट से शुक्रवार को उन्हें जमानत मिली. शनिवार और रविवार को छुट्टी होने की वजह से डॉक्टर सेन की रिहाई नहीं हो सकी. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जमानत ऑर्डर को रायपुर जेल प्रशासन को सौंपा गया. इसके बाद डॉक्टर सेन खुली हवा में बाहर आ सके.
डॉक्टर सेन जैसे ही जेल से बाहर आए, नजारा भावुक हो गया. उनकी दोनों बेटियां उन पर कूद पड़ी और काफी देर तक अपने पिता को कसकर पकड़े रखा. जेल के बाहर 61 साल के डॉक्टर सेन का इंतजार उनकी बुजुर्ग मां भी कर रहीं थी. अनुसूया सेन ने बेटे बिनायक का माथा चूम लिया. अनुसूया सेन ने कहा, ''मैं बहुत खुश हूं. मैं चाहती हूं कि हर कोई खुश रहे. उसकी हालत ठीक लग रही है. वह बहुत खुश दिख रहा है. उसने मुझसे कुछ नहीं कहा. हम इतने भावुक हो गए कि मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल सका.''
इस दौरान रायपुर की जेल के बाहर बड़ी संख्या में आम लोग और पत्रकार भी मौजूद रहे. कुर्ते पजामे वाली पोशाक से पहचाने जाने वाले डॉक्टर सेन ने मुस्कुराते हुए सभी का अभिनंदन किया. शाम के वक्त रायपुर की जेल का मुख्य गेट कैमरे के फ्लैश और वीडियो कैमरों की लाइटों से जगमगा सा गया.
देशद्रोह के आरोप
माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में डॉक्टर बिनायक सेन को बीते साल छत्तीसगढ़ की निचली अदालत ने देशद्रोह का दोषी करार दिया. उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाकर 24 दिसंबर को जेल भेज दिया गया. निचली अदालत के फैसले के खिलाफ डॉक्टर सेन के वकील महेंद्र दुबे ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सर्वोच्च अदालत ने कड़े शब्दों में निचली अदालत के फैसले की निंदा की और डॉक्टर सेन को जमानत दे दी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''उनके खिलाफ देशद्रोह का कोई केस नहीं बनता. सबूत आधारहीन है. माआवोदी विचारधारा से जुड़े दस्तावेज रखने या बांटने का मतलब देशद्रोह नहीं है. बुरी से बुरी स्थिति में इन दस्तावेजों को रखने के बावजूद उन्हें देशद्रोह का दोषी नहीं माना जा सकता है.''
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सोमवार को रायपुर में अतिरिक्त जिला जज ने सेन से पासपोर्ट सौंपने को कहा है. जमानत के लिए डॉक्टर सेन को पासपोर्ट व 50,000 रुपये का मुचलका भरना पड़ा. उन्हें देश से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी गई है.
रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह
संपादन: ईशा भाटिया