चीनी फिल्मों पर लटकती सेंसर बोर्ड की तलवार
१३ फ़रवरी २०१९चीन के फिल्म उद्योग को उम्मीद थी कि इस साल का बर्लिनाले उसके सिनेमा के लिए उत्सव सा होगा. लेकिन इसके विपरीत उस पर चीन के सेंसर बोर्ड का गहरा साया मंडरा रहा है. मंगलवार को चीन के सेंसर बोर्ड ने देश के जाने माने फिल्मकार झांग यीमू की फिल्म को बर्लिन में वर्ल्ड प्रीमियर से ठीक पहले वापस कर लिया. यूं तो चीन के फिल्न सेंसर की वर्जित विषयों की लंबी सूची हमेशा से चीनी फिल्मकारों के लिए बड़ा रोड़ा रही है.
सेंसर बोर्ड अक्सर फिल्म के रिलीज होने या उन्हें विदेशी फिल्म महोत्सवों में भेजे जाने से ठीक पहले उन पर रोक लगा देता है या उन्हें सर्टिफिकेट नहीं देता है. लेकिन ऐसा कम ही हुआ है कि महोत्सव के दौरान फिल्म के प्रदर्शन से पहले ऐसा हो. हांगकांग के फिल्म महोत्सव से जुड़े जैकब वोंग कहते हैं, "सेंसरशिप ऐसी चीज है जिसके साथ फिल्मकारों को जीना होता है." सन 2000 के बाद चीन के सेंसर बोर्ड ने 30 से ज्यादा फिल्मों पर रोक लगाई है.
पुरस्कार के साथ समस्याएं
68 साल के झांग यीमू को उनकी फिल्म रेड शॉरगुम के लिए 1988 में बर्लिन में स्वर्ण भालू मिला था. इस पुरस्कार के साथ सामयिक चीनी सिनेमा में अंतरराष्ट्रीय दिलचस्पी शुरू हुई थी. लेकिन उसके बाद से झांग की अपने देश के सेंसर के साथ समस्याएं शुरू हो गई. 1994 में उनकी फिल्म टू लिव को कम्युनिस्ट सरकार के आलोचनात्मक चित्रण के कारण बैन कर दिया गया. बर्लिनाले ने कहा है कि अब उनकी फिल्म वन सेकंड को "पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान तकनीकी समस्याओं" के कारण वापस लिया गया है.
इस फिल्म के न आने से इस साल फिल्म महोत्सव के मुख्य पुरस्कार गोल्डन भालू के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही फिल्मों की तादाद घटकर 16 रह गई है. वन सेकंड को वापस लिए जाने तक बर्लिनाले में 12 वर्गों में चीन की 10 फिल्में दिखाई जा रही थी. इनमें प्रतियोगिता खंड में शामिल चीन की दो और फिल्में हैं. वांग चुआनान की ओनदाग मंगोलिया के मैदानी इलाके में जिंदगी और प्रेम की कहानी है चीन की दूसरी फिल्म वांग शियाओशूआई की पारिवारिक फिल्म सो लॉन्ग माय सन है. इन दोनों फिल्मकारों को भी बर्लिन में पहले पुरस्कार मिल चुका है.
सेंसर की ताकत
चीन के प्रोपेगैंडा मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले सेंसर बोर्ड ने फिल्म को बर्लिन में प्रदर्शित नहीं करने की कोई वजह नहीं बताई है, लेकिन उसका विषय संवेदनशील लगता है जो चीनी नेता माओ झे दोंग की सांस्कृतिक क्रांति पर केंद्रित है. सेंसर बोर्ड सेक्स, हिंसा, धर्म और तियानानमेन चौक पर हुए विरोध प्रदर्शनों पर भी सख्त रवैया अपनाता है. वोंग का कहना है कि यह चीनी फिल्मकारों के लिए बारूदी सुरंगों की तरह है.
चीनी फिल्मकार लू ये को बर्लिन में सोमवार को प्रदर्शित अपनी फिल्म शैडो प्ले के लिए सर्टिफिकेट लेने में दो साल लगे थे. ये फिल्म निर्माण क्षेत्र के भ्रष्टाचार और स्कैंडलों पर है. सेक्स और लैंगिक मुद्दों पर उनका सेंसर से झगड़ों का लंबा इतिहास है. उनकी प्रसिद्ध फिल्म सूझू रिवर चीन में प्रतिबंधित है. फिल्मकार का कहना है कि पिछले 10 सालों में मुझसे किसी और मुद्दे से ज्यादा सेंसरशिप के बारे में पूछा गया है. उनका कहना है कि सेंसर पर मेरा रवैया नहीं बदला है, फिल्मों को फ्री होना चाहिए.
सेंसर बोर्ड के फैसले ने चीन के राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नए दमन की आशंकाएं जगा दी है. चीन विदेशी फिल्मों पर कड़ा नियंत्रण रखता है और नेटफ्लिक्स जैसे फ्लेटफॉर्मों पर भी रोक है. चीनी फिल्म उद्योग अभी भी उस स्कैंडल से नहीं उबरा है जिसमें सबसे ज्यादा कमाने वाली अभनेत्री फान बिंगबोंग को 10 करोड़ डॉलर बकाया टैक्स चुकाना पड़ा था. हर साल सैकड़ों फिल्म बनाने वाले चीनी उद्योग ने पिछले महीने सरकार को 1700 करोड़ डॉलर का बकाया टैक्स चुकाया है. नतीजा ये हुआ है कि चीन में इस साल कम फिल्में बन रही हैं.