जर्मनी के विकास का इंजन, चीन थम रहा है
११ नवम्बर २०१९चीन की अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीतियां वैश्विक कारोबार को प्रभावित कर रही हैं. ऐसे माहौल में जर्मनी की दिग्गज कंपनियों को अब उन्हीं चीनी कंपनियों से मुकाबला करना पड़ रहा है जो कभी उनके साथ कारोबार के दम पर खड़ी हुई थीं.
चीन की अर्थव्यवस्था की सुस्ती जर्मनी पर भारी पड़ रही है. जर्मनी की अर्थव्यवस्था दूसरी तिमाही में 0.1 फीसदी सिमट गई. कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि तीसरी तिमाही में भी सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी से जुड़े इसी तरह के आंकड़े सामने आएंगे जो इसी महीने की 14 तारीख को जारी होंगे. अगर यह हुआ तो जर्मन अर्थव्यवस्था 2013 के बाद पहली बार मंदी की हालत का सामना करेगी.
जर्मनी की 3.4 ट्रिलियन यूरो की अर्थव्यवस्था में चीन के साथ कारोबार की हिस्सेदारी बहुत छोटी है लेकिन यह उन घटकों में से एक है जिसकी जर्मनी साल दर साल सिर्फ बढ़ने की उम्मीद करता है. चीन में "मेड इन जर्मनी" सामानों की मांग घट रही है. कभी बहुत लुभावना दिखने वाला निर्यात बाजार थमती अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा मददगार साबित नहीं हो रहा है. चीन और अमेरिका की तनातनी के बाद हैम्बर्ग के बंदरगाह पर चीन के कारोबार में कमी महसूस की जा सकती है. बंदरगाह के सीनियर मैनेजर एक्सल मैटर्न कहते हैं, "चीन हमारा सबसे अहम कारोबारी साझीदार है लेकिन भविष्य में क्या होगा यह बता पाना मुश्किल है."
अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि चीन और जर्मनी के कारोबारी संबंध कमजोर हो रहे हैं. हालांकि कारोबार में कमी ने इन आशंकाओं को भी सिर उठाने का मौका दिया है कि कई सालों तक करीबी संबंध रखने से क्या जर्मनी को सचमुच कोई फायदा हुआ. कुछ कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि राजनेताओं ने इस एशियाई देश में मानवाधिकारों की अनदेखी कर कारोबार इस उम्मीद में बढ़ाया था कि धीरे धीरे यह भी पश्चिमी देशों जैसा बन जाएगा. चीन में खुली अर्थव्यवस्था और बाजार तक सबकी आबाध पहुंच की उम्मीदों को झटका लगा है. जर्मनी के उद्योग संघ बीडीआई के स्टेफान मायर का कहना है, "यह बस ख्वाहिश बन कर ही रह गई."
कमजोर विकास
1989 में जब बर्लिन की दीवार गिरी तब जर्मनी और चीन के बीच व्यापार नाम भर का ही था. चीन ने वैश्वीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए और चीन में जर्मनी का निर्यात जो 1990 में 0.6 फीसदी था वह बढ़ कर पिछले साल के 7.1 फीसदी तक पहुंच गया. 2016 में चीन अमेरिका को पीछे छोड़ जर्मनी का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी बन गया और अब भी है.
1990 के दशक में "यूरोप के बीमार इंसान" वाली छवि को जर्मनी ने इस रिश्ते की मदद से तोड़ दिया और दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में वैश्विक मंदी से जर्मनी जल्दी उबर गया.
कार बनाने वाली कंपनियां बीएमडब्ल्यू और फोल्क्सवागन से लेकर सीमेंस जैसी दिग्गज कंपनियां और जर्मन अर्थव्यवस्था की रीढ़ कही जाने वाली मझौली कंपनियों ने भी इसका फायदा उठाया है.
अपने पूर्ववर्ती चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर के रुख से उलट चांसलर अंगेला मैर्केल ने चीन के मानवाधिकारों के रिकॉर्ड और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के अधिकारों को भुला कर कारोबार पर ध्यान लगाया. इस साल सितंबर में मैर्केल अपने 13 सालों के शासन में 14वीं बार चीन गई थीं. 2008-09 की आर्थिक मंदी के बाद से चीन में जर्मनी का निर्यात 2015 को छोड़ हर साल बढ़ता रहा है. इससे पहले इसमें गिरावट 1997 में देखी गई थी. 2018 में यह निर्यात 93 अरब यूरो तक पहुंच गया. हालांकि चीन के साथ ट्रंप का विवाद शुरू होने के पहले ही इसमें गिरावट आने लगी थी. आधिकारिक जर्मन आंकड़ों के मुताबिक 2017 में यह 13.3 फीसदी था जो 2018 में 8 फीसदी पर आया और इस साल के पहले 9 महीनों में यह महज 2.7 फीसदी रहा है.
चीन के कस्टम विभाग के आंकड़े भी दिखा रहे हैं कि जर्मनी से आयात अगस्त में 3.6 फीसदी रहा जो बीते साल के उसी महीने में 9.2 फीसदी था. कुल मिला कर चीनी आकड़े दिखा रहे हैं कि जर्मनी से इस साल के पहले नौ महीने में आयात घट कर 2 फीसदी रह गया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 2019 में जर्मनी के विकास के पूर्वानुमान को पिछले महीने घटा कर 0.5 फीसदी कर दिया और अगले साल यानी 2020 के लिए 1.2 फीसदी. आईएमएफ का यह भी कहना है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ने के पीछे एक प्रमुख वजह चीन से घटी मांग भी है. इसके अलावा कारोबारी तनाव को भी इसकी वजह माना गया है.
दिख रहा है असर
चीन की घटती मांग का असर जर्मनी में महसूस होने लगा है. बवेरिया की गाड़ियों के कलपुर्जे की सप्लाई करने वाली पारिवारिक कंपनी ब्रोजे ने पिछले महीने दो हजार लोगों की नौकरी खत्म करने का एलान किया. कंपनी में 26000 लोग काम करते हैं. ब्रोजे ने इसके पीछे चीन से आ रही मांग में कमी को कारण बताया है. हालांकि हैम्बर्ग में चीन से आने और चीन को भेजे जाने वाले सामान में 2019 के शुरुआती छह महीने में 3 फीसदी की बढ़ोत्तरी देखी गई.
मैटर्न का कहना है, "सबसे बड़ी समस्या है संरक्षणवादी रुख और इसका सबसे बड़ा प्रतिनिधि है अमेरिका. अगर मैं दुनिया को इस नजरिए से देखूं तो हैम्बर्ग पोर्ट चीन का सबसे बड़ा कारोबारी होने के नाते काफी सहज है." हालांकि कई लोगों का यह भी कहना है कि कई दशकों तक चीन को जर्मन निर्यात का केंद्र बनाने की वजह से स्थानीय उद्योग को नुकसान पहुंचा है और अब वे कड़ा रुख अपना रहे हैं.
2016 में बवेरिया की रोबोटिक कंपनी कूका को चीनी कंपनी ने खरीद लिया और तब जर्मन अधिकारियों की नींद खुली. उन्हें अहसास हुआ कि अर्थव्यवस्था के रणनीतिक हिस्सों को विदेशी खरीदारों से बचाने की जरूरत है. पिछले साल जर्मनी ने विदेशी निवेश के नियमों को सख्त बना दिया ताकि वह इनकी जांच कर सके और जरूरत पड़ने पर इन्हें रोक सके. माना जाता है कि यह मुख्य रूप से चीन सरकार समर्थिक कंपनियों को लक्ष्य में रख कर किया गया.
जर्मनी की चीन को लेकर नीति के बारे में पूछने पर वित्त मंत्री ओलाफ शॉल्स ने कहा कि इस बात के सबूत हैं कि चीन अपना वित्तीय क्षेत्र खोल रहा है हालांकि उन्होंने यह भी माना कि बराबरी लाने की दिशा में "काम अभी चल रहा है." जर्मनी की नीतियों में बदलाव से चीन बेखबर नहीं है. बर्लिन में 2012 से चीन के राजदूत रहे शी मिंगडे ने सितंबर में चीनी मीडिया से कहा कि जर्मनी की नीतियों में बदलाव का लक्ष्य चीन है. मिंगडे ने कहा, "जर्मनी व्यापारिक संरक्षणवाद का ऊपर से विरोध करता नजर आता है लेकिन इसके साथ ही वह दूसरे तरह के कारोबारी संरक्षणवाद में शामिल है."
एनआर/एमजे(रॉयटर्स)
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