जस्टिस गोगोई का संसद में "शर्म करो" के नारों के साथ स्वागत
१९ मार्च २०२०"शर्म करो, शर्म करो" के नारों के बीच चार महीने पहले ही सेवानिवृत्त हुए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भारतीय संसद के ऊपरी सदन राज्य सभा की सदस्यता की शपथ ली. नारे लगाने वाले विपक्ष के सांसद थे जिन्होंने सरकार द्वारा जस्टिस गोगोई को मनोनीत करने और जस्टिस गोगोई द्वारा इस प्रस्ताव को स्वीकार करने दोनों की ही आलोचना की है. नारे लगाने के बाद विपक्ष के इन सांसदों ने सदन का बहिष्कार किया और सदन से बाहर चले गए.
कांग्रेस ने जस्टिस गोगोई को मनोनीत किए जाने को संविधान के मूल ढांचे पर एक "गंभीर, अभूतपूर्व और माफ ना करने लायक" हमला बताया. कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी का कहना था, "हमारा संविधान न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन पर आधारित है. न्यायपालिका आस्था और विश्वास के परसेप्शन पर चलती है. आज इन सबको धक्का लगा है".
यह पहली बार नहीं है जब किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश को सेवानिवृत्त होने के बाद सरकार ने कोई पद दिया है. लेकिन इस मामले में कई बातें ऐसी जरूर हैं जो पहले कभी नहीं हुई. इससे पहले सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बना दिया जाता था. कइयों को कई प्राधिकरणों का अध्यक्ष भी बनाया गया है. हाल के वर्षों में, पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सथासिवम को 2014 में एनडीए सरकार ने ही केरल का राज्यपाल बनाया था.
लेकिन बताया जा रहा है कि सांसद बनाए जाने वाले जस्टिस गोगोई सिर्फ दूसरे पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं. इसके अलावा उनकी सेवानिवृत्ति और बतौर सांसद मनोनीत किए जाने के बीच का महज चार महीनों का अंतराल शायद सबसे छोटा अंतराल है. इसके अलावा उनके मनोनीत होने पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि उनकी अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कई फैसले दिए जिन्हें सरकार के या सत्तारूढ़ बीजेपी के हित में देखा जा सकता है.
इनमें सबसे ऐतिहासिक था बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद, जिसमें जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की एक पीठ ने बाबरी मस्जिद के गिराए जाने को गैर कानूनी बताने के बावजूद विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने का निर्णय दिया था. इसके अलावा राफाल लड़ाकू विमान सौदे की सीबीआई जांच की मांग खारिज भी उन्हीं की पीठ ने की थी.
बतौर मुख्य न्यायाधीश, उन पर अनैतिकता का भी आरोप लगा था जब उन्हीं के खिलाफ यौन शोषण के एक मामले पर सुनवाई करने वाली पीठ के अध्यक्ष भी वो खुद ही बन गए थे. सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं, जस्टिस गोगोई के सांसद बनने की आलोचना उनके कई पूर्व सहयोगी जजों और देश के कई जाने माने कानूनविदों ने भी की.
जस्टिस कुरियन जोसफ जस्टिस गोगोई के समय में ही सुप्रीम कोर्ट में जज थे. उन दोनों ने अपने दो और सहयोगी जजों के साथ जनवरी 2018 में एक अभूतपूर्व प्रेस वार्ता की थी जिसमें उन चारों ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की देख रेख में सुप्रीम कोर्ट में कई अनियमितताएं चल रही थीं. इस प्रेस वार्ता के बाद कहा जा रहा था कि उन चारों में से कोई भी अब मुख्य न्यायाधीश नहीं बन पाएगा.
लेकिन जस्टिस गोगोई इसके बावजूद मुख्य न्यायाधीश बनाए गए. जस्टिस जोसफ ने कहा है कि जस्टिस गोगोई द्वारा सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के भरोसे को नुकसान होगा.
चार जजों के इस समूह में जस्टिस मदन लोकुर भी थे. जस्टिस गोगोई के सांसद बनने पर उन्होंने कहा है कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता पुनः परिभाषित हो जाएगी. उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि "क्या आखिरी दुर्ग गिर गया है?" दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह ने कहा है कि जस्टिस गोगोई का राज्य सभा की सदस्यता के लिए मनोनीत होना शक्तियों के विभाजन और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए मौत की घंटी है.
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