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जानवरों की तरह रहा सऊदी कमाने गया भारतीय

२१ जून २०१७

रोजी रोटी कमाने के लिए सऊदी अरब जाने वाला एक भारतीय वहां बकरी रखने की जगह पर रहने को मजबूर था. कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करने वाले भारतीय जी राजामरियन ने 20 साल से भी लंबा वक्त दुश्वारी में काटा.

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Indische Arbeitsmigranten in Saudi-Arabien
तस्वीर: Getty Images/AFP

दक्षिण भारतीय राज्य केरल में रहने वाले ज्ञानप्रकाशम राजामरियन को पैसों की तंगी थी. दो साल तक सऊदी अरब में कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने के बाद स्पॉन्सर ने वर्क परमिट की मियाद बढ़ाने या फिर उसका पासपोर्ट वापस करने के लिए पैसे मांगे. लेकिन सन 1994 में कन्याकुमारी से सऊदी पैसे कमाने पहुंचे राजामरियन के पास अपनी आजादी खरीद पाने के पैसे नहीं थे. अगले 20 सालों तक सऊदी अरब में बिना वैध वर्क परमिट के फंसे रहने वाले राजामरियन के पास ना तो खाने के लिए पर्याप्त खाना था, ना कोई कमाई ना वापस भारत आने का कोई जरिया. एक हफ्ते पहले ही सऊदी सरकार की एमनेस्टी की एक योजना के तहत उसे घर वापस लाया गया.

अब 61 साल के राजामरियन ने कहा, "पिछले एक साल से मैंने केवल काली चाय और सूखी रोटी पर गुजारा किया है." 20 सालों तक किसी तरह गरीबी में जिंदा रहने वाले राजामरियन उन 60 लाख भारतीयों में से एक थे, जो खाड़ी देशों बहरीन, कुवैत, कतर, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान में काम कर रहे हैं. मानव तस्करी पर काम करने वाले कार्यकर्ता बताते हैं कि इनमें से ज्यादातर तस्करी से वहां पहुंचाये गये हैं और शोषण के शिकार हैं.

हाल तक प्रचलित कफला प्रथा के अंतर्गत, विदेशी कामगारों को इन देशों में कोई स्थानीय स्पॉन्सर चाहिए होता था, जो अक्सर उन्हें नौकरी देने वाला होता था. इन कामगारों को वीजा और देश में रहने का वैध परमिट मिलना भी इन्हीं के हाथों में होता था. चूंकि कई नौकरी देने वाले इन विदेशी श्रमिकों का पासपोर्ट अपने पास रख लेते थे, इस कारण भी इनका शोषण और इनके साथ दुर्व्यवहार होने की संभावना बहुत बढ़ जाती थी.

राजामरियन ने उन 20 सालों का बड़ा हिस्सा अल बाहा में छोटे मोटे काम करते हुए बिताया. साथ ही वह स्थानीय अधिकारियों के चक्कर लगाता रहा ताकि वापस भारत जाने का मौका मिल सके. अपनी जवानी के दिनों में सऊदी में पैसे कमाने पहुंचा राजामरियन अपनी चार बेटियों की शादी के लिए पैसे जमा करना चाहता था. पहले दो साल उसने पैसे कमाये भी, लेकिन इतनी बचत नहीं कर सका कि अपने स्पॉन्सर की मांग पूरी कर सके. वह बताता है, "मालिक ने 5,000 रियाल (1,300 डॉलर) मांगे थे. मैंने किसी तरह कम करवाना चाहा तो बात 1,000 तक आयी. लेकिन मेरी जेब में केवल 350 रियाल ही थे."

उसने इसकी शिकायत पुलिस में की, लेकिन उसके बाद लेबर अधिकारियों ने उसे मालिक के पास ही वापस लौटा दिया. उसके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह रियाद में स्थित भारतीय दूतावास तक पहुंच पाता. घर पर फोन भी किया लेकिन अपनी हालत के बारे में नहीं बताया. वह छोटे मोटे काम कर, थोड़ा बहुत खाकर पैसे बचाने की कोशिश करता और घर भेजता रहा. लेकिन जब किराया देने के पैसे भी नहीं रहे तो अपनी मकान मालकिन से उसने बकरी को रखने वाली जगह ले ली. इस तरह भेजे पैसों से उसकी तीन बेटियों की शादी हो सकी, लेकिन वह नहीं आ सका. चौथी बेटी अभी अभी ग्रेजुएट हुई है. वापस भारत लौटा राजामरियन कहता है, "अभी भी मेरी एक बेटी की शादी करनी है. इसलिए मुझे तो अभी काम करते ही रहना होगा, लेकिन इस बार घर के पास ही किसी कंसट्रक्शन साइट पर."

आरपी/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)