डरावनी फ्लाइट के लिए एयरबस पर मुकदमा
२० सितम्बर २०१०घटना सात अक्टूबर 2008 की है. सिंगापुर से पर्थ जा रहा क्वातांस एयरलाइन का विमान 37,000 फुट की ऊंचाई पर था. दोनों पायलटों ने विमान का ऑटो पायलट ऑन कर दिया. लेकिन अचानक एयरबस ए330-300 विमान नाक के बल गोता खाते हुए 650 फुट नीचे गिर गया. इसकी वजह से विमान में सवार कई यात्रियों और चालक दल के सदस्यों को गंभीर चोटें आईं. विमान के भीतर यात्रियों की चीख पुकार मच गई.
दोनों पायलटों ने विमान को मैनुअल मोड पर किया. विमान का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के बाद पायलट किसी तरह फ्लाइट को सुरक्षित स्थिति में लेकर आए. राहत की सांस लेने पर पायलटों ने फिर ऑटो पायलट ऑन किया. विमान के भीतर खाना और अन्य सर्विस शुरू हुई. लेकिन कुछ देर बाद फिर वही हुआ. विमान फिर नाक के बल गोता खाता हुआ 400 फुट नीचे चला गया.
यात्री, क्रू सदस्य और ट्रॉलियां अस्त व्यस्त होकर इधर उधर जोर से गिरने लगीं. भारत, श्रीलंका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के 100 से ज्यादा यात्रियों को गंभीर चोटें आईं. इस डरावने अनुभव के बाद पायलटों को ऑस्ट्रेलियाई एयरफोर्स के बेस पर इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी.
लंबी जांच के बाद पता चला कि पायलटों ने कोई गलती नहीं की. विमान में ही कुछ गड़बड़ थी. जांच की रिपोर्ट सामने आने के बाद अब यात्रियों और पायलटों के प्रतिनिधि अटॉर्नी फ्लोयड विंसर ने एयरबस के खिलाफ मुकदमा ठोंक दिया है. उनका कहना है, ''उस दिन जो कुछ हुआ उसमें कई लोगों को गंभीर चोटें आईं. एयरबस को शारीरिक और मानसिक चोटों के लिए लाखों डॉलर का हर्जाना देना पड़ सकता है.''
विंसर के मुताबिक उस घटना के बाद कई यात्री आज तक विमान में चढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाएं हैं. उन्होंने कहा, ''घटना के दौरान कई लोग हवा में छटकते हुए विमान की ऊपरी सतह से टकराए, कुछ सीथे दीवार से भिड़े. कई यात्रियों के मांसपेशियां टूट गई, रीढ़ की हड्डी में चोटें आई. कई यात्री तो इतना डर चुके हैं कि अब वो उड़ान के नाम से ही डरने लगे हैं.''
पूरे मामले पर यूरोपीय विमान कंपनी एयरबस से लाखों डॉलर का हर्जाना मांगा जा रहा है. विंसर ने कहा है कि अगर एयरबस हर्जाना देने में आनाकानी करेगा तो मामले को अमेरिकी अदालत में ले जाया जाएगा.
1994 से अब तक ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें एयरबस के ए330-300, ए330-200 विमानों पर संदेह जताया जाता रहा है. हालांकि एयरबस और एयरसेफ्टी नॉर्म्स बनाने वाली संस्थाएं ऐसा नहीं मानती हैं. कंपनी का कहना है कि अक्सर पायलट उसके अतिउच्च कंप्यूटर सिस्टम को तयशुदा निर्देशों से नहीं चलाते हैं. और फिर इसका नकारात्मक असर सामने आने के बाद पायलट तनाव या आपाधापी में गलतियों पर गलतियां किए चले जाते हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ ओ सिंह
संपादन: एस गौड़