तुर्की की करेंसी टूटने से भारतीय बाजारों में घबराहट
१३ अगस्त २०१८तुर्की की मुद्रा लीरा लगातार गिर रही है जिससे भारतीय निवेशकों में घबराहट देखी जा रही है. दरअसल, बीते हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने तुर्की से आनेवाले स्टील और अल्युमिनियम पर आयात शुल्क दोगुना कर दिया. अमेरिका के इस कड़े रुख की वजह से भारत समेत दुनिया भर के निवेशकों में भगदड़ मच गई है. यही वजह है कि यूएस डॉलर के मुकाबले लीरा 12% टूट गया है जबकि शुक्रवार को उसमें 16% की गिरावट आई थी. पूरे सप्ताह के ट्रेडिंग में लीरा 20% कमजोर हो गया. तुर्की की अर्थव्यवस्था का अंदाजा का इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले एक साल के दौरान लीरा का भाव डॉलर के मुकाबले आधा रह गया है.
इस स्थिति से भारतीय बाजार और रुपये में भी बड़ी गिरावट देखी गई है. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का सूचकांक सेंसेक्स अब तक औसतन 11% की मजबूती लेकर चल रहा था और आए दिन नए रिकॉर्ड बन रहे थे. लीरा में आई 12 फीसदी की गिरावट के बाद यह 300 अंक टूट गया. वहीं, भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 69.62 के अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया है.
सेंसेक्स और रुपये की कीमत में आई गिरावट की क्या वजह तुर्की में बिगड़े हालात है? इस पर इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के पूर्व संपादक और अर्थशास्त्री परंजॉय गुहा ठाकुरता ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, ''हम रुपये की गिरावट को सीधे तुर्की की अर्थव्यवस्था से नहीं जोड़ सकते, लेकिन यह सच है कि विकासशील देशों की मुद्रा में लगातार गिरावट हो रही है. यह नतीजा अमेरिका और चीन के बीच चल रहे कारोबारी युद्ध का है जिसकी चपेट में वैश्विक अर्थव्यवस्था आ चुकी है. तुर्की की करेंसी लीरा में आई गिरावट ने एक बार फिर भारतीय निवेशकों में घबराहट और अनिश्चितता पैदा कर दी. यह कहना मुश्किल होगा कि यह कारोबारी जंग कब और कहां तक जाएगी.''
रुपये की कमर टूटी और डॉलर के अच्छे दिन
दरअसल, रुपये की तरह ही अन्य ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों की मुद्रा में भी उथल-पुथल मची हुई है. अमेरिका की ओर से रूस पर लगे प्रतिबंध के बाद रूबल में 2% की गिरावट देखी गई. दक्षिण अफ्रीकी मुद्रा रैंड में 7% की कमी आई है. कारोबारी युद्ध के मुख्य किरदार चीन की मुद्रा युआन भी संघर्षरत है.
तुर्की की हालत यूरोप में भी चिंता पैदा कर रही है. मल्टीनेशनल बैंक डीबीएस के अर्थशास्त्री युजीन लियो ने समाचार एजेंसी एपी से कहा, ''तुर्की की अर्थव्यवस्था चिंताजनक है और धीरे-धीरे यह अन्य देशों को चपेट में लेगी. बाहरी समर्थन के बिना इस संकट से बचना नामुमकिन है.'' तुर्की की मौजूदा हालात के लिए अमेरिका के साथ उसका विवाद भी जिम्मेदार है. हालांकि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयब एर्दोवान ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद लेने से इंकार किया है, लेकिन अर्थशास्त्री लियो की राय में तुर्की की सियासी हालत को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कितनी मदद करेगा.
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