दिमाग के जरिये नाजी पीड़ितों को पहचानने की कोशिश
३ मई २०१७मानव मस्तिष्कों के नमूनों को म्यूनिख की माक्स प्लांक सोसायटी के संग्रहालय में रखा गया है. इनमें से कुछ नमूने नाजी पीड़ितों के भी हैं, जिन्हें सिर्फ इसलिये मार दिया गया था क्योंकि उन्हें मानसिक रूप से बीमार समझा गया. नाजी शासक हिटलर का मानना था कि ऐसे लोग जीवित रहने के लायक नहीं हैं. बच्चों सहित 3 लाख से भी अधिक लोग नाजियों के "यूथेनेशिया प्रोग्राम, टी4" के तहत मार दिये गये थे. हालांकि पीड़ितों के मस्तिष्क को संरक्षित किया गया था जिसके जरिये अब एक बार फिर उन्हें पहचानने की कोशिश की जा रही हैं.
माक्स प्लांक सोसायटी की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक अब जर्मनी, ऑस्ट्रिया, ब्रिटेन और अमेरिका का एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल नमूनों की जांच करने और पीड़ितों की पहचान करने के लिए मिलकर काम करेगा.
वियना यूनिवर्सिटी के इतिहासकार हेरविग चेक के मुताबिक, "इच्छामृत्यु कार्यक्रम नाजियों की ओर से किया गया अपराध था लेकिन अब वैज्ञानिकों के पास मस्तिष्क के ऊतकों को समझने का अच्छा मौका है, जिससे वे अन्य मानसिक रोगों की भी जांच कर सकेंगे."
इसके तहत डॉक्टर किसी खास मरीज के दिमाग की भी मांग कर सकेंगे. ज्यादातर नाजी पीड़ितों के मस्तिष्क को फॉर्मेलीन में यह सोच कर संरक्षित करवाया गया था कि युद्ध के बाद उससे शोध की तरक्की होगी. यहां तक कि 1970 के दशक तक शोधकर्ताओं ने इन मस्तिष्कों के कुछ हिस्सों का प्रयोग डाउन सिंड्रोम और अन्य रोगों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये किया भी था. म्यूनिख के तकनीकी विश्वविद्यालय में इतिहासकार गेरिट होहेनडॉर्फ के मुताबिक, "पहले इन शोधों को नैतिक रूप से सरल माना जाता था, शोधकर्ता मानते थे कि इन मस्तिष्कों को चिकित्सा शोध में तो इस्तेमाल किया ही जा सकता है."
साल 2015 में, बर्लिन में माक्स प्लांक सोसायटी के संग्रहालय में एक कर्मचारी को जूते के डिब्बे जैसे आकार का लकड़ी का बॉक्स मिला था, जिसमें 100 से भी अधिक मानव मस्तिष्कों की स्लाइड थी. इनमें से कुछ को नाजी युग का माना जा रहा है. अब उनकी भी जांच की जायेगी.
इतिहासकार चेक कहते हैं कि शोध के लिये इन मानव ऊतकों का इस्तेमाल करना अपमानजनक है. हालांकि चेक और होहेनडॉर्फ दोनों ही इस शोध कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं. साल 1990 में भी माक्स प्लांक सोसायटी ने म्यूनिख के कब्रिस्तान से तकरीबन 1 लाख मानव नमूनों को खोद कर निकाला था. ये नमूने भी उन्हीं लोगों के थे, जिन पर नाजी पीड़ित होने का शक था या वे जिन्हें जबरन श्रम और यातना शिविरों में रखा गया था.
इस साल जून में शुरू होने वाले नये शोध न केवल नये नमूनों की पहचान करेंगे बल्कि उन नमूनों के पहचान का काम भी करेंगे जिन्हें साल 1990 में निकाला गया था.
ब्रिगिटे ओस्टराथ/एए