दूसरे विश्वयुद्ध में महिलाओं की भूमिका
२५ मई २०१८मेसाच्युसेट्स के नाटिक में अंतरराष्ट्रीय द्वितीय विश्वयुद्ध म्यूजियम में युद्ध के दौरान महिलाओं की भूमिका पर जोर है. म्यूजियम के संस्थापक केनेथ रेंडेल कहते हैं, "ये इंसानी कहानी के बारे में है." प्रदर्शनी में अमेरिका, सोवियत संघ, जर्मनी, जापान, फ्रांस और ब्रिटेन की 100 से ज्यादा कलाकृतियां दिखाई जा रही हैं. ज्यादातर महिलाओं के लिए युद्धकाल का मतलब परेशानी, परिवार को अकेले संभालना और राशन साझा करना था.
सोवियत संघ में 400,000 महिलाओं को रेड आर्मी गर्ल्स के रूप में सेना में भर्ती किया गया ताकि वे डॉक्टर और नर्स के अलावा लड़ाकू सैनिक का काम कर सकें. एक तस्वीर में पारा नर्सों को घायल सैनिकों की मदद के लिए युद्ध के इलाके में जहाज से कूदते देखा जा सकता है. अमेरिकी सेना ने भी सैनिकों के ट्रांसपोर्ट के लिए 27 महिला पाइलट भर्ती की थीं, जिनमें कैथलीन बर्नहाइन भी शामिल थीं. सिविल विमानन में 1000 घंटे के अनुभव वाली कैथलीन ने पी 47 थंडरबोल्ट जैसे जहाज उड़ाए ताकि मर्द पाइलटों को लड़ाकू विमानों के लिए मुक्त किया जा सके. 1944 में सरकार ने ये प्रोग्राम बंद कर दिया. प्रदर्शनी में उनका फ्लाइट जैकेट और ड्रेस यूनिफॉर्म देखा जा सकता है.
सभी महिलाओं की युद्ध में ऐसी नाटकीय भूमिकाएं नहीं थीं, लेकिन युद्ध प्रयासों में उन्हें भी मदद करनी पड़ी. अमेरिका में लाखों महिलाओं ने पोस्ट कर्मचारी, कूड़ा इकट्ठा करने वाली और कारखानों में मजदूरों का काम किया. ये काम पहले मर्द किया करते थे. इंग्लैंड में करीब साढ़े छः लाख महिलाएं सेना की सहायक सेवाओं में काम कर रही थीं.
1945 की एक तस्वीर में 24 वर्षीया फैर्न कॉर्बेट को मीनियापोलिस स्ट्रीट की एक इमारत पर 10वें माले की ऊंचाई पर खिड़की साफ करते देखा जा सकता है. वह पहले एक कंपनी में स्टेनोग्राफर का काम करती थी. कुछ दूसरी महिलाएं इतना खुलकर अपना काम नहीं कर सकती थीं, जैसे कि फ्रांस में नाजी शासन का विरोध करने वाली सेरिस्टेंस की महिला सदस्य. वे अपनी जान की बाजी लगाकर बच्चों के प्रैम में छुपाकर प्रतिबंधित रेडियो और हथियारों को ट्रांसपोर्ट करती थीं.
तस्वीरों में हल्के हरे रंग का यूनिफॉर्म भी है जिस पर लेबेन्सबॉर्न लिखा है. ये फ्रॉक नाजी ग्रुपों के साथ जुड़ी महिलाएं पहनती थीं जिनकी जिम्मेदारी आर्य बच्चों की जन्मदर बढ़ाना थी. ये महिलाएं उन केंद्रों में काम करती थीं जहां नाजी एसएस अफसरों द्वारा गर्भवती की गई अविवाहित महिलाओं को मदद मिलती थी. ज्यादातर बच्चों को एसएस के सदस्य या उनके परिवार गोद ले लेते थे.
महिलाओं द्वारा शरीर और आत्मा को नाजी विचारधारा को सौंपने का मामला स्वस्तिका वाले क्रॉस में दिखता है. चार से पांच बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं को कांसे का क्रॉस मिलता था, छः या सात बच्चों वाली मां को रजत और 8 से ज्यादा बच्चों वाली मां को हिटलर सोने का क्रॉस देता था. म्यूजियम की शिक्षा निदेशक सू विल्किंस कहती हैं, "नाजी चाहते थे कि महिलाएं पत्नियां और मां हों. बाहर काम करने वाली तस्वीरों में महिलाएं अच्छे शारीरिक आकार में दिखती थीं, वह इसलिए नहीं कि वे लड़ सकें बल्कि इसलिए कि वे बच्चे जन सकें. "
एमजे/एके (एपी)