दूसरे विश्व युद्ध के खंडहरों में है दक्षिणपंथियों का गढ़
२२ सितम्बर २०१७पासेवाक में फिलहाल केवल 50-60 शरणार्थी रहते हैं और पहली नजर में यह जर्मनी के किसी भी दूसरे उपनगर जैसा ही दिखता है. रंग बिरंगे फूलों वाले गुलदस्तों से सजे यहां के मुख्य बाजार के एक तरफ सेंट मारियन चर्च है. बाजार से निकल कर जब आप शहर के दूसरे हिस्सों में पहुंचते हैं तो कुछ और कहानी सुनने को मिलती है.
दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होते होते पासेवाक पूरी तरह ध्वस्त हो गया था. इस पूर्वी इलाके में अब यहां जो कुछ दिखाई देता है वो सब साम्यवादी जीडीआर के जमाने में बनाया गया. इसका नतीजा यहां की गहरे भूरे रंग की अपार्टमेंट वाली कॉलोनियों में दिखता है. कंक्रीट की ज्यादातर इमारतों में चमकदार रंग सिर्फ उन बालकनियों में दिखेगा जहां धोने के बाद कपड़े सुखाये जाते हैं.
पासेवाक में दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी की कमान युर्गेन श्ट्रोशाइन के हाथ में है. मैकलेनबुर्ग वेस्टर्न पोमेरेनिया में 2016 के चुनाव में श्ट्रोशाइन ने एएफडी को जीत दिलायी थी. पूरे राज्य में एएफडी ने 20.8 फीसदी वोट जीत कर पूरे देश में हलचल मचा दी थी. श्ट्रोशाइन खुद भी जीते थे. 70 साल के श्ट्रोशाइन 42 साल से अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी में रहे हैं. तीन साल पहले चांसलर अंगेला मैर्केल ने शरणार्थियों के लिए जर्मनी के दरवाजे खोल दिये और इसे लेकर जर्मनी के लोग विभाजित हो गये तो क्या वो विभाजन अब बी कायम है? श्ट्रोशाइन ने जवाब दिया कि मैर्केल की खुले दरवाजे की नीति के बारे में उन्हें एक ही बात कहनी है, "मैर्कल हमारे लिए सबसे बड़ी चुनावी मदद रही हैं. यह मदद खूब काम आयी."
एएफडी के सदस्य एनरिको कोमनिंग कहते हैं, "स्थानीय मतदाताओं का स्थापित पार्टियों से मोहभंग हो चुका है. वे लोग विकल्पों की तरफ देख रहे हैं जो अब राजनीतिक रूप से हम दे सकते हैं." एनरिको एफडीपी के पूर्व सदस्य हैं. यहां बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है. बर्लिन दीवार गिरने के बाद बहुत से लोगों की नौकरी गई और उन्हें स्थायी नौकरी के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा. उस दौर की निराशा ने बहुत से लोगों के मन में स्थायी घर बना लिया. वो आज भी प्रवासियों को अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते हैं. समाजसेवी ब्रिट ब्रुस ने दूसरी जगहों पर रह कर पढ़ाई की लेकिन उसके बाद वापस पासेवाक आ गईं. वह कहती हैं कि जर्मनी के इस हिस्से में एएफडी की सफलता निराशा से उपजी है, यहां लोगों के लिए सरल समाधान और उन्हें अच्छा रहन सहन देने की जरूरत है. लोगों के मन में जीडीआर वाली मानसिकता अब भी कायम है, हालांकि दूसरी वजहें भी चुनाव में भूमिका निभाती हैं.
लोगों के लिए मौकों की बात करें तो वह अब भी कम ही है, लेकिन एएफडी अपनी सफलता राष्ट्रीय चुनाव तक पहुंचाने में जुटी है. दक्षिणपंथी वोटरों को पूरे देश में 13 फीसदी वोट मिलने की बात कही जा रही है और एएफडी इन वोटों पर सवार हो कर संसद में पहुंचने की तैयारी में है. अगर ऐसा हुआ तो एएफडी दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जर्मन संसद में पहुंचने वाली पहली धुर दक्षिणपंथी पार्टी होगी.
रिपोर्ट: केट ब्रेडी