असम बीजेपी ने अब उठाया असमिया संस्कृति व लव जिहाद का मुद्दा
१६ अक्टूबर २०२०असम सरकार के मुताबिक राज्य में हाल में ऐसे कई मामले सामने आए हैं. सरकार ने अगले साल सत्ता में लौटने के बाद लव जिहाद के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाने की भी बात कही है. हालांकि उसका दावा है कि वह दो धर्मों के लोगों में आपसी सहमति से होने वाले विवाह के खिलाफ नहीं है. सरकार के इस कदम को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, असम में 34.22 फीसदी मुसलमान हैं और 61.47 फीसदी हिंदू.
नकेल कसेगी सरकार
भाजपा की अगुवाई वाली असम सरकार ने अब राज्य में धोखे से शादी करने के बढ़ते चलन पर गहरी चिंता जताते हुए इन पर नकेल कसने का फैसला किया है. राज्य के वित्त, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है, "असम में एक नया ट्रेंड बढ़ रहा है. कई मुस्लिम लड़के हिंदू नाम से फर्जी फेसबुक आईडी बनाते हैं और ऐसी तस्वीरें पोस्ट करते हैं जिनमें वो मंदिर के पास खड़े होते हैं. जब कोई लड़की ऐसे लड़कों से शादी कर लेती है तो उसे बाद में पता चलता है कि लड़का दूसरे धर्म का है. यह रिश्ता झूठ और विश्वासघात पर आधारित है और इसे सामाजिक मान्यता नहीं दी जा सकती.
सरमा कहते हैं कि सरकार धर्म के बाहर शादी के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों की आपसी सहमति जरूरी है. हम धोखे से की जाने वाली किसी भी ऐसी शादी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे. उन्होंने इससे पहले डिब्रूगढ़ में बीजेपी महिला मोर्चा की बैठक में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी. सरमा ने कहा था कि असम की भूमि पर हो रहे लव जिहाद के खिलाफ नई लड़ाई शुरू करने का समय आ गया है. उनका कहना था, "अगर अगले पांच साल के लिए बीजेपी दोबारा सत्ता में आती है तो ऐसे हर एक शख्स को कड़ी सजा का सामना करना पड़ेगा जो शादी करने के लिए या फिर असम की महिलाओं को लेकर नकारात्मक टिप्पणी करने के लिए अपना धर्म छिपाता है.” वह कहते हैं कि अब लव जिहाद के खिलाफ लड़ाई शुरू करने का समय आ गया है. इसके लिए सरकार ने सख्त कदम उठाने का फैसला किया है. उनका कहना है, "सरकार ऐसे किसी भी विवाह के खिलाफ लड़ेंगी, जिसे धोखाधड़ी के आधार पर स्वीकार किया गया है.”
चुनावी सियासत
लेकिन राज्य की बीजेपी सरकार को आखिर ऐसा करने की क्यों जरूरत पड़ी? इस सवाल का जवाब चुनावी सियासत से जुड़ा है. लोकसभा सदस्य और इत्र के मशहूर कारोबारी बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) की ओर से लगातार मिलने वाली चुनौती को ध्यान में रखते हुए हिंदू वोटरों का धुव्रीकरण इसका प्रमुख मकसद है. इसके लिए पार्टी असमिया और सनातन हिंदी संस्कृति की रक्षा की दलीलें दे रही है. अजमल की पार्टी अल्पसंख्यकों की राजनीति के जरिए राज्य में लगातार मजबूत हो रही है. ऐसे में बीजेपी को अगले चुनावों में उससे खतरा नजर आने लगा है. बीते चुनावों में भी अजमल की पार्टी ने कम से कम पाचं सीटें बीजेपी से छीन ली थीं.
सरमा का आरोप है, "अजमल की पार्टी की ओर से संस्कृति सभ्यता पर होने वाले हमलों की वजह से असम की बेटियां खतरे में हैं. फर्जी पहचान से धोखा खाकर शादी करने वाली सैकड़ों युवतियों का तलाक हो चुका है.” बीजेपी नेता कहते हैं कि अगर लोगों ने एकजुटता नहीं दिखाई तो समाज को बचाना मुश्किल हो जाएगा. वर्ष 2021 का चुनाव असमिया संस्कृति व सभ्यता को बचाने के मुद्दे पर लड़ा जाएगा. अगर इससे कड़ाई से नहीं निपटा गया तो अगले 15 साल में असम हिंदुओं के रहने लायक नहीं रह जाएगा.
बीजेपी के विकल्प
बीजेपी ने वर्ष 2016 के चुनावों को कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए सरायघाट की अंतिम लड़ाई करार दिया था. वर्ष 1671 में हुई उक्त लड़ाई में लाचित बरफूकन के नेतृत्व में अहोम सेना ने मुगलों को शिकस्त दी थी. सरमा कहते हैं, "अजमल की संस्कृति-सभ्यता असमिया समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने में जुटी है.”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि दरअसल कथित रूप से पहचान या धर्म छिपाकर होने वाली शादियों और लव जिहाद के नाम पर बीजेपी अगले चुनावों से पहले मिलने वाली चौतरफा चुनौतियों की काट की रणनीति पर आगे बढ़ रही है. इसलिए वह असमिया समाज, संस्कृति और अस्मिता का मुद्दा उठा रही है. एक पर्यवेक्षक नरेश फूकन कहते हैं, "अजमल और कांग्रेस मिल कर सत्ता में वापसी की उसकी राह मुश्किल बना सकते हैं. नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) और नागरिकता अधिनियम जैसे मुद्दों को हथियार बना कर विपक्षी दल बीजेपी की राह को मुश्किल बनाने का प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में बीजेपी के सामने ऐसे मुद्दों को उठाने के अलावा ज्यादा विकल्प नहीं बचा है.”
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