नाकेबंदी के बीच कश्मीर में दम तोड़ते मरीज
१९ फ़रवरी २०२०अगस्त 2019 में भारत की मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म कर दिया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. इसके साथ ही सरकार ने वहां कई तरह की पाबंदियां लगा दीं जिनसे आम जनजीवन ठप हो गया. बहुत से लोग अपने घरों में कैद हो कर रह गए. इंटरनेट और टेलीफोन लाइनें कट जाने की वजह से दुनिया से उनका संपर्क भी टूट गया.
इससे कश्मीर घाटी में रहने वाले लगभग 70 लाख लोगों की जिंदगी एकदम थम गई. इनमें वे डॉक्टर और मरीज भी शामिल थे जो इलाके से बाहर वाले विशेषज्ञों के साथ सलाह मशविरा करने और दवाएं मंगाने के लिए बहुत हद तक इंटरनेट पर निर्भर हैं. सनाउल्लाह डार की 20 साल की बेटी सुमाया कहती हैं, "मेरे पिता जैसे मरीज के लिए उचित इलाज मुहैया कराना खासा मुश्किल था."
कश्मीर में नाकेबंदी की वजह से डार के परिवार के लिए उन्हें दो हजार किलोमीटर दूर मुंबई में ले जाकर उनकी सर्जरी कराना संभव नहीं हो पाया. अक्टूबर में जब तक परिवार उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में ले जा पाया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. वहां से अपने घर लौटने के एक हफ्ते बाद ही डार इस दुनिया को छोड़ कर चले गए.
समय पर इलाज नहीं
उमर ओंकोलोजिस्ट हैं और उन्होंने कश्मीर में डार का इलाज किया था. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि शायद समय पर सर्जरी हो गई होती तो डार की जिंदगी को बचाया जा सकता था. उमर कहते हैं कि डार अकेले ऐसे मरीज नहीं हैं जिनकी समय पर इलाज ना मिलने से मौत हुई है. उन्होंने दूसरे डॉक्टरों से इसी तरह कई और मरीजों की मौतों के बारे में सुना है.
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में ही इंटरनेट पर रोक लगाई जाती है. कश्मीर ही नहीं, बल्कि हाल में नए नागरिकता कानून पर प्रदर्शनों के दौरान देश के दूसरे हिस्सों में भी अस्थायी रूप से इंटरनेट पर पाबंदियां लगाई गईं.
वहीं सरकार का कहना है कि कश्मीर में इंटरनेट और संचार के दूसरे साधनों पर रोक चरमपंथियों के बीच होने वाले संपर्क और संवाद को नियंत्रित करने के लिए जरूरी थी. अब कश्मीर में मोबाइल फोन सेवाएं धीरे धीरे बहाल हो रही हैं और आवाजाही पर लगी बंदिशों में भी ढील दी जा रही है.
जनवरी में वहां इंटरनेट को आंशिक रूप से बहाल कर दिया गया है. लेकिन इंटरनेट यूजर्स सिर्फ सरकार की तरफ से मंजूर वेबसाइटें ही खोल पा रहे हैं. इनमें अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों की वेबसाइटों के अलावा नेटफ्लिक्स और एमेजॉन जैसे प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं. सोशल मीडिया वेबसाइटों पर अब भी रोक है.
इंटरनेट पर पाबंदियों की सबसे बड़ी कीमत घाटी के मरीजों को चुकानी पड़ी है. अब्दुल रहीम लांगू एक हाउसबोट के मालिक और टूरिज्म ऑपरेटर हैं. उन्हें एक अनोखे किस्म का कैंसर है. उन्हें भी अपनी जान जाने का डर सता रहा था क्योंकि वह टेलीफोन लाइनें बंद होने की वजह से दिल्ली में दवाइयों के सप्लायर से संपर्क नहीं कर पा रहे थे. टेलीफोन लाइनें शुरू होने के बाद भी 57 साल के लांगू को इंटरनेट के जरिए सप्लायर को डॉक्टर का नुस्खा भेजने में बहुत दिक्कतें हुईं, क्योंकि उसके बिना दवाएं मिलना संभव नहीं था.
धंधे पर असर
इंटरनेट ठप होने की वजह से लांगू जैसे टूरिज्म ऑपरेटरों का काम भी प्रभावित हुआ. बहुत ही कम टूरिस्ट कश्मीर जा रहे हैं. इसका मतलब है कि लांगू की आमदनी बहुत कम हो गई है. ऐसे में, अगर दवाएं कश्मीर में नहीं पहुंच पा रही हैं तो उन्हें श्रीनगर से दिल्ली जाकर खरीदने के लिए विमान का टिकट खरीदना उनके जैसे मरीजों लिए मुश्किल हो रहा है.
बहुत से लोग जीवनरक्षक दवाएं खरीदने के काबिल भी नहीं हैं. श्रीनगर में डल झील के किनारे पर खाली खड़े अपने हाउसबोट में बैठे लांगू कहते हैं, "हर महीने दवाएं खरीदने में मुझे बहुत मुश्किलें आ रही हैं. और जिस तरह का मेरा काम है, उसमें अगस्त से कोई आमदनी नहीं हो रही है. टूरिस्ट नहीं आ रहे हैं."
सुमाया डार कहती हैं कि पिता की मौत के बाद उनका परिवार पूरी तरह टूट गया है. उनके मुताबिक, "जब तक आपके साथ ऐसा कुछ ना हो, तब तक आप समझ ही नहीं पाते हैं कि टेलीफोन लाइनें और इंटरनेट कितने जरूरी हैं."
पिता की मौत से मायूस सुमाया कहती हैं, "ऐसा लगता है कि मैं भी मर गई हूं, क्योंकि हमारे लिए जिंदगी तभी तक थी जब तक मेरे पिता जीवित थे."
एके/एमजे (एएफपी)
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