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नागरिकता कानून को केरल सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

१४ जनवरी २०२०

केरल सरकार ने नए नागरिकता कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. याचिका में अधिनियम को "मनमाना, अविवेकपूर्ण, तर्कशून्य और मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करने वाला" बताया गया है.

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Indien Shaheen Bagh aus Kolkata
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

नए नागरिकता कानून के खिलाफ सड़कों पर लगातार चल रहे विरोध के बीच, केरल सरकार ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. वैसे तो इसके पहले भी नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं, लेकिन केरल सरकार इस तरह की याचिका दायर करने वाली पहली राज्य सरकार बन गई है. याचिका में अदालत से दरख्वास्त की गई है कि वह नए कानून को असंवैधानिक घोषित करे. केरल सरकार का कहना है कि यह अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है और साथ ही संविधान में निहित "पंथ-निरपेक्षता के मूल ढांचा सिद्धांत" का भी उल्लंघन करता है. 
याचिका में अधिनियम को और उस से जुड़े सभी नियमों और निर्देशों को "स्पष्ट रूप से मनमाना, अविवेकपूर्ण, तर्कशून्य और मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करने वाला" बताया गया है. अधिनियम के खिलाफ आपत्ति की मुख्य दलील यह है कि इस कानून का लाभ अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले सिर्फ छह धार्मिक अल्पसंख्यकों - हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी - तक सीमित रखा गया है. 

 

केरल सरकार ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि आदेश को सिर्फ इन तीन देशों तक सीमित रखने और श्री लंका, म्यांमार, नेपाल और भूटान के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को अनदेखा करने का भी कोई मूलाधार नहीं है. इस याचिका को दायर करने के लिए केरल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 का सहारा लिया है, जो सुप्रीम कोर्ट को भारत सरकार और किसी एक या एक से ज्यादा राज्य सरकारों के बीच उपजे विवाद पर फैसला करने का मूल क्षेत्राधिकार देता है. सुप्रीम कोर्ट में इसके पहले नागरिकता कानून के खिलाफ 60 और याचिकाएं दायर हो चुकी हैं, जिन पर अदालत एक साथ 22 जनवरी को सुनवाई करेगी. 

Indien Proteste gegen neues Staatsbürgerschaftsrecht in Mumbai
तस्वीर: picture alliance/NurPhoto/H. bhatt

कानून के खिलाफ प्रदर्शन

सड़कों पर इस कानून का विरोध अब भी जारी है. 14 जनवरी को भी देश के अलग अलग हिस्सों में प्रदर्शन हुए. दिल्ली में अधिवक्ताओं के एक समूह ने कानून के विरोध में सुप्रीम कोर्ट से जंतर मंतर तक पदयात्रा का आह्वान किया है. बिहार के गया में दिन भर चल रहे धरने में बिहार के बड़े नेताओं के भाग लेने की संभावना है.

प्रदर्शनों के बीच विरोध के अधिकार को ले कर दिल्ली में एक जज की महत्वपूर्ण टिप्पणी सामने आई है. भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद की जमानत की अर्जी पर सुनवाई के दौरान दिल्ली की एक निचली अदालत के जज ने कहा कि आजाद को विरोध करने का संवैधानिक अधिकार है. आजाद को दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद पर विरोध करने के लिए गिरफ्तार किया गया था. जज कामिनी लौ ने सरकारी वकील को फटकार लगते हुए कहा, "आप ऐसे पेश आ रहे हैं जैसे जामा मस्जिद पाकिस्तान में हो. अगर वो पाकिस्तान में भी होती तो भी वहां जाकर विरोध किया जा सकता है." 

Berlin PK VW und Microsoft planen vernetzte Fahrzeugdienste
तस्वीर: Reuters/F. Bensch

अंतरराष्ट्रीय विरोध

दुनिया के विभिन्न देशों में भारतीय छात्र तो इस कानून का विरोध कर ही रहे थे, अब अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी नागरिकता कानून की आलोचना शुरू हो गई है. अमेरिकी सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के भारतीय मूल के प्रमुख सत्या नडेला ने अप्रवासियों के अधिकारों पर जोर देते हुए एक बयान जारी किया है. मीडिया की खबरों में पहले यह कहा गया था कि उन्होंने संपादकों के साथ एक बैठक में कहा था कि देश में जो हो रहा है वो दुखद है और बुरा है.

 

बाद में सत्या नडेला एक आधिकारिक वक्तव्य जारी कर कहा, "हर देश को अपनी अप्रवासन नीति बनानी चाहिए...मुझे गढ़ा है मेरी भारतीय विरासत ने, भारत के बहुसांस्कृतिक माहौल में बड़े होने ने और अमेरिका में बतौर एक अप्रवासी मेरे तजुर्बे ने...मेरी उम्मीद एक ऐसे भारत की है जहां एक अप्रवासी एक समृद्ध स्टार्ट-अप शुरू करने का या एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के नेतृत्व का सपना देख सकता है."  

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