निराधार नहीं है आधार से जुड़ी चिंताएं
२० जून २०१७दिलचस्प बात ये है कि मामला, अलग अलग याचिकाओं की शक्ल में सुप्रीम कोर्ट में जाता रहा है. कुछ मामलों पर कोर्ट के आदेश आ चुके हैं लेकिन निजता से जुड़े एक व्यापक संदर्भों की आलोचना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबित है. उधर भारत सरकार अपने फैसलों से पीछे हटने को तैयार नहीं. उसका कहना है कि हर नागरिक को पहचान देने के अलावा ये वंचितों और गरीबों के लिए सिंगल विंडो प्रणाली वाली विकास प्रक्रिया है. इधर जो कैशलेस इकॉनमी का नारा बुलंद है, उसमें भी आधार को एक शक्तिशाली ईंधन माना गया है. बैंकों से लेकर परीक्षाओं और दाखिलों तक में इसे अनिवार्य कर दिया गया है. सरकार ने मानो आधार को अपनी गर्वनेंस का इंजन बना दिया है.
2009 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने जोरशोर से आधार परियोजना की शुरुआत की थी. आधार कार्ड के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के लाभ बताए गए थे. घरेलू गैस ग्राहक संख्या के साथ आधार कार्ड नंबर को जोड़कर सब्सिडी हासिल की जा सकती है. जनधन योजना के तहत बैंक खाता खोलने के लिए सिर्फ आधार ही काफी है. अगर आधार कार्ड हो तो चंद दिनों में पासपोर्ट बन कर आ सकता है. इसमें पुलिस वेरिफिकेशन की प्रक्रिया पासपोर्ट मिलने के बाद पूरी की जाती है. सरकार के डिजी लॉकर सिस्टम का फायदा उठाने के लिए आधार नंबर जरूरी है. इस डिजी लॉकर में अपने तमाम निजी दस्तावेजों को डिजीटल तौर पर स्टोर किया जा सकता है. वोटर कार्ड से भी आधार कार्ड को लिंक करने की प्रक्रिया जारी है. इससे बोगस वोटरों पर नकेल कसी जा सकेगी. पेंशनधारकों को भी आधार कार्ड के जरिए सुविधा दी गई है, इससे फर्जीवाड़े पर भी रोक लगेगी. पेंशनधारकों के लिए डिजीटल जीवन प्रमाणपत्र भी जारी किया जाने लगा है जिसे आधार से जोड़ दिया गया है. यही सुविधा पीएफ की निकासी के लिए भी है.
आधार कार्ड का एक लाभ ये भी बताया गया है कि बैंक खाता खोलने या किसी भी तरह के वित्तीय मामलों में भी ये पहचान और पते के प्रमाण के रूप में स्वीकृत और मान्य है. स्टॉक मार्केट में निवेश के लिए सेबी ने भी आधार को मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया है. इस रूप मे आधार कार्ड उपयोगी है कि पहचान और पते के दस्तावेज के रूप में अलग अलग दस्तावेज दिखाने के झंझट से मुक्ति मिली है. सही व्यक्ति तक सही सूचना या सही मदद पहुंचाने का दावा भी किया जाता है. खासकर वित्तीय लेनदेन और सब्सिडी के मामलों में. नये बैंक खातों और 50 हजार रुपये से अधिक के लेनदेन में आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया है. वर्तमान खाताधारकों को इस साल के अंत तक अपने खातों को आधार नंबर से जोड़ने की डेडलाइन दी गई है.
सरकार ने योजनाओं का किस कदर आधारीकरण कर दिया है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऐसी कोई लाभ और कल्याण योजना नहीं है जहां आधार कार्ड अनिवार्य न किया गया हो. तमाम सर्विस सेक्टरों में विमानन, निर्माण से लेकर होटल, बिजनेस और मोबाइल फोन और कनेक्शन के कारोबार तक सब जगह पहचान और पते के प्रमाण के रूप में आधार को कहीं अनिवार्य तो कहीं सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है. फसल बीमा लाभ और सब्सिडी खाद्यान्न या कैश सब्सिडी के लिए किसानों के पास आधार होना जरूरी है. मध्यान्ह भोजन का लाभ अब बिना आधार के नहीं मिलेगा.
आधार कार्ड से जुड़ी सबसे बड़ी चिंता निजता के अधिकार के हनन की है. हालांकि सरकार सुप्रीम कोर्ट में कह चुकी है कि निजता का कोई मौलिक अधिकार संविधानप्रदत नहीं है लेकिन ये एक आम तथ्य है कि संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की आजादी में ही निजता का अधिकार भी निहित है. मौलिक अधिकार असीम नहीं बताए गए हैं लेकिन इस सूरत में नितांत सार्वजनिक हित और राष्ट्रीय हित की शर्त रखी गई है. फिर वे हित क्या हैं और उन हितों के नुकसान का क्या पैमाना होगा. क्या आधार इस श्रेणी में रखा जा सकता है? इस बहस में लगता है फिलहाल पलड़ा सरकार का ही भारी है जिसने कई सारी दलीलों के जरिये कोर्ट को विश्वास दिलाया है कि आधार कार्ड से निजता का हनन नहीं होता और ये नागरिकों के प्रति शासन की जवाबदेही सुनिश्चित और सहज करने का सबसे कारगर तरीका है.
आलोचकों का कहना है कि आखिर सरकार, सार्वजनिक जीवन और नागरिकों पर इतना नियंत्रण क्यों चाहती है. फाइलों और हस्ताक्षरों की भूलभुलैया में फंसे नागरिकों को शासन और उसकी अफसरशाही, क्या आधार कार्ड के जरिए एक नयी भूलभुलैया में धकेलना चाहती है या उसका कोई वास्तविक सर्वजनहिताय प्रयोजन है? हो सकता है आने वाले दिनों में हर छोटी बड़ी खरीद पर, हर किस्म के सार्वजनिक कार्यक्रम पर, सार्वजनिक भागीदारी, सभा, भाषण, उत्सव, गैदरिंग, संचार आदि तमाम जरूरतों और स्वाभाविकताओं पर आधार कार्ड एक पहरेदार बनकर साथ रहेगा. क्या नागरिकों को ऐसी थोपी हुई पहरेदारी की जरूरत होगी? या ये उन पर नियंत्रण करने और उनकी निगरानी करते रहने की सत्ता संस्कृति है जिसका संबंध बहुराष्ट्रीय वाणिज्य और मुनाफे की संस्कृति से भी है.
लेकन एक बात ये भी है कि आधार से पहले एक निगरानी सिस्टम का हिस्सा तो किसी न किसी रूप में दुनिया के लोग बने ही थे. डिजीटल दुनिया, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने प्राइवेसी में बड़े पैमाने पर सेंध तो लगाई ही है. फिर आधार की क्या बिसात. बेशक ‘प्रोफाइलिंग' के उपकरण बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास पहले से हैं और वे ‘कारगर' भी हैं. फिर भी क्या ही अच्छा होता कि आधार जैसी राष्ट्रीय परियोजना से जुड़ी इस चिंता या डर को पूरी तरह दूर कर दिया जाता कि वो सहायता का नहीं अंततः निगरानी का उपकरण है.