पत्रकारों पर हमले के लिए सजा देने में फिसड्डी है भारत
३१ अक्टूबर २०१८क्या भारत पत्रकारों के लिए असुरक्षित देश बन गया है? जिस तरह से पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं ऐसा ही लगता है. आंकड़े भी यही बताते लगते हैं. पत्रकार संगठन कमिटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने ग्लोबल इम्प्यूनिटी इंडेक्स जारी किया है, जिसमें उन देशों को शामिल किया जाता है जहां पत्रकारों की हमलों के लिए अपराधियों को सजा नहीं मिलती. इस सूची में भारत 14वें नंबर पर है. यह सूची ऐसे समय में आई है जब सऊदी अरब के कंसुलेट में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या पर बवाल मचा है और अमेरिकी चैनल सीएनएन में पाइप बम भेजे जाने से सनसनी फैली हुई है.
सूचकांक बनाने के लिए सीपीजे ने सितंबर 2008 से अगस्त 2018 के बीच दुनिया भर में पत्रकारों की हत्या के मामलों का अध्ययन किया. भारत की बात करें तो इस एक दशक में पत्रकारों की हत्या के 18 मामले ऐसे हैं, जो सुलझ नहीं पाए हैं. सबसे बुरी हालत सोमालिया में है. इसके बाद नंबर सीरिया, इराक, पाकिस्तान और बांग्लादेश का आता है.
सीपीजे के मुताबिक, ''अध्ययन से मालूम चला है कि पत्रकारों के काम की वजह से उन पर जानबूझकर हमले किए गए.'' सीपीजे की 11वीं रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में दुनिया भर के कम से कम 324 पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए उनकी हत्या कर दी गई और इनमें से करीब 85 प्रतिशत मामलों में अपराधियों को सजा नहीं दी गई है.
भारत की हालत दयनीय
सीपीजे की सूची में भारत 11 बार आ चुका है. 2017 में भारत का 12वां स्थान था. 2017 की रिपोर्ट में सीपीजे ने लिखा था कि 90 के शुरुआती दशक से भारत में 27 पत्रकारों को मार डाला गया. यही नहीं, तत्कालीन रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने यूनेस्को के जवाबदेही तंत्र में हिस्सा लेने से भी इनकार कर दिया, जो मारे गए पत्रकारों के मामलों की जांच की स्थिति पर जानकारी मांगता है. हालत यह है कि पिछले दो वर्षों में भारत की गिनती उन देशों में होने लगी है, जहां पत्रकारों की सबसे ज्यादा हत्या हुई है. 2016 में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट ने पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में भारत को आठवें नंबर पर रखा था.
इस मुद्दे पर आजतक ऑनलाइन के संपादक पाणिनि आनंद ने डॉयचे वेले से कहा, ''भारत में पत्रकारों की हत्या के लिए मीडिया संस्थानों की ट्रेनिंग में कमी भी जिम्मेदार है. हम संवेदनशील इलाकों में रिपोर्टिंग के लिए पत्रकारों को शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार नहीं करते हैं. ऐसा अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थानों में नहीं होता है और अगर हमला या हत्या होती है तो उसे जोरशोर से उठाया जाता है. भारतीय मीडिया संस्थानों में ऐसा नहीं है.''
इन पत्रकारों की हुई हत्या
2018 में भारत में कई पत्रकारों की हत्या हुई जिसमें 'राइजिंग कश्मीर' अखबार के संपादक और डॉयचे वेले से लंबे समय तक जुड़े रहे शुजात बुखारी का नाम शामिल है. जून 2018 में जब बुखारी अपने श्रीनगर स्थित दफ्तर से निकले तो उन पर अज्ञात लोगों ने हमला किया. वहीं मार्च में तीन पत्रकारों को सड़क दुर्घटनाओं में मारने का आरोप लगा. इनमें रेत माफियाओं पर रिपोर्टिंग कर रहे मध्य प्रदेश के संदीप शर्मा का नाम शामिल है. इसी तरह बिहार में नवीन निश्चल और विजय सिंह की भी हत्या कर दी गई.
2017 में वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या ने मीडिया जगत को हिला कर रख दिया था. एक कन्नड़ अखबार की संपादक और हिंदू चरमपंथियों के खिलाफ मुखर लंकेश को उनके घर के बाहर ही गोलियां मारी गईं. ऐसा ही रेप के दोषी बाबाओं गुरमीत राम रहीम सिंह इंसां और आसाराम के खिलाफ रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के साथ हुआ. पाणिनी आनंद के मुताबिक, ''स्थानीय अखबारों में पत्रकारों की स्थिति दयनीय है. वे अगर चरमपंथियों या प्रभावशाली लोगों के खिलाफ रिपोर्टिंग करें तो उन्हें यातना दी जाती है और कई बार तो मार दिया जाता है. ऐसे में पत्रकार तो हमेशा डरा रहेगा.''
मौत पर चुप्पी खतरनाक
पत्रकारों की हत्या पर चुप्पी खतरनाक है. भारत के संदर्भ में पाणिनी आनंद कहते हैं, ''कुछ भारतीय मीडिया संस्थानों को छोड़कर पत्रकारों पर हमले या उनकी हत्या का मुद्दा वैसे नहीं उठाया जाता, जैसा होना चाहिए. कई बार अखबार इसे सिंगल कॉलम में समेटकर रख देते हैं और बात आई-गई हो जाती है. भारत में पत्रकारों को खुद जागरूक होने की जरूरत है''.
पाकिस्तान में भी पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठते रहे हैं और वहां भी भारत की तरह पिछले एक दशक में पत्रकारों की हत्या के 18 ऐसे मामले सामने हैं, जिन्हें सुलझाया नहीं जा सका है. सीपीजे की सूची में पाकिस्तान का नौवां नंबर है.
जब मीडिया दफ्तरों को बनाया गया निशाना