पाकिस्तान के स्कूलों में नफरत का पाठ
९ नवम्बर २०११अमेरिकी कमीशन 'इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम' द्वारा यह रिपोर्ट जारी की गई है. रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के स्कूलों में दी जाने वाली तालीम में इस्लाम को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है और अल्पसंख्यकों को इस्लाम का दुश्मन बताया जाता है. कमीशन ने 100 पाठ्यपुस्तकों की जांच की. इन्हें पाकिस्तान के चार अलग अलग प्रांतों से इकट्ठा किया गया. ये किताबें पहली से दसवीं कक्षा तक की थीं. इसके अलावा इस साल फरवरी में कमीशन ने पाकिस्तान के 37 सरकारी स्कूलों का दौरा किया. यहां 277 छात्रों और अध्यापकों से बात की गई. साथ ही 19 मदरसों का दौरा भी किया गया. यहां 226 लोगों से बात की गई.
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा
इस कमीशन के अध्यक्ष लेओनार्ड लेओ ने इस बारे में कहा, "भेद भाव सिखाने का मतलब है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथ बढ़ता रहेगा. इस से धर्म निरपेक्षता पर बड़ा असर पड़ेगा, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्थिरता भी बिगड़ेगी और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा होगा." कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यदि स्कूलों में चल रही गलत तालीम के खिलाफ कोई आवाज उठाना चाहे तो उसे कट्टरपंथियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है.
स्कूली पाठ्यक्रम में इस्लाम की तालीम जनरल जिया उल हक के शासन में शुरू हुई. 2006 में नए पाठ्यक्रम को लाने की बात की गई, लेकिन अब तक ऐसा किया नहीं गया है. माना जा रहा है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी और दक्षिणपंथी पाठ्यक्रम में किसी भी तरह के बदलाव के खिलाफ हैं और सरकार भी इस दिशा में कोई भी कदम उठाती हुई नहीं दिख रही है.
दूसरे धर्मों से नफरत
पाकिस्तान की आबादी करीब 18 करोड़ है. हिन्दू इस आबादी का केवल एक प्रतिशत हैं और इसाई दो प्रतिशत. सिख और बौद्ध लोगों की संख्या पाकिस्तान में और भी कम है. ऐसे में स्कूल की किताबों में इनके बारे में गलत सीख दी जा रही है. रिपोर्ट में लिखा है, "अल्पसंख्यकों को अधिकतर ऐसे प्रस्तुत किया जाता है जैसे वे 'दूसरे दर्जे' के नागरिक हों." बच्चों को सिखाया जाता है कि "यह मुस्लिम पाकिस्तानियों की उदारता है कि उन्हें (अल्पसंख्यकों) कुछ खास तरह के हक दिए गए हैं, इसके लिए उन्हें एहसानमंद होना चाहिए."
हिन्दुओं के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है, "हिन्दुओं को अधिकतर रूढ़िवादी और इस्लाम का कट्टर दुश्मन बताया जाता है. उसे एक ऐसा धर्म बताया जाता है जिसकी संस्कृति और समाज अधर्म और क्रूरता पर आधारित हैं. इस्लाम शांति और भाईचारे का संदेश देता है, जबकि हिन्दू धर्म ऐसी धारणाओं से बिलकुल परे हैं." ईसाइयों के बारे में बहुत ज्यादा बातें नहीं लिखी गई हैं, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार जितना लिखा गया है वह इस धर्म को गलत रूप से प्रस्तुत करने के लिए काफी है.
इतिहास के साथ छेड़ छाड़
कमीशन ने पाकिस्तान के शिक्षा मंत्रालय से इस बारे में बात करनी चाही, लेकिन वहां तक वे पहुंच ही नहीं पाए. रिपोर्ट ने शिकायत की है कि अल्पसंख्यकों की उपलब्धियों के बारे में किताबों में कोई जिक्र नहीं है, "एक अल्पसंख्यक छात्र किताबों में अपने समुदाय के पढ़े लिखे लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं हासिल कर सकता." रिपोर्ट का यह भी कहना है कि किताबों में इतिहास के तथ्यों के साथ छेड़ छाड़ की गई है और इस्लामी सभ्यता को गौरवान्वित किया गया है, "इतिहास को अप्रमाणित दावों से अलग करने के लिए इन किताबों में बदलाव लाने की जरूरत है."
इस्लाम को बचाने का शिक्षा
किताबों में यह भी कहा जाता है कि पाकिस्तान में इस्लाम के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. पंजाब प्रांत में सामाजिक विज्ञान की चौथी क्लास की एक किताब में लिखा गया है, "गैर इस्लामिक शाक्तियां दुनिया से इस्लाम का अस्तित्व खत्म कर देना चाहती हैं. इसीलिए आज पाकिस्तान और इस्लाम को इसके खिलाफ लड़ने की जरूरत है."
एक अन्य रिपोर्ट में पाकिस्तान को दुनिया का तीसरा सबसे असहिष्णु देश बताया गया है. हालांकि पाकिस्तान का संविधान कहता है कि एक धर्म के व्यक्ति को दूसरे धर्म के बारे में पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. लेकिन सच्चाई यह कि अल्पसंख्यकों को भी इस्लाम का ही ज्ञान दिया जाता है. स्कूली अध्यापकों को भी इस पाठ्यक्रम में कुछ गलत नहीं दिखता. हालांकि अधिकतर टीचर मानते हैं कि अल्पसंख्यकों को उनके अधिकार मिलने चाहिए, लेकिन साथ ही उनका यह भी कहना है कि पाकिस्तान और मुस्लिमों के भले के लिए अल्पसंख्यकों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए. करीब 80 प्रतिशत अध्यापकों ने कहा कि वे गैर मुस्लिम लोगों को 'इस्लाम का दुश्मन' मानते हैं.
रिपोर्ट: एपी/ईशा भाटिया
संपादन: आभा मोंढे