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पीएम की गद्दी पर मोदी का फंदा

२६ जुलाई २०१२

गुजरात दंगों के 10 साल बाद नरेंद्र मोदी ने पहली बार इस मुद्दे पर बात की है. कहा है कि अगर वह कसूरवार हैं तो उन्हें फांसी चढ़ा दिया जाए. पर वह अभी भी खुद को बेकसूर मानते हैं और माफी नहीं मांगना चाहते.

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तस्वीर: AP

नफरत करिए या कायल बन जाइए. लेकिन नकार नहीं सकते. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर सियासी चर्चा के तूफान में हैं. 2002 के गुजरात दंगों के 10 साल बाद मोदी ने चुप्पी तोड़ी है. पत्रकार और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी के साथ इंटरव्यू में मोदी ने कहा है, "मैं गुनहगार हूं तो मुझे फांसी पर लटका दो." मोदी का बयान उस समय आया है जब भारत के अगले प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम पर विवाद हो चुका है. दंगों के दाग अब तक धुले तो नहीं लेकिन फीके जरूर पड़े हैं.

मोदी यहां तक कह गए कि अगर उनकी गलती है तो उन्हें जरूर फांसी पर चढ़ा देना चाहिए ताकि आने वाले 100 साल के लिए यह एक मिसाल बन जाए. हालांकि उन्होंने इसके बाद भी माफी नहीं मांगी और अपने पुराने रुख पर कायम रहे कि वह गुजरात दंगों पर माफी नहीं मांगेंगे.

छवि बदलने की कोशिश

तो क्या इमेज मेकओवर की इस कोशिश के पीछे मोदी का मकसद पीएम पद के लिए दावेदारी मजबूत करना है? समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख और गुजरात की घटनाओं पर बारीक नजर रखने वाले विजय त्रिवेदी कहते हैं, "ब्रैंडिंग की कोशिश हो रही है कि नरेंद्र मोदी एक कम्युनल लीडर के तौर पर न माने जाएं. उन्होंने कहा है कि चाहे फांसी पर लटका दो लेकिन माफी नहीं मागूंगा. इसे मोदी के व्यक्तित्व से जोड़कर देखना चाहिए. वो हमेशा ऐसे ही एरोगेंस से बात करते हैं... मैंने कई लोगों से बात की है ज्यादातर लोग इसे चुनावी स्टंट मान रहे हैं."

Narendra Modi Indien Ministerpräsident Gujarat
तस्वीर: AP

मोदी ने इंटरव्यू के लिए जिस अखबार और पत्रकार को चुना, वह भी काफी सोचा समझा लगता है. इससे पहले भी पत्रकारों ने गुजरात दंगों पर मोदी का जवाब जानने की कोशिश की है. लेकिन उन्हें मोदी के गुस्से का शिकार होना पड़ा. चुनाव की आहट होते ही मोदी ने खुलकर इस बारे में बात की. त्रिवेदी कहते हैं कि मोदी की निगाह दिल्ली की गद्दी पर है, वैसे इस साल गुजरात विधानसभा चुनाव भी होने हैं.

उर्दू में क्यों

मोदी का इंटरव्यू उर्दू अखबार नई दुनिया में प्रकाशित हुआ है. इंटरव्यू लेने वाले शाहिद सिद्दीकी भी इस बात को मानते हैं कि मोदी ने अपना ऑडियंस तय कर लिया था. मोदी का मकसद देश के उस समुदाय को संबोधित करना था जिसकी नजर में वह सबसे बड़े गुनहगार हैं. सिद्दीकी ने टेलीविजन चैनलों से बात करते हुए मोदी के उस पैगाम का जिक्र किया जो मोदी ने मुसलमानों के लिए दिया था. बकौल सिद्दीकी मोदी का संदेश था, "मैं अपने मुसलमान भाइयों से कहना चाहूंगा कि किसी दल के लिए वोट बैंक बनकर न रहें. मुसलमान सपने देखें. एक भारतीय के रूप में खुद को पेश करें. अगर मैं मुसलमान भाइयों के किसी काम आ सका तो आऊंगा."

2002 के गुजरात दंगों के बाद से ही मोदी का नाम राष्ट्रीय राजनीति में अछूत हो गया है. उनके नाम पर राजनीतिक दलों में सबसे तीखा ध्रुवीकरण होता है. जानकार मानते हैं कि हिंदू हृदय सम्राट बनने की कोशिश मोदी ने काफी जतन से की लेकिन अब वह उसी छवि को तोड़ना चाहते हैं. इसकी शुरुआत मोदी ने पिछले साल सद्भावना मिशन से की. उन्होंने पूरे गुजरात का दौरा किया और उपवास रखा. मोदी के मंच पर मुस्लिम धर्मगुरुओं को खास तौर से जगह दी गई.

सोच समझ कर दिया बयान

भारत की राजनीति को नजदीक से देखने समझने वाले मानते हैं कि मोदी के इस इंटरव्यू के पीछे कट्टर हिंदूवादी संगठन आरएसएस की सोच हो सकती है. आरएसएस पिछले काफी समय से मोदी की इमेज बदलने की कोशिश में लगा है. इसके प्रमुख मोहन भागवत ने इसी साल जनवरी में नरेंद्र मोदी को एनडीए की तरफ से पीएम पद का दावेदार बताया था.

त्रिवेदी की राय है कि मोदी के इस इंटरव्यू का संबंध गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव से भी हैं. तीन बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके मोदी की पकड़ राज्य में कमजोर हुई है. गुजरात में इसी साल चुनाव होने हैं. मोदी चाहते हैं कि इस बार वोटिंग उनकी विकासपुरुष की छवि के आधार पर हो. हालांकि मोदी का इंटरव्यू लेने वाले सिद्दीकी इस बात से इत्तफाक नहीं रखते. उनका कहना है, "मोदी ने हिंदुत्व का एजेंडा छोड़ा नहीं है. जब मैंने मोदी से पूछा कि अगर आप देश के पीएम बन गए तो क्या भारत को हिंदू राष्ट्र बनाएंगे, तो मोदी ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया. इसके बजाय वह देश के विकास की बात करने लगे."

जिस वक्त मोदी के इंटरव्यू को लेकर देश में हंगामा मचा है वो देश के बाहर हैं. हर बात का जवाब विकास के मुहावरे में देने वाले मोदी के लिए ये एक तरह का लिटमस टेस्ट भी है.

गुजरात दंगे में 2000 लोग मारे गए और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ. हजारों लोग विस्थापित हुए, जिनमें से कई आज भी राहत और पुनर्वास के इंतजार में हैं. दंगे का शिकार मुख्य रूप से मुसलमान हुए थे. ऐसे में मोदी का ये बयान दंगों के दाग धोने की कवायद है तो प्रधानमंत्री की दौड़ में आगे निकलने का नुस्खा भी लगता है. गुजरात की छवि से बाहर निकलकर देश के स्तर पर अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने की कोशिश है. एक लाइन में कहें तो वह सब कुछ जो मोदी पिछले कई सालों से करना चाह रहे थे, एक कट्टर नरेंद्र भाई की जगह पर नरम लचीले लोकतांत्रिक मोदी को देश में एक बड़े राजनीतिक विकल्प के तौर पर पेश करना.

रिपोर्टः विश्वदीपक

संपादकः अनवर जे अशरफ

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