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पीना बाउश की अद्भुत विरासत

६ सितम्बर २०१३

1973 में पीना बाउश ने डांस कंपनी वुपरटाल की स्थापना की और दुनिया भर में मशहूर हो गईं. उनका संस्थान अपने जन्म के 40 साल मना रहा है. भारत के साथ निकट रूप से जुड़ी रहीं बाउश की मौत को चार साल हो गए हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

वैसे तो बाउश कभी भी नहीं चाहती थीं कि वह वुपरटाल थियेटर की अगुवाई करें. ऐसी कोई योजना भी नहीं थी. लेकिन उन्हें मना लिया गया और एक शहर के पारंपरिक नाट्य मंच का क्रांतिकारी बदलाव शुरू हुआ. 60 साल के लुत्स फोर्स्टर अब इसके प्रमुख हैं. उन्हें भी इस पद को स्वीकार करने में दिक्कत हुई. पीना बाउश के बाद मंच को संभालना यानी उनके धरोहर को संभालना और नई कला के लिए जगह बनाना, "पहले तो मैंने इसे बिलकुल ही दिमाग से निकाल दिया, इसलिए नहीं क्योंकि मुझे इस बात से डर था, बल्कि इसलिए क्योंकि मैंने कभी भी इस बारे में नहीं सोचा था."

Deutschland Tanz Theater Tanzabend von Pina Bausch in Wuppertal
तस्वीर: picture-alliance/dpa

1975 से फोर्स्टर वुपरटाल नाट्यमंच में डांसर हैं. इस बीच वह एसेन के फोल्कवांग कला विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. डांस कंपनी के 40वें सालगिरह पर पीना बाउश की कला पर ध्यान दिया जा रहा है. इसके लिए पालेर्मो पालेर्मो नाम की एक नृत्य प्रदर्शनी बनी है जिसकी संकल्पना बाउश की विदेशी यात्राओं के दौरान हुई. बाउश ने इटली के सिसिली इलाके के शहर पालेर्मो से इसकी प्रेरणा ली.

हैरान शहर

"मुझे नहीं जानना कि लोग कैसे चलते हैं, मैं जानना चाहती हूं कि उन्हें क्या चलाता है." पीना बाउश का यह बयान काफी मशहूर है और इसे पालेर्मो में भी देखा जा सकता है. पारंपरिक बैले से अलग होकर बाउश ने अपनी कला के जरिए हमेशा वह कहना चाहा जिससे आम आदमी का दिल खुशी के मारे खुले आसमान में उड़ान भरने लगे या दुखी होकर पूरी तरह टूट जाए. नृत्य के दौरान ऐसे कई मौके हैं जिसमें नर्तक एक टूटी हुई दीवार के सामने झुक के खड़े हो जाते हैं और एक अजीब टेढ़े-टूटे तरीके से अपना दुख दर्शाते हैं. फिर बत्तखों का एक झुंड जोर जोर से बोलते हुए मंच पर से जाता है. कलाकार बाउश इन चित्रों के जरिए मनुष्य के विकलांग अंतर्मन को दिखाने की कोशिश करती हैं.

Ditta Miranda Jasifi in einer Szene des Films PINA
तस्वीर: picture-alliances/dpa

सालगिरह पर समारोह की शुरुआत से कुछ ही वक्त पहले ड्रेस रिहर्सल हो रहा है. लुत्स फोर्स्टर इस बीच ज्यादा कुछ ठीक करने की कोशिश नहीं कर रहे. पीना बाउश अलग थीं, कभी कभी शो से कुछ ही देर पहले वह पूरा डांस बदल देती थीं. लेकिन फोर्स्टर कहते हैं, "मैं कोरियोग्राफर नहीं हूं, मैं यहां हूं ताकि मैं इस प्रदर्शन को समझूं और रियाज करता रहूं, इसे जिंदा रखूं और इस कंपनी को चलाता रहूं."

विदेशों में सफलता

फोर्स्टर कहते हैं कि विदेश में कंपनी की नृत्य प्रदर्शनी के प्रति लोगों का रवैया बहुत अलग था, "जबरदस्त था. वहां लोगों ने हमें खूब तसल्ली दी, हमें बहुत सुंदर और हौसला देने वाली प्रतिक्रियाएं मिलीं." कंपनी को दुनिया के कई महत्वपूर्ण महोत्सवों में अपना काम पेश करने का मौका मिला. पीना बाउश के लिए विदेशी महोत्सवों में हिस्सा लेना इतना अहम इसलिए भी था क्योंकि वह अलग अलग देशों और उनकी संस्कृतियों को जानना चाहती थीं. फोर्स्टर बताते हैं कि बाउश को लोगों में दिलचस्पी थी. वह विदेशों में संग्रहालयों या थियेटर नहीं जाती थीं. वह वहां जाती थीं जहां उन्हें लोग मिलते थे.

इसी वजह से बाउश की रचनात्मकता ने पालेर्मो पालेर्मो को जन्म दिया. रोम, साओ पाओलो, सांतियागो दे चिले, सैतामा, इस्तांबुल और हांगकांग, यह सारे शहर उनके नाट्य निबंधों में दिखते हैं. बाउश ने कुछ वैश्विक बनाया है, जिसे दुनिया भर में अपनी जगह मिलती है. वुपरटाल कंपनी 40 साल की सालगिरह मनाने जापान, कोरिया, हांगकांग और कनाडा भी जाएगी.

पहचान की तलाश

Tanztheater Pina Bausch in Paris For the children of yesterday, today and tomorrow 2003
तस्वीर: BERTRAND GUAY/AFP/Getty Images

पीना बाउश के धरोहर ने वुपरटाल कंपनी को एक नाम तो दे दिया, लेकिन क्या भविष्य में इस नाम के सहारे कंपनी के अस्तित्व को बचाया जा सकेगा. नाट्यमंच इसी सवाल के जवाब की तलाश में है. फोर्स्टर कहते हैं कि उनके मंच पर 20, 30, 40, 50 और 60 साल की उम्र के लोग नाचते हैं. ऐसे नर्तक दुनिया में कम ही मिलते हैं. पीना बाउश की धरोहर कंपनी के लिए एक बड़ा तोहफा तो है ही, लेकिन बड़े तोहफे का बोझ भी बड़ा है.

फोर्स्टर कहते हैं, "कंपनी में जान डालनी होगी लेकिन इसके लिए पैसे चाहिए. वुपरटाल शहर ने तो अपना थियेटर भी बंद कर दिया. और ऐसी हालत में 10-12 नए नर्तकों को टीम में शामिल करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता." बाउश के धरोहर का बोझ भले बहुत भारी हो, लेकिन इसमें हमेशा कुछ नया करने की प्रेरणा और रचनात्मकता को बनाए रखना भी शामिल है.

रिपोर्टः आया बाख/एमजी

संपादनः महेश झा

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