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फ़ोल्क्सवागेन की नज़र भारत पर

महेश झा१२ दिसम्बर २००९

जर्मन कार कंपनी फ़ोल्क्सवागेन भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग के विकास को देखते हुए वहां रणनीतिक रूप से निवेश कर रही है. भारत के बढ़ते ऑटो बाज़ार पर नज़र और घरेलू बिक्री में गिरावट की कमी पूरा करने की कवायद.

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तस्वीर: AP

वित्तीय संकट का बहुत ज़्यादा असर ऑटोमोबाइल उद्योग पर हुआ है और उद्योग में आई मुश्किलों का असर परिवहन पर पड़ने के कारण ट्रकों और कारों की बिक्री तेज़ी से गिरी है. घरेलू बाज़ार बिक्री में गिरावट की कमी को पूरा करने के लिए ख़ासकर जर्मन कंपनियां विदेशी बाज़ारों पर ध्यान दे रही हैं. और इसमें भारत के तेज़ी से बढ़ते ऑटो बाज़ार का भी महत्वपूर्ण स्थान है.

Das Logo eines VW-Porsche 914
तस्वीर: AP

भारत इस समय विश्व बाज़ार में 12 वें स्थान पर है और 2018 तक महत्वपूर्ण ऑटोमोबाइल बाज़ारों ब्रिटेन, इटली और फ़्रांस को पीछे छोड़कर सातवें स्थान पर आ जाएगा. ऐसे बाज़ार को जर्मन कंपनियां कैसे नज़रअंदाज़ कर सकती हैं. पिछले दिनों फ़ोल्क्सवागेन ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया में पहले पेज़ सहित कई पेज़ों वाला विज्ञापन निकाला.

बर्लिन में हांडेल्सब्लाट की भारत संगोष्ठी में फ़ोल्क्सवागेन इंडिया के सीएफ़ओ उलरिष प्रोस्के ने कहा, "ये एक स्ट्रैटेजिक निवेश है. भारत हमारे लिए एक बड़ा बाज़ार है. इस अख़बारी विज्ञापन के ज़रिए हम बताना चाहते थे कि हम सचमुच बाज़ार में आ गए हैं. मैं समझता हूं कि यह संदेश पहुंच गया है."

पश्चिमी देशों के निवेशक भारत को विरोधाभासों का देश समझते हैं. एक ओर तेज़ विकास कर रही आर्थिक सत्ता तो दूसरी ओर बड़े इलाकों में ग़रीबी. प्रोस्के कहते हैं, "यदि आप प्रति व्यक्ति सकल उत्पाद को देखों को पाएंगे कि भारत, ब्राज़ील और चीन जर्मनी से बहुत पीछे हैं. लेकिन आनेवाले वर्षों में ये दूरी मिटेगी. और यही वह चीज़ है जिसमें ऑटोमोबाइल उद्योग की दिलचस्पी है, मतलब विकास में."

Combo Volkswagen Suzuki LOGO
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भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग का बहुत तेज़ विकास हो रहा है, 165 फ़ीसदी की दर से. गाड़ियों की कुल संख्या के मामले में ब्राज़ील में 20 लाख, रूस में 15 लाख, चीन में 50 लाख और भारत में 20 लाख गाड़ियों की वृद्धि होगी. इसलिए हर बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी की भारत में दिलचस्पी है.

फ़ोल्क्सवागेन इंडिया के सीएफ़ओ उलरिष प्रोस्के भारत की संभावना को देखकर उत्साहित हैं. "गाड़ी ख़रीदने वाले संभावित ग्राहक, 2006 में डेढ़ करोड़ थे, 2018 में साढ़े 8 करोड़ की उम्मीद है. दूसरी तरफ़ यदि जर्मनी में गाड़ियों का घनत्व देखें, तो हर दूसरे व्यक्ति के पास गाड़ी है जबकि भारत हर हज़ार लोगों पर दस गाड़ियां हैं."

मतलब यहां भी विकास की गुंजाइश है. भारतीय बाज़ार ऑटोमोबाइल उद्योग में नया इतिहास लिख रहा है. एक तो सस्ती कारों के लिए बहुत बड़ा बाज़ार है जिसकी वजह से टाटा ने लखटकिया नैनो को बाज़ार में उतारा है तो दूसरी ओर कीमत के मामले में भारतीय ग्राहक बहुत सतर्क हैं.

फ़ोल्क्सवागेन के उलरिष प्रोस्के कहते हैं, "बाज़ार क़ीमत के मामले में संवेदनशील है. मतलब क़ीमत सही होनी चाहिए. दूसरी ओर कंपनी कमाना भी चाहती है. इसके लिए हमें भारत के लाभों का उपयोग करना होगा, जिसमें किफ़ायती काम भी शामिल है."

बाज़ार की प्रतिद्वंद्विता के कारण जर्मन कंपनियों ने भारत में ही उत्पादन शुरू किया है. पिछले दिनों जापानी कार कंपनी सुज़ूकी में फ़ोल्क्सवागेन के 20 प्रतिशत के निवेश को भी इसी नज़रिए से देखा जाना चाहिए. फ़ोल्क्सवागेन ने भारतीय बाज़ार को लंबे समय तक नज़रअंदाज़ किया है जबकि सुज़ूकी अपने उपक्रम मारूति के साथ भारत में मार्केट लीडर है.

हालांकि पिछले दिनों फ़ोल्क्सवागेन ने बड़ा निवेश कर पुणे में नया कारखाना लगाया है लेकिन अपेक्षाकृत बहुत कम कारें बेच रहा है. फ़ोल्क्सवागेन सुज़ूकी के माध्यम से भारत में छोटी कारों के बाज़ार पर प्रभाव डालना चाहता है.