तमाशा बन कर रह गया है ब्रेक्जिट
११ अप्रैल २०१९ब्रेक्जिट का तमाशा और भी हास्यास्पद होता चला जा रहा है. यूरोपीय संघ का ये सदस्य अलग भी होना चाहता है लेकिन ये भी नहीं जानता कि अलग होने के लिए खुद को कैसे संभाले. और इसलिए अब इसे मजबूरन यूरोपीय संघ के चुनाव में भी हिस्सा लेना पड़ेगा. एक ऐसा देश चुनाव में हिस्सा लेगा जो साथ रहना ही नहीं चाहता है.
इसलिए अब हैरानी की कोई बात नहीं कि कट्टर रूप से ब्रेक्जिट का समर्थन करने वाले इस मौके का इस्तेमाल यूरोपीय संघ की छवि खराब करने के लिए करेंगे. चुनावों के बाद पहले से ही सुस्त ढांचे पर अब और धूल उड़ाई जाएगी. वहीं ईयू इस बेवकूफी को छिपाने के लिए दिखा रहा है कि उसने समय सीमा बढ़ाई जरूर है लेकिन कुछ शर्तों पर.
यह तय किया गया है कि ब्रिटेन के लोग जब भी कभी आखिरकार एक समझौते पर पहुंचेगे, तो वो उसके अगले महीने की शुरुआत से ईयू से अलग हो सकेंगे. लेकिन ऐसा उन्हें 31 अक्टूबर से पहले पहले ही करना होगा. हालांकि इस पर कोई सवाल नहीं उठाया गया कि इस तरह की समय सीमा की आखिर जरूरत ही क्यों पड़ी.
और भी आगे बढ़ सकता है ब्रेक्जिट
पूरी तरह बंटी हुई संसद और एक ऐसी प्रधानमंत्री के होते जिनके पास ना तो कोई शक्ति है और ना ही कोई समर्थन, अब अक्टूबर तक अशांत माहौल के बावजूद ब्रिटेन को ईयू के साथ सम्मानपूर्वक जीना होगा और ये भी सुनिश्चित करना होगा कि वह ईयू के काम में किसी भी तरह की रुकावट ना डाले. ब्रेक्जिट के लिए हुए जनमत संग्रह से पहले जब प्रचार चल रहा था, उन दिनों "टेक बैक कंट्रोल" यानी "नियंत्रण फिर अपने हाथों में लो" के नारे लग रहे थे. आज इन जादुई शब्दों का मतलब बदला हुआ सा नजर आ रहा है.
ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के नेताओं की रात भर चली बैठक के दौरान ईयू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे पर शर्तों को थोप कर दबाव बनाया. ईयू को तय करना था कि इतना ढोंग कर चुका ये देश अब शुक्रवार को बिना किसी समझौते के अलग होगा या फिर कुछ और महीनों के लिए उसे मोहलत दी जाएगी.
अब इस समय सीमा के पूरा होने के बाद भी दोनों पक्ष एक समझौते पर पहुंच पाएंगे, ये तो हरगिज तय नहीं है. बहुत मुमकिन है कि ये तमाशा और खिंचेगा. इतना तो अभी से तय है कि अगर जरा भी शंका हुई तो अक्टूबर के अंत में एक बार फिर सीमा बढ़ा दी जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि ईयू किसी भी हाल में "हार्ड" ब्रेक्जिट के नतीजों की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता.
रेफरेंडम के बाद से अब तक क्या क्या हुआ
इस तमाशे को रोकने का सबसे सरल तरीका होता कि ब्रिटेन की सरकार आर्टिकल 50 को ही हटा देती. ऐसे में ब्रिटेन के पास अपने मसले हल करने के लिए दुनिया भर का वक्त होता. ब्रिटेन को एक और मौका मिलता और वह ईयू के साथ नए समझौते पर बात कर सकता था. इसके बाद ब्रेक्जिट के कट्टर समर्थकों की चीख पुकार सुनने लायक होती. आर्टिकल 50 के हटाए जाने के बाद टेरीजा मे को इस्तीफा दे देना पड़ता लेकिन वो तो पहले ही एक बार संसद को लाइन पर लाने के लिए ऐसा प्रस्ताव दे ही चुकी हैं.
पीछा नहीं छोड़ेगा ब्रेक्जिट का भूत
नागरिकों और उद्योगों के लिए अनिश्चितता बरकरार है. सब कुछ हवा में है और निवेश के लिए ये जहर जैसा है. अब तक ईयू के सभी 27 सदस्य देश ब्रेक्जिट की प्रक्रिया को लेकर उल्लेखनीय रूप से एकजुट रहे हैं. लेकिन ये एकता अब छिन्न भिन्न होने लगी है. फ्रांस ने बहुत कोशिश की कि समय सीमा इतनी ना बढ़े लेकिन ज्यादातर सदस्य देश इसके हक में थे.
टेरीजा मे की ही तरह फ्रांस भी इसे 30 जून तक ही बढ़ाना चाहता था ताकि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के चुनावों में हिस्सा लेने से रोका जा सके. इसके विपरीत जर्मनी ने तो दिसंबर या फिर अगले साल मार्च तक इसे खींचने का प्रस्ताव दिया था ताकि ब्रेक्जिट के मुद्दे को सुर्खियों से दूर किया जा सके. फिर आखिर में सबने एक समझौता कर लिया. एक ऐसा समझौता जिसे निष्पक्ष नजरिए से समझना मुमकिन ही नहीं है. लेकिन उन्हें बीच का रास्ता चुनना था, तो अक्टूबर चुन लिया.
इस बारी मिली एक्सटेंशन को एक नाम भी मिल गया है - हैलोवीन ब्रेक्जिट. क्योंकि माना जाता है कि अक्टूबर की आखिरी रात को भूतप्रेत आसपास घूम रहे होते हैं. क्या पता, यही ब्रिटेन के लिए ये एक अच्छा शगुन हो.
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