बारिश के शहर में एक दिन
१ अगस्त २०१३राज्य है मेघालय और जगह का नाम है माउसिनराम. हालांकि यहां रहने वाले कम ही लोगों को पता होगा कि उनका ठिकाना गिनीज बुक में जगह बना चुका है, जहां सालाना 11,873 मिलीमीटर बारिश होती है.
यहां की बुजुर्ग बिनी कींटर को जब बताया गया, तो वह हैरान रह गईं, "क्या सच में... सच में यहां दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश होती है?" वैसे किंटर को खुद अपनी उम्र का भी पता नहीं, वह खुद को "100 के आस पास" की बताती हुए कहती हैं, "जब मैं छोटी बच्ची थी, तो बारिश से बहुत डरती थी. आज के लोगों के लिए यह मुश्किल नहीं है."
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि बांग्लादेश और बंगाल की खाड़ी के पास की इस जगह की स्थिति ही इसे खास बनाती है. भारतीय मौसम विभाग के सुनीत दास कहते हैं, "ऐसा होता है कि जब भी बंगाल की खाड़ी के ऊपर नमी जमा होती है, इसकी वजह से माउसिनराम में बारिश होती है."
बारिश में बिजली संकट
पिछले हफ्ते जब मॉनसून की बारिश शुरू हुई, तो दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक जाम हो गया. लेकिन माउसिनराम के लिए तो यह सब मामूली बातें हैं. 30 साल पहले तक इस जगह पर न तो पक्की सड़कें थीं, न पानी और बिजली की सप्लाई. यहां आम तौर पर छह महीने का मॉनसून होता है और इस दौरान लोगों की हालत खराब हो जाती थी.
यहां आए दिन भूस्खलन होता है और एकमात्र पक्की सड़क उससे बाधित हो जाती है. कुछ गांववालों की झोपड़ियों में बारिश का पानी घुस जाता है. बिजली तो आ गई है लेकिन आए दिन कटती रहती है.
हर बार सर्दियों में माउसिनराम के लोग बारिश के लिए महीनों तैयारी करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि एक बार बारिश शुरू हुई, तो पता नहीं कब रुकेगी. वे अपनी टूटी फूटी छत की मरम्मत करते हैं, जलाने के लिए लकड़ियां जमा करते हैं. बिजली कटी तो यही लकड़ियां रोशनी का सहारा होंगी. इन्हीं पर खाना पकेगा. वे अनाज खरीद कर जमा करते हैं. मई और जुलाई के बीच सिर्फ बारिश होती है.
गांव में बनी बरसाती
औरतें बारिश से बचने के लिए बांस की खरपच्ची से "क्नुप" नाम की बरसाती बनाती हैं. इसमें प्लास्टिक की चादरें और झाड़ू के तिनके भी लगाए जाते हैं, जो कछुए की पीठ की तरह का शक्ल बनाते हैं. इसे सिर पर पहना जाता है और इससे घुटने तक बारिश से सुरक्षा मिल सकती है.
एक क्नुप तैयार करने में एक घंटे का वक्त लगता है. गांव की औरतों के लिए यह अच्छा काम है क्योंकि बारिश के मौसम में वे घर पर बंद रहती हैं और उनका समय कट जाता है.
झाड़ू के तिनकों को पानी में डाल कर भिगोया जाता है और बाद में माउसिनराम की छत पर सुखाया जाता है. नौ नाती पोतों वाली प्रेलियान पदाह के मुताबिक इससे तिनके ज्यादा मजबूत हो जाते हैं और बारिश में ज्यादा टिकते हैं.
70 साल की पदाह सर्दियों का कुछ हिस्सा और पूरा मॉनसून इसे बनाने में गुजारती हैं. उनका कहना है, "मैं तेज बारिश पसंद नहीं करती. पूरे दिन घर के अंदर बंद रहना बोरिंग काम है."
चेरापुंजी से मुकाबला
माउसिनराम के कम ही लोगों को पता है कि उनका गांव के नाम किस बात का रिकॉर्ड है. यहां के मुखिया मूनस्टार मारबानियांग का कहना है, "यहां सूरज तो निकलता नहीं. अगर बिजली न हो, तो घर के अंदर भी अंधेरा रहता है. दिन में भी." हालांकि पड़ोसी शहर चेरापुंजी को इस बात की नाराजगी है कि उनके नाम यह रिकॉर्ड छिन गया. पहले चेरापुंजी में ही दुनिया की सबसे ज्यादा बारिश होती थी.
जिन लोगों के पास किसी और जगह घर है, वे अपने दूसरे ठिकाने पर चले जाते हैं. दूसरों के लिए सोने का बहाना मिल जाता है. जिन घरों की छत को घासफूस से ढंका गया है, वहां बारिश की आवाज तो कम हो गई है लेकिन अब जोर से बोलना पड़ता है. 67 साल के मारबानियांग कहते हैं, "हमें बातचीत के लिए जरा जोर से बोलना पड़ता है."
जब मॉनसून खत्म होता है, तो कोई पार्टी नहीं होती. बस फिक्र होती है कि बारिश में जो कुछ टूटा फूटा है, उसे ठीक कैसे किया जाए. टूटी हुई दांतों के साथ मुस्कान बिखेरते हुए मारबानियांग कहते हैं, "हम बारिश खत्म होने पर जश्न नहीं मनाते. हम गीले कपड़े सुखाते हैं."
एजेए/एमजी (एएफपी)