भारतीय नोटों पर पाबंदी से बढ़ीं मुसीबतें
१९ दिसम्बर २०१८सौ रुपये से बड़े भारतीय नोटों पर नेपाल में लगी पाबंदी से पर्यटकों और कारोबारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पहले भारत आने वाले पर्यटक भारतीय मुद्रा लेकर ही नेपाल जाते थे. सीमावर्ती इलाकों में तमाम कारोबार भी इसी करेंसी में होता था.
इस पाबंदी से भारत में काम करने वाले लाखों नेपाली नागरिक भी परेशान हैं. पहले वे भी भारतीय मुद्रा लेकर ही अपने वतन जाते थे. अब नेपाल सरकार के ताजा फैसले के कारण उनको घर जाने से पहले अपने पैसों को या तो नेपाली मुद्रा में बदलना होगा या फिर उस रकम को ऑनलाइन भेजना होगा. लेकिन समस्या यह है कि ऐसे ज्यादातर लोगों के पास बैंक खाता तक नहीं है.
सीमावर्ती इलाकों में भारतीय सौ रुपए की किल्लत और उसके लिए कमीशनखोरी बढ़ने का भी अंदेशा है. यह स्थित तब है जब नेपाल वर्ष 2020 को ‘विजिट नेपाल ईयर' के तौर पर मनाने की तैयारी कर रहा है. इस दौरान देश में 20 लाख पर्यटकों के पहुंचने की उम्मीद है. उनमें से ज्यादार भारतीय पर्यटक होते लेकिन अब इस पर संशय पैदा हो गया है.
पाबंदी क्यों
नेपाल सरकार ने बीते सप्ताह अचानक सौ रुपए से ज्यादा मूल्य की भारतीय करेंसी पर पाबंदी लगाने का एलान कर दिया. अब वहां दो सौ, पांच सौ और दो हजार रुपए के नोट रखना अपराध माना जाएगा. नेपाल सरकार के प्रवक्ता और सूचना व प्रसारण मंत्री गोकुल प्रसाद बास्कोटा ने इन नोटों पर पाबंदी की पुष्टि करते हुए बताया कि मंत्री परिषद की बैठक में यह फैसला किया गया.
बास्कोटा ने कहा, "भारत में नोटबंदी के बाद भी नेपाल में अब भी पुराने एक हजार और पांच सौ के भारतीय नोट भरे पड़े हैं. भारत सरकार ने उनको वापस नहीं लिया. नेपाल के केंद्रीय बैंक के पास भारत के लगभग आठ करोड़ रुपये मूल्य के पुराने नोट हैं. पूरे देश में पुरानी भारतीय करेंसी की शक्ल में लगभग साढ़े नौ सौ करोड़ की रकम है.”
नेपाल सरकार के इस फैसले से काफी उथल-पुथल मच गई है. भारतीय करेंसी पर रोक का सबसे ज्यादा असर दोनों देशों के सीमावर्ती इलाकों में रहने वालों पर पड़ रहा है. बिहार के कम से कम सात जिलों का नेपाल से सीधा व्यावहारिक संबंध है. वहां के लोग रोजाना भारी तादाद में नेपाल जाकर खरीद-फरोख्त करते हैं. भारतीय नोटों पर रोक के चलते वहां मुद्रा विनिमय का संकट खड़ा हो गया है. नेपाल के कुल व्यापार का 70 फीसदी भारत से होने की वजह से लोग अपने पास भारतीय नोट रखते थे.
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने पांच सौ व हजार के प्रतिबंधित नोटों को बदलने का मुद्दा कई बार उठाया था. इस मुद्दे पर दोनों देशों में औपचारिक बातचीत भी हुई थी. लेकिन पुराने नोटों को बदलने की कोई व्यवस्था नहीं की गई. नेपाल की दलील है कि भारत सरकार ने जब भूटान के पास रखी आठ अरब मूल्य की भारतीय मुद्रा को बदल दिया तो नेपाल के साथ सौतेला रवैया क्यों अपनाया गया? दूसरी ओर, भारत का सवाल था कि जब नेपाली नागरिकों के लिए प्रति व्यक्ति महज 25 हजार की भारतीय मुद्रा ले जाने का प्रावधान था तो नेपाल में इतनी बड़ी रकम कहां से जमा हो गई?
वैसे, नेपाल में ऐसी पाबंदी पहली बार नहीं लगी है. वर्ष 1996 में नेपाल में माओवादी हिंसा के दौरान भी पांच सौ व हजार के नोट पर लंबे समय तक पाबंदी रही थी. तब नकली करेंसी इसकी मुख्य वजह थी और भारत सरकार के अनुरोध पर ही नेपाल ने पाबंदी लगाई थी.
पाबंदी का असर
जानकारों का मानना है कि इससे दोनों देशों के राजनयिक व व्यापारिक संबंधों पर असर पड़ेगा. कुछ लोग नेपाल के इस फैसले के पीछे चीन का हाथ भी देख रहे हैं. नेपाल में लंबे अरसे तक काम कर चुके भारतीय पत्रकार केशव प्रधान कहते हैं, "नेपाल ने शायद नोटबंदी के दौरान भारतीय मुद्रा को नहीं बदल पाने से हुए नुकसान से नाराज होकर ही यह फैसला किया है. नेपाल सरकार भारत के साथ कई बार पुराने नोटों को बदलने का मुद्दा उठा चुकी थी. लेकिन भारत ने इस पर चुप्पी साध रखी थी.”
नेपाल सरकार के फैसले का पर्यटन पर सीधा असर पड़ने का अंदेशा है. नेपाल की पूरी अर्थव्यवस्था ही पर्यटन पर टिकी है. हर साल लाखों भारतीय घूमने, तीर्थयात्रा करने और कसीनो में किस्मत आजमाने के लिए नेपाल जाते हैं. ट्रेवल एजेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया (टीएएफआई) के अध्यक्ष अनिल पंजाबी कहते हैं, "नेपाल जाने का सबसे बड़ा फायदा यह था कि लोगों को अपनी मुद्रा नहीं बदलनी पड़ती थी. लेकिन अब ताजा पाबंदी से लोगों को मजबूरन डेबिट या क्रेडिट कार्ड और डालर या यूरो लेकर वहां जाना होगा. नतीजतन लोग दूसरी दक्षिण एशियाई देशों को तरजीह देंगे.” उनका कहना है कि सौ-सौ रुपए की गड्डियों की शक्ल में मोटी रकम लेकर कहीं घूमने जाना सुरक्षित व सुविधाजनक नहीं है.
भारतीय नोटों पर पाबंदी से कोलकाता समेत देश के दूसरे हिस्सों में काम करने वाले लाखों नेपाली नागरिकों के लिए भी मुश्किल पैदा हो गई है. कोलकाता की एक निजी कंपनी में काम करने वाले देशराज घिमिरे कहते हैं, "हम पहले भारतीय मुद्रा लेकर अपने गांव जाते थे. वहां हमारे जैसे लाखों लोगों का कोई बैंक खाता नहीं है. लेकिन अब भारतीय नोटों को बदलने के लिए कमीशन देना होगा.”
चीन को मौका
नेपाल स्थित भारत-नेपाल मैत्री संघ के अध्यक्ष श्रीचंद गुप्ता कहते हैं, "सौ रुपए से बड़े नोटों की पाबंदी का कारोबार पर काफी नकारात्मक असर पड़ेगा.” उन्होंने नेपाल सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद ने नेपाल के इस फैसले के लिए एनडीए सरकार के तानाशाही रवैए को जिम्मेदार ठहराया है. वह कहते हैं, "इससे भारत-नेपाल सीमा पर रहने वालों लोगों की मुश्किलें काफी बढ़ जाएंगी.” नेपाल के सीमावर्ती इलाके बीरगंज में रहने वाले भारतीय कारोबारी दिनेश जायसवाल कहते हैं, "सरकार को फैसले से पहले तमाम पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए था. इस पाबंदी से पर्यटन के साथ ही नेपाल के आर्थिक विकास की गति को भी धक्का लगेगा.”
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफेसर विक्रम साहा का कहना है कि नेपाल की ओली सरकार ने हाल में भारत की बजाय दूसरे पड़ोसी चीन से नजदीकी बढ़ाने के पर्याप्त संकेत दिए हैं. ताजा फैसला भी नेपाल के उस मंसूबे का ही हिस्सा है. इसके बाद चीन को नेपाल में अपने पांव और मजबूत करने का मौका मिल सकता है.