भारतीय मूल के वैज्ञानिक ने बनाया सबसे तेज कैमरा
१४ दिसम्बर २०११70 साल पहले एमआईटी के इलेक्ट्रिक इंजीनियर हैरॉल्ड एडगेर्टन ने खास किस्म की लाइट का इस्तेमाल कर दुनिया को चौंका दिया था. उन्होंने सेब पर टकराती गोली की साफ तस्वीर खींच ली. बूंद के टपकते ही उठने वाले कई छीटों को उन्होंने कैमरे में कैद कर लिया. एडगेर्टन की इस खोज ने विज्ञान को एक नई दिशा दी. पता चला कि तेज रफ्तार चीजें कैसा व्यवहार करती है. उनके टकराने से आस पास मौजूद चीजों पर क्या प्रभाव पड़ता है.
अब भारत में पैदा हुए एमआईटी के वैज्ञानिक डॉक्टर रमेश रासकर, एडगेर्टन की खोज से भी आगे जा रहे हैं. वह बता रहे हैं कि कैसे आगे बढ़ते प्रकाश को भी तस्वीर में कैद किया जा सकता है. तकनीक को अल्ट्राफास्ट इमेजिंग सिस्टम नाम दिया गया है. यह सिस्टम एक सेकेंड के 1000अरब वें हिस्से को कैद कर सकता है.
बड़ी उपलब्धि
विज्ञान के लिए यह बड़ी उपलब्धि है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अल्ट्राफास्ट इमेजिंग सिस्टम के जरिए वे प्रकाश के असर का बारीकी से पता लगा सकेंगे. प्रकाश में कई तत्व होते हैं. नई तकनीक बताएगी कि प्रकाश के यह तत्व ठोस, द्रव और गैस से टकराने पर कैसा असर डालते हैं.
प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों ने लाइट जलाई और अल्ट्राफास्ट इमेजिंग सिस्टम की मदद से कई तस्वीरें बनाई. लाइट बुझाने पर वैज्ञानिकों ने प्रकाश के लौटने की प्रक्रिया और उसका रास्ता भी देखा. तकनीक ईजाद करने वाले डॉक्टर रमेश रासकर मीडिया आर्ट्स एंड साइंस लैब में सहायक प्रोफेसर हैं. वह कहते हैं, "जब मैंने यह कहा कि मैं एक कैमरा बनाना चाहता हूं जो आस पास के कोनों के देखे तो मेरे साथियों ने कहा कि अपने कांट्रैक्ट की खातिर कुछ सुरक्षित प्रयोग करो. अब मेरे पास कांट्रैक्ट है और मैं कह सकता हूं कि यह फितूर नहीं है."
डॉक्टर रमेश और उनकी टीम ने लैब के एक अति संवेदनशील उपकरण 'स्ट्रीक ट्यूब' में कुछ बदलाव किए. इस तरह बना नया उपकरण प्रकाश की चाल को कैद कर सकता है और उसका पीछा भी कर सकता है. स्ट्रीक ट्यूब को नाभिकीय तत्वों की गति को स्कैन करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
सबको फायदा
टीम ने एक बोतल में धुंआ भरा और फिर उसमें लेजर लाइट डाली. अल्ट्राफास्ट इमेजिंग की मदद से वैज्ञानिकों को पता चला कि लेजर बीम किस तरह धुएं को चीरती हुई बोतल में घुसती है. यह सब एक सेकेंड के 1000अरब वें हिस्से में हुआ. वैज्ञानिक इस प्रयोग को एक बड़ी सफलता मान रहे हैं.
उम्मीद है कि इसकी मदद से प्रकाश के अनसुलझे राज सुलझाए जा सकेंगे. भौतिक, रसायन और जीव विज्ञान सभी को इससे फायदा होगा.
यह पहला मामला नहीं है जब डॉक्टर रमेश रासकर ने बड़ा प्रयोग किया है. जुलाई में डॉक्टर रासकर ने एक ऐसा सस्ता और आसान उपकरण बनाया जो आसानी से मोतियाबिंद की पहचान कर सकता है. उपकरण को आईफोन या किसी भी उपकरण में लगाकर कर आंख के सामने लाना है. कुछ ही मिनटों में उपकरण मोतियाबिंद को पकड़ लेगा.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: महेश झा