1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत में जर्मन फुटबॉल ट्रेनिंग

२३ जनवरी २०१३

जर्मन कोच और सितारा खिलाड़ी भारत के बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दे रहे हैं. भारत में फुटबॉल कभी उतना लोकप्रिय नहीं रहा लेकिन जर्मन फुटबॉल से जुड़े लोगों का मानना है कि वहां असीम संभावनाएं हैं.

https://p.dw.com/p/17Q7b
तस्वीर: dapd

जर्मनी के लीग फुटबॉल में अपना सिक्का जमा चुके विंटन रूफर इन दिनों भारतीय फुटबॉल ग्राउंडों पर नजर आ रहे हैं. वे जर्मन फुटबॉल ट्रेनर मार्कुस उलरिष की एक योजना का हिस्सा हैं, जिन्होंने भारत में बच्चों को फुटबॉल सिखाने का बीड़ा उठा रखा है. रूफर और उलरिष ने मिल कर जर्मन शहर म्यूनिख में ऐसे कैंप लगाए हैं, जो उलरिष के मुताबिक "बहुत सफल रहे हैं."

जर्मनी का मशहूर फुटबॉल क्लब बायर्न म्यूनिख कभी कभी कोलकाता और दिल्ली में नजर आता है और टीम नुमाइशी मैच भी खेलती है. लेकिन इसके अलावा विदेशी फुटबॉल टीमों का भारत से ज्यादा नाता नहीं रहता. क्रिकेट के दीवाने देश को फुटबॉल से ज्यादा मतलब भी नहीं रहता. लेकिन यूरोपीय फुटबॉलरों का मानना है कि भारत के पास बहुत क्षमताएं हैं. उलरिष ने 1 और 2 फरवरी को दिल्ली में लगने वाले कैंप के बारे में बताया, "आईआईटी दिल्ली में जो कैंप लग रहा है, वहां रूफर ट्रेनिंग देंगे. सबसे अच्छे 10 खिलाड़ियों को चुना जाएगा और उन्हें जर्मन दूतावास में पुरस्कृत किया जाएगा." दूतावास के अलावा दिल्ली वाईएमसीए ने भी इस कैंप को लगाने में मदद की है.

कौन हैं रूफर

रूफर न्यूजीलैंड के खिलाड़ी हैं लेकिन यूरोप के लीग फुटबॉल में उन्होंने खासा नाम कमाया. 1980 के दशक में जर्मन लीग बुंडेसलीगा में वेर्डर ब्रेमेन की तरफ से खेल चुके रूफर पेले और फ्रांस बेकेनबावर जैसे खिलाड़ियों के साथ फीफा की कमेटी में भी रह चुके हैं. एशिया प्रशांत इलाके में उन्हें सदी का शानदार फुटबॉलर भी घोषित किया जा चुका है. फुटबॉल के अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर न्यूजीलैंड की टीम की ज्यादा जगह नहीं है, लिहाजा वह वर्ल्ड कप जैसे मुकाबलों में हिस्सा नहीं ले पाए.

Flyer des Fußball-Camps der deutschen Botschaft in Neu Delhi
तस्वीर: Deutsche Botschaft Neu Delhi

भारत में फुटबॉल का जलवा मैनयू (मैनचेस्टर यूनाइटेड) और चेल्सी या बार्सिलोना जैसी टीमों के हाव भाव दिखाने तक ही सीमित हैं. ग्राउंड पर दिखावटी फुटबॉल खेलने वाले लड़के जब तक मैनयू की लाल जर्सी नहीं पहन लेते, उन्हें लगता ही नहीं कि वह फुटबॉल खेल रहे हैं. मैनयू ने भी मुंबई में एक विशालकाय स्टोर खोला है, जहां उसे खासा फायदा हो रहा है. लेकिन वास्तव में फुटबॉल खेलने वाले बच्चों की जेब में पैसे ही नहीं होते.

भारत और फुटबॉल

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फुटबॉल की ज्यादा पहचान नहीं बन पाई है. 1951 और 1962 के एशियाई गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने के अलावा टीम ने कभी कभार नेहरू कप और एशियाई फुटबॉल में जीत हासिल की है. लेकिन फुटबॉलर के तौर पर बाइचुंग भूटिया को छोड़ कर किसी और खिलाड़ी का नाम जेहन में नहीं आता. बांग्लादेश और नेपाल जैसी टीमें भारतीय फुटबॉल पर भारी पड़ती हैं और विश्व रैंकिंग में भारत की टीम 150वें नंबर के आस पास बनी रहती है.

जर्मन ट्रेनरों का मानना है कि आने वाले दिनों में ये आंकड़े बदल सकते हैं और प्रतिभावान युवा फुटबॉलरों के लिए उलरिष का कार्यक्रम बहुत मददगार साबित हो सकता है.

रिपोर्टः नॉरिस प्रीतम, दिल्ली

संपादनः अनवर जे अशरफ

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी