महाथिर का कश्मीर राग क्या मलेशिया को भारत से दूर कर देगा
२५ अक्टूबर २०१९दोनों ही देशों का एक दूसरे के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. मलेशिया के सांस्कृतिक, सामाजिक, और ऐतिहासिक परिदृश्य में भारत की भूमिका बरबस ही किसी भी सैलानी का ध्यान खीचने की क्षमता रखती है. वहीं भारत के लिए भी मलेशिया (और मलाया) के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता. मिसाल के तौर पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (और रासबिहारी बोस) की आजाद हिन्द फौज का गठन मलाया में ही हुआ था. 1962 के भारत-चीन युद्ध में मलेशिया अकेला ऐसा दक्षिण-पूर्वी देश था जिसने ना सिर्फ खुल कर भारत का साथ दिया बल्कि भारत को युद्ध में सहायता के लिए एक आर्थिक कोष की भी स्थापना की थी. वहीं भारत ने भी कानफ्रंतासी के समय 1965 में मलेशिया का साथ दिया और इसके चलते इंडोनेशिया से संबंधों में खासी अनबन आ गयी थी.
शीत युद्ध के दौरान दोनों ही देश निर्गुट देशों के दल के साथ रहे और इसने भी पारस्परिक संबंधों को मजबूत बनाए रखा. एक मुस्लिम बहुल देश होने और पाकिस्तान की तमाम कोशिशों के बावजूद मलेशिया और भारत के संबंध मधुर बने रहे. 1992 में लुक ईस्ट नीति के अनावरण ने संबंधों को नए आयाम दिए. विगत वर्षों में भारत और मलेशिया ने द्विपक्षीय सहयोग के कई समझौतों को अंजाम दिया जिनमें मलेशिया इंडिया कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक कोऑपरेशन एग्रीमेंट (2011) और इनहेंस्ड स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप(2016) प्रमुख हैं.
दुर्भाग्यवश, पिछ्ले कुछ वर्षों से दोनों देश एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं. मुस्लिम कट्टरपंथी और भारत मे टेरर फाइनेंस के आरोपी जाकिर नाइक के मलेशिया भाग जाने और भारत सरकार की तमाम कोशिशों और दोनो देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि होने के बावजूद मलेशियाई सरकार का उन्हें भारत नहीं भेजने के निर्णय ने राजनयिक स्तर पर पिछ्ले कई वर्षो से एक तनाव की स्थिति पैदा कर दी है.
2018 में महाथिर मोहम्मद के सत्ता पर काबिज होने के बाद से भारत के लिए परिस्थितियां खास तौर पर कठिन हुई हैं. मिसाल के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुग्रह के बावजूद महाथिर ने जाकिर को यह कह कर भारत भेजने से मना कर दिया कि वहां उसकी जान को खतरा हो सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार या प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे कभी ऐसी कोई मांग ही नहीं रखी, जिसका विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मुखर होकर खंडन किया. 2011 में दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि और 2012 में अपराधी मामलों में एक दूसरे की कानूनी सहायता संबंधी समझौता होने के बावजूद जाकिर नाइक का प्रत्यर्पण संभव कराना भारतीय राजनयिकों के लिये एक टेढ़ी खीर बना हुआ है. ऐसा लगता है कि इस मुद्दे का निस्तारण किए बिना संबंधों को वापस सही दिशा में ले जाना मुश्किल होगा.
जम्मू-कश्मीर का विशेषाधिकार खत्म करने के भारत सरकार के निर्णय ने द्विपक्षीय संबंधों को और बड़ा नुकसान तब पहुंचाया जब महाथिर ने संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में अप्रत्याशित रूप से मुद्दे को उठाते हुए कहा कि भारत ने कश्मीर पर आक्रमण कर उसे (कश्मीर को) कब्जे में कर रखा है जो संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के प्रतिकूल है. तुर्की और पाकिस्तान ने भी इसी तरह के वक्तव्य दिए जिसके लिए शायद भारत तैयार भी था, किन्तु मलेशियाई प्रधानमंत्री का वक्तव्य भारत को नागवार गुजरा. मलेशियाई मीडिया और टिप्पणीकार जो देश की राजनीति पर दशकों से नजर रख रहे हैं उन्होंने भी इसे एक अनावश्यक बयान की संज्ञा दी.
भारत में, खासतौर पर ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर बायकाट मलेशिया कैम्पेन चली और कई दिनों तक ट्रेंडिंग विषयों के लिहाज से विश्व भर के शीर्ष मुद्दों में शुमार हुई. जवाब में मलेशिया में भी बायकाट इंडिया की मुहिम चली. इसी दौरान कई लोगों ने यह बात भी उठाई कि भारत मलेशिया को अपने आंतरिक मामलों में दखल देने, कश्मीर पर तथ्यों को संयुक्त राष्ट्र में तोड़ मरोड़ कर पेश करने और खुल कर पाकिस्तान का साथ देने का दंड दे.
पाम आयल का मुद्दा इस सन्दर्भ में प्रमुखता से उभरा. पिछले कई वर्षों से भारत मलेशिया के बीच व्यापार संबंध मजबूत हुआ है. पिछले दस महीनों में लगभग चार मिलियन टन पाम आयल आयात के साथ आज भारत मलेशियाई तेल का सबसे बड़ा आयातक देश है और चीन तथा पाकिस्तान इस मामले में भारत से काफी पीछे हैं. पहले से ही यूरोप से इस मुद्दे पर मार झेल रही मलेशियाई सरकार भारतीय तेल आयातकों के संगठन द्वारा मलेशिया से तेल आयात ना करने के आवाहन से सकते में आ गयी और कई मंत्रियों ने भारत से तेल आयात बंद ना करने की परोक्ष तौर पर गुजारिश भी की. हालांकि अपने हाल के दिए बयान में महाथिर भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की बात के साथ यह कहना नहीं भूले कि कश्मीर पर वह अपने बयान से पीछे नहीं हटेंगे.
इस बीच अनवर इब्राहिम ने पारस्परिक मुद्दों को शांतिपूर्वक सुलझाने की बात कह कर मामले को शांत करने की कोशिश जरूर की है, और साथ ही यह भी कहा कि महाथिर का वक्तव्य मलेशिया की आंतरिक राजनीति से जुड़ा है, शायद एक खास तबके को खुश करने की कवायद के चलते महाथिर ने ऐसा कहा. लेकिन इस बात को नजरअंदाज नही किया जा सकता कि प्रधानमंत्री महाथिर के कार्यकाल मे पाकिस्तान के साथ संबंधों ने खासा जोर पकड़ा है, शायद इसका असर भी भारत-मलेशिया संबंधों पर पड़ा है.
अनवर इब्राहिम को मलेशिया में पीएम इन वेटिंग भी कहा जा रहा है. उनका बयान मलेशियाई सरकार और महाथिर के भारत को लेकर दृष्टिकोण को उजागर करता है. आंतरिक तौर पर महाथिर अपनी सत्ता को सुदृढ़ बनाना चाहते है और रूढ़िवादी मलेशियन इस्लामिक पार्टी यानी पीएएस जैसे दलों का समर्थन उन्हें इसके लिए महत्वपूर्ण लगता है. हालांकि इस मुद्दे में जाकिर नाइक की कोई स्पष्ट भूमिका तो सामने नहीं आयी है लेकिन यह कहना बेमानी नहीं होगा कि कश्मीर पर ऐसे एकतरफा रुख के पीछे कहीं ना कहीं जाकिर का भी हाथ है.
भारत को लेकर इस बड़े विवाद के पीछे एक और बड़ी वजह है चीन में उईगुर मुसलमानों के साथ हो रहे अत्याचारों और मानवाधिकार हनन के मुद्दों पर महाथिर की चुप्पी. महाथिर मुस्लिम हितों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रक्षा करने की अगुवाई करते रहे हैं. रोहिंग्या मुसलमानों के साथ म्यांमार में हो रहे मानवाधिकार हनन के मुद्दे को मलेशिया ने राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने के साथ साथ हजारों रोहिंग्या शरणार्थियों को भी पनाह दी है. तुर्की और पाकिस्तान के साथ मिलकर मुस्लिम देशों की सहायता का बीड़ा भी इन्होंने उठा रखा है, ये बात और है कि तुर्की के कुर्द मुसलमानों पर हो रहे हमले को भी महाथिर नजरअंदाज कर चुके हैं.
मलेशियाई मीडिया के उईगुर मुसलमानों से जुड़े सवालों और इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में नहीं उठाने पर महाथिर का यह कहना कि चीन का विरोध इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि वह एक अमीर देश है और मलेशिया और आसियान के देशों को उसकी निवेश और व्यापार संबंधों के लिए जरूरत है. उनके इस बयान ने सभी को आश्चर्यचकित किया है. संभवतः महाथिर का कश्मीर पर बोलना चीन के प्रति उनके ढुलमुल रवैए से ध्यान हटाने की ही कोशिश के तहत किया गया. स्पष्ट है कि यह रणनीति काम कर गयी और आज सारा ध्यान भारत पर आ चुका है.
भारत-मलेशिया संबंधों में आई गिरावट इस बात से साफ है कि किसी तीसरे देश की वजह से दोनों देशों में तनाव बढ़ा है और यह दोनों देशों के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. निर्गुट देशों के अजरबैजान अधिवेशन के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर और मलेशियाई विदेश मंत्री सैफुद्दीन अब्दुल्ला के बीच होने वाली बातचीत शायद दोनो देशों को कोई कूटनीतिक रास्ता सुझाए.
संभव यह भी है कि व्यापार के असंतुलन को दूर करने के लिए मलेशिया आने वाले दिनों में कोई कदम उठाए और भारत से चीनी और मीट उत्पादों का आयात बढाकर मामले को फिलहाल रफा दफा करने की कोशिश करे. जो भी हो, इन सबके बीच यह बात तो तय है कि भारत-मलेशिया संबंधों में दरार बढ़ी है जिसे पाटने के लिए दोनों ही देशों को व्यापक और बड़े कदम उठाने होंगे.
(राहुल मिश्रा मलय यूनिवर्सिटी में सीनियर लेक्चरर और दक्षिण पूर्व एशिया के जानकार हैं.)
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